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प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अफसर पर हाई कोर्ट की सख्ती, अवैध डंपिंग पर दिए बयान पर अदालत ने तलब किया शपथपत्र

हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट ने प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के मेंबर सेक्रेटरी को शपथ पत्र दाखिल कर यह स्पष्ट करने को कहा है कि बोर्ड के अधिकारी ने उक्त बयान क्यों दिया? क्या दिया था बयान ये जानने के लिए पढ़ें पूरी खबर... (Himachal High Court).

Himachal High Court
हिमाचल हाई कोर्ट (फाइल फोटो).

By ETV Bharat Himachal Pradesh Team

Published : Sep 19, 2023, 8:01 PM IST

शिमला: हिमाचल प्रदेश राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अफसर ने लुहरी प्रोजेक्ट में अवैध डंपिंग को लेकर विधिक सेवा प्राधिकरण के समक्ष दिए गए बयान पर हाई कोर्ट ने कड़ा संज्ञान लिया है. जिला विधिक सेवा प्राधिकरण किन्नौर के सचिव के सामने बोर्ड के अफसर ने बयान दिया था कि लुहरी परियोजना क्षेत्र में कोई अवैध डंपिंग नहीं देखी गई है. इस बयान पर हाई कोर्ट ने प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के मेंबर सेक्रेटरी को शपथ पत्र दाखिल कर यह स्पष्ट करने को कहा है कि बोर्ड के अधिकारी ने उक्त बयान क्यों दिया?

यही नहीं, हाई कोर्ट ने अवैज्ञानिक ब्लास्टिंग व अवैध डंपिंग के दोषी ठेकेदार को कारण बताओ नोटिस जारी करने के बाद लिए गए एक्शन की जानकारी भी मांगी है. दरअसल, रामपुर में लुहरी पावर प्रोजेक्ट के निर्माण का काम चला हुआ है. यहां ठेकेदार पर अवैज्ञानिक तरीके से ब्लास्टिंग करने का आरोप है. ब्लास्टिंग के कारण रामपुर के नरोला गांव में दरारें पड़ी हैं. इस पर हाई कोर्ट ने जिला किन्नौर विधिक सेवा प्राधिकरण को मामले की जांच के लिए कहा था. प्राधिकरण के समक्ष प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अफसर ने बयान दिया कि परियोजना क्षेत्र में कोई डंपिंग नहीं हो रही है. बोर्ड के अफसर के इसी बयान पर हाई कोर्ट ने कड़ा संज्ञान लिया है.

रामपुर के नरोला गांव के ऊपर अवैज्ञानिक ब्लास्टिंग के कारण बड़े पत्थर गिरने का संभावित खतरा है. हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति एमएस रामचंद्र राव और न्यायमूर्ति अजय मोहन गोयल की खंडपीठ इस मामले में दाखिल की गई जनहित याचिका की सुनवाई कर रही है. सुनवाई के दौरान अदालत को बताया गया कि नरोला गांव में लुहरी विद्युत परियोजना के पहले फेज का निर्माण किया जा रहा है. निर्माण के दौरान अवैज्ञानिक तरीके से ब्लास्टिंग की जा रही है. हालांकि इसे सतलुज जल विद्युत निगम ने निराधार बताया है.

सुनवाई के दौरान अदालत को बताया गया कि सतलुज जल विद्युत निगम ने गांव की सुरक्षा के लिए डंगा लगाने का निर्णय लिया है और फंड भी जारी कर दिया है, लेकिन वन विभाग की ओर से एनओसी न मिलने के कारण कार्य शुरू नहीं हो पाया है. इस पर हाई कोर्ट ने वन विभाग के सचिव को अगली सुनवाई तक शपथ पत्र दायर करने के आदेश दिए. वहीं, जिला विधिक सेवा प्राधिकरण किन्नौर ने हाई कोर्ट को स्टेट्स रिपोर्ट के माध्यम से बताया कि ठेकेदार द्वारा अवैज्ञानिक तरीके से ब्लास्टिंग करने के कारण घरों में दरारें पड़ी हैं.

जनहित याचिका में बताया गया कि ठेकेदार सतलुज नदी में मलबा फिंकवा रहा है. इससे पानी के साथ साथ पर्यावरण को भी नुकसान हो रहा है. कोर्ट ने इन आरोपों की असलियत जानने के लिए जिला विधिक सेवा प्राधिकरण किन्नौर के सचिव से रिपोर्ट तलब की थी. उसी रिपोर्ट में प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अफसर ने डंपिंग न होने को लेकर बयान दिया था, जिस पर हाई कोर्ट ने कड़ा संज्ञान लिया. अब मामले पर अगली सुनवाई 16 अक्टूबर को होगी.

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