शिमला: आखिरकार मुख्य संसदीय सचिवों की नियुक्ति का मामला हाई कोर्ट पहुंच गया. हिमाचल में सुखविंदर सिंह सुक्खू के नेतृत्व में कांग्रेस सरकार ने छह सीपीएस की नियुक्ति की थी. इस नियुक्ति को आवेदन के जरिए हाई कोर्ट में चुनौती दी गई है. इस संदर्भ में पीपल फॉर रिस्पांसिबल गवर्नेंस नामक संस्था ने हाई कोर्ट के समक्ष आदेवन दाखिल किया है और सीपीएस की नियुक्ति को चुनौती दी है. हाई कोर्ट ने इस आवेदन को स्वीकार करते हुए राज्य सरकार को नोटिस जारी किया है. अदालत ने राज्य सरकार से जवाब तलब किया है.
इस मामले को हिमाचल हाई कोर्ट के न्यायाधीश न्यायमूर्ति तरलोक सिंह चौहान व न्यायमूर्ति वीरेंद्र सिंह की खंडपीठ देख रही है. खंडपीठ ने सीपीएस की नियुक्ति वाले मामले पर आगामी सुनवाई 21 अप्रैल को तय की है. याचिका में हाई कोर्ट के समक्ष हिमाचल संसदीय सचिव (नियुक्ति, वेतन, भत्ते, शक्तियां, विशेषाधिकार और सुविधाएं) अधिनियम- 2006 को निरस्त करने की गुहार लगाई गई है. पीपल फॉर रिस्पांसिबल गवर्नेंस ने अब वर्ष 2016 में बनाए गए संसदीय सचिवों के बदले में अब नियुक्त किए गए छह मुख्य संसदीय सचिवों को प्रतिवादी बनाए जाने के लिए आवेदन किया है.
यहां उल्लेखनीय है कि याचिकाकर्ता ने वर्ष 2016 में हिमाचल संसदीय सचिव (नियुक्ति, वेतन, भत्ते, शक्तियां, विशेषाधिकार और सुविधाएं) अधिनियम- 2006 को चुनौती दी थी। अभी तक हाई कोर्ट में यह मामला लंबित है. उस समय याचिकाकर्ता ने तत्कालीन नौ मुख्य संसदीय सचिवों को प्रतिवादी बनाया था. आवेदन के माध्यम से अदालत को बताया गया कि पुरानी सरकार बदल चुकी है और मामले का निपटारा करने के लिए नए मुख्य संसदीय सचिवों को प्रतिवादी बनाया जाना आवश्यक है.
हिमाचल हाई कोर्ट के समक्ष दाखिल किए गए आवेदन में अर्की विधानसभा क्षेत्र से निर्वाचित संजय अवस्थी, कुल्लू से सुंदर सिंह, दून से चौधरी रामकुमार, रोहड़ू से मोहन लाल ब्राक्टा, पालमपुर से आशीष बुटेल और बैजनाथ से किशोरी लाल को प्रतिवादी बनाए जाने की गुहार लगाई है. अदालत में पेश आवेदन में दलील दी गई है कि हिमाचल और असम में संसदीय सचिव की नियुक्ति के लिए बनाए गए अधिनियम एक जैसे हैं. आरोप लगाया गया है कि राज्य सरकार को यह पता है कि सुप्रीम कोर्ट ने असम और मणिपुर में संसदीय सचिव की नियुक्ति के लिए बनाए गए अधिनियम को गैरकानूनी करार दिया है. फिर भी हिमाचल सरकार ने मुख्य संसदीय सचिवों की नियुक्ति की है.
कहा गया है कि सरकार की तरफ से नियुक्त सभी मुख्य संसदीय सचिव लाभ के पदों के तहत हैं. इन सभी को प्रतिमाह 2 लाख, 20 हजार रुपए वेतन और भत्तों को रूप में दिए जाते हैं. संस्था ने आरोप लगाया है कि सीपीएस की नियुक्ति कानून के प्रावधानों के खिलाफ है. नियुक्त किए गए सीपीएस मंत्रियों के बराबर वेतन व अन्य सुविधाएं ले रहे हैं. यह पहले से ही हाई कोर्ट द्वारा एक मामले में जारी किए गए फैसले के खिलाफ है. आवेदन में कहा गया है कि मुख्य संसदीय सचिवों की नियुक्ति को पंजाब एंड हरियाणा हाई कोर्ट भी गैरकानूनी ठहरा चुका है. भारतीय संविधान के अनुच्छेद-164 में किए गए संशोधन के मुताबिक किसी भी राज्य में मंत्रियों की संख्या विधायकों की कुल संख्या का 15 प्रतिशत से अधिक नहीं हो सकती. हिमाचल प्रदेश में सीपीएस नियुक्त करने के बाद मंत्रियों की संख्या 15 फीसदी से अधिक हो गई है.
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