शिमला: हिमाचल प्रदेश में नगर निगम व नगर परिषदों में प्लास्टिक कचरे के सही तरीके से और नियमानुसार निष्पादन न होने पर हिमाचल हाई कोर्ट ने नाराजगी जताई है. इस बारे में शहरी विकास विभाग के निदेशक की तरफ से हाई कोर्ट में दाखिल शपथ पत्र पर न्यायमूर्ति तरलोक सिंह चौहान की अगुवाई वाली खंडपीठ ने आपत्ति जाहिर की है. न्यायमूर्ति तरलोक सिंह चौहान व न्यायमूर्ति रंजन शर्मा की खंडपीठ ने निदेशक शहरी विकास विभाग के निदेशक को भविष्य में सावधानी बरतने की चेतावनी भी दी है. हाई कोर्ट द्वारा मामले की आगामी सुनवाई 12 अक्टूबर को निर्धारित की गई है.
HC ने प्लास्टिक कचरा निपटान की मांगी जानकारी: हिमाचल हाई कोर्ट ने शहरी विकास विभाग के निदेशक से पूछा था कि प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन नियम-2022 के तहत इसके निष्पादन के लिए क्या कदम उठाए गए हैं. प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन नियम-2022 के तहत सक्षम प्राधिकारी के साथ रजिस्टर्ड उत्पादकों, आयातकों और ब्रांड-मालिकों की संख्या हाई कोर्ट के समक्ष स्पष्ट रूप से बताए जाने के आदेश दिए थे. इसके अलावा प्लास्टिक कचरे के निपटान के लिए चिन्हित जगहों की जानकारी भी अदालत ने तलब की थी. हाई कोर्ट ने हिमाचल प्रदेश ठोस कचरा अधिनियम-1995 के तहत उन व्यक्तियों या प्राधिकरणों की संख्या भी तलब की थी, जिनके विरुद्ध अधिनियम के अंतर्गत जुर्माना लगाया गया हो.
HC में दर्ज हैं कचरे को लेकर कई याचिकाएं:उल्लेखनीय है कि अदालत के समक्ष हिमाचल के अलग-अलग हिस्सों से अपशिष्ट प्रबंधन, ठोस अपशिष्ट स्थापित करने के लिए जगह का विवाद और अनट्रीटेड सीवेज और ठोस अपशिष्ट की रिहाई से जुड़ी याचिकाएं दर्ज की गई हैं. हिमाचल प्रदेश में ठोस अपशिष्ट प्रबंधन और इसके कार्यान्वयन पर हाई कोर्ट को बताया गया कि हिमाचल प्रदेश 59 शहरी समूह के साथ भारत का सबसे अच्छा शहरीकृत राज्य है, लेकिन कम मात्रा का कचरा भी गंभीर बीमारियां पैदा कर सकता है. हिमाचल में 29 नगर परिषद और 5 नगर निगम हैं. कहीं भी नियम के अनुसार कचरे का निपटान नहीं किया जा रहा है.