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प्रमोशन के खिलाफ याचिका खारिज, HC ने कहा, ऐसे मामलों में देरी से आवेदन में अदालती दखल वाजिब नहीं - Respondent Surendra Pal

प्रमोशन के एक मामले में चुनौती देने वाली याचिका को हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट खारिज कर दिया है. अदालत ने इसके लिए तर्क दिया कि देरी से याचिका दाखिल करने से अदालत का दखल देना वाजिब नहीं है. मामला जानने के लिए पढ़ें पूरी खबर...

Himachal Pradesh High Court
हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट

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Published : Dec 7, 2022, 8:39 PM IST

शिमला:हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने प्रमोशन के एक मामले में चुनौती देने वाली याचिका को खारिज कर दिया है. अदालत ने इसके लिए तर्क दिया कि देरी से याचिका दाखिल करने से अदालत का दखल देना वाजिब नहीं है. दरअसल, लोक निर्माण विभाग में कार्यरत सुपरिंटेंडिंग इंजीनियर सुरेंद्र पाल की प्रमोशन के खिलाफ एक याचिका दाखिल की गई थी. हाईकोर्ट के न्यायाधीश न्यायमूर्ति तरलोक सिंह चौहान व न्यायमूर्ति वीरेंद्र सिंह की खंडपीठ ने प्रार्थी सुरेश कपूर व अन्यों की तरफ से दाखिल याचिका को देरी से दायर करने पर खारिज कर दिया.

याचिका को खारिज करते हुए अदालत ने कहा कि समय बीत जाने के बाद देरी से दायर प्रमोशन और सीनियरिटी से जुड़े मामलों को सुनवाई के लिए स्वीकार करने का मतलब स्थिर स्थिति को अस्थिर करने जैसा होगा. हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि यदि प्रमोशन व सीनियरिटी से जुड़े मामलों को ज्यादा से ज्यादा एक वर्ष के भीतर चुनौती दी जाए, तो अदालत का दखल वाजिब हो सकता है. यदि समय रहते विवादित वरिष्ठता सूची अथवा पदोन्नति आदेश को चुनौती न दी जाए तो इसका अर्थ यह भी लगाया जा सकता है कि प्रार्थी ने जूनियर की वरिष्ठता और उसकी प्रमोशन को स्वीकार कर लिया है. खंडपीठ ने कहा कि ऐसे मामले को स्थिर होने देने का इंतजार करने वाले प्रार्थियों को हतोत्साहित करना जरूरी है.

हाईकोर्ट के समक्ष आए मामले के अनुसार निजी प्रतिवादी सुरेंद्र पाल को भूतपूर्व सैनिक कोटे से 13 मार्च 2000 को असिस्टेंट इंजिनियर के तौर पर नियुक्ति प्रदान की गई थी. वहीं, प्रार्थियों सुरेश कपूर व अन्य 1996 और 1997 में नियुक्ति दी गई थी. 23 अप्रैल 2007 को प्रतिवादी को तदर्थ आधार पर प्रमोट कर एक्जीक्यूटिव इंजिनियर बनाया गया, फिर 4 नवम्बर 2008 को असिस्टेंट इंजीनियर की वरिष्ठता सूची जारी की गई, जिसमें प्रतिवादी सुरेंद्र पाल को प्रार्थियों से वरिष्ठ दर्शाया गया. सीनियरिटी का कारण बताया गया कि सेना में 4 साल 11 महीने सेवा करने का लाभ देते हुए उन्हें वरिष्ठ बनाया गया है,.

कोर्ट ने मामले के रिकॉर्ड का अवलोकन करने पर पाया कि प्रार्थियों ने न तो 4.11.2008 को जारी वरिष्ठता सूची को समय पर चुनौती दी, जिससे उनके अधिकार प्रभावित हो रहे थे और न ही उन्होंने निजी प्रतिवादी की एग्जीक्यूटिव इंजीनियर के तौर पर प्रमोशन को समय रहते चुनौती दी. हाईकोर्ट ने कहा कि प्रार्थियों ने केवल 2 जनवरी, 2011 को कोर्ट के समक्ष याचिका दायर कर अपने अधिकारों के हनन की बात रखी. इससे यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि प्रार्थियों ने मामले को पहले स्थिर होने दिया और अब उनकी तरफ से स्थिति मामले को अस्थिर करने की कोशिश की जा रही है. ये तर्क देते हुए हाईकोर्ट ने याचिका खारिज कर दी.

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