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भिक्षावृत्ति रोकने और भिखारियों की जानकारी न देने पर HC सख्त, सरकार को लगाई फटकार, दिया अंतिम मौका

By ETV Bharat Himachal Pradesh Team

Published : Jan 10, 2024, 9:32 PM IST

Himachal High Court: हिमाचल हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को भिक्षावृत्ति रोकने और भिखारियों की वास्तविक जानकारी नहीं देने पर जमकर फटकार लगाई है. कोर्ट ने मामले में सरकार को स्टेट्स रिपोर्ट दायर करने के लिए लास्ट चांस दिया है. मामले में अगली सुनवाई 6 मार्च को होगी.

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शिमला: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने राज्य में भिक्षावृत्ति रोकने और भिखारियों की वास्तविक जानकारी न देने पर सरकार को कड़ी फटकार लगाई है. अदालत ने सरकार को स्टेट्स रिपोर्ट दायर करने का अंतिम अवसर देते हुए स्पष्ट किया कि यदि आदेशों की अनुपालना न हुई तो महिला एवं बाल विकास विभाग के निदेशक को कोर्ट में उपस्थित रहकर स्थिति स्पष्ट करनी होगी. मुख्य न्यायाधीश एम एस रामचंद्र राव और न्यायाधीश ज्योत्सना रिवाल दुआ की खंडपीठ ने सरकार को शपथ पत्र के माध्यम से प्रदेश में भिखारियों की जमीनी हकीकत से अवगत करवाने के आदेश दिए हैं.

कोर्ट ने 43 साल पहले बनाए भिक्षावृत्ति निवारण अधिनियम के प्रावधानों पर अमल को लेकर दायर स्टेट्स रिपोर्ट पर असंतुष्ट होते हुए सरकार को भिखारियों की जमीनी स्थिति कोर्ट के समक्ष रखने के आदेश दिए थे. उल्लेखनीय है कि प्रदेश में 1979 में भिक्षावृत्ति रोकने के लिए भिक्षावृत्ति निवारण अधिनियम बनाया गया था. इस अधिनियम के तहत भिक्षा मांगने वालों, भिक्षा मंगवाने वालों और भिक्षा मांगने वाले पर आश्रितों को सजा का प्रावधान किया गया है. सार्वजनिक स्थानों पर भिक्षा मांगने को अपराध बनाते हुए दोषी को अधिकतम तीन माह की सजा का प्रावधान है.

इसके तहत बाहरी राज्यों के भिखारियों को क्षेत्र से बाहर करने की शक्तियों का प्रावधान भी किया गया है. पुलिस को भी इस अधिनियम के तहत भिक्षावृत्ति को रोकने के लिए शक्तियां प्रदान की गई है. त्योहार, शादी और नवजात शिशुओं की पैदाइश पर सार्वजनिक स्थानों सहित निजी परिसर में भिक्षा के रूप में उगाही करने को भी अपराध की श्रेणी में शामिल किया गया है. मामले के अनुसार एक कॉलेज छात्रा द्वारा दायर जनहित याचिका में बताया गया है कि शिमला शहर में जगह-जगह भिखारी नजर आते हैं. इनके साथ नंगे पांव व बिना कपड़ों के छोटे-छोटे बच्चे होते हैं, जिनके उचित रहन सहन के लिए राज्य सरकार की ओर से कोई कदम नही उठाये गए हैं.

वहीं, सर्वोच्च न्यायालय ने इस तरह के लोगों के रहन सहन के इंतजाम के लिए दिशा निर्देशों जारी कर रखे हैं. प्रार्थी ने सर्वोच्च न्यायालय द्वारा जारी दिशा निर्देशों की अनुपालना बाबत निदेशक महिला एवं बाल विकास को प्रतिवेदन भेजा था, लेकिन उनकी ओर से इस बारे में कोई विशेष कदम नहीं उठाया गया. 12 से 18 महीने के बच्चों को फुटपाथ पर बिना घर के रोलर स्केटिंग रिंक लक्कड़ बाजार, लोअर बाजार और अन्य उपनगरों में देखा जा सकता है. प्रार्थी के अनुसार केंद्र व राज्य सरकार की ओर से इनके लिए कोई भी कारगर कदम नहीं उठाए जा रहे हैं. यह सर्वोच्च न्यायालय द्वारा जारी दिशा-निर्देशों की उल्लंघना को दर्शाता है. मामले पर सुनवाई 6 मार्च को निर्धारित की गई है.

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