शिमला: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने एक अहम फैसला दिया है. अदालत ने कहा कि मां बनने का अधिकार भी सबसे महत्वपूर्ण मानवाधिकारों में से एक है और इस अधिकार की रक्षा हर कीमत पर की जानी चाहिए. इसके अलावा हाईकोर्ट ने निर्देश दिया कि जहां भी लागू हो, मैटरनिटी लीव के लाभ से जुड़े अधिनियम के प्रावधानों को सख्ती से लागू किया जाना चाहिए. एक मामले की सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट के न्यायाधीश न्यायमूर्ति विवेक सिंह ठाकुर ने उपरोक्त निर्णय दिए.
मामला शिमला के एक निजी स्कूल लॉरेटो कान्वेंट स्कूल तारा हॉल (तारा हॉल स्कूल के नाम से चर्चित) की एक शिक्षिका की मैटरनिटी लीव से जुड़ा है. ताराहाल स्कूल प्रबंधन ने हाईकोर्ट में एक याचिका दाखिल की थी, लेकिन अदालत ने टिप्पणी करते हुए कहा कि मां बनने का अधिकार सबसे महत्वपूर्ण मानवाधिकार है. इस टिप्पणी के साथ ही फैसले के रूप में हाईकोर्ट ने तारा हॉल स्कूल प्रबंधन की याचिका खारिज कर दी.
याचिका को खारिज करते हुए हाईकोर्ट ने ये स्पष्ट किया कि एक नियोक्ता और एक कर्मचारी के रिश्ते के लिए उनके बीच आपसी भरोसे की जरूरत होती है. खासकर एक शिक्षा संस्थान में, जहां शिक्षण गतिविधियों और सीखने के लिए अनुकूल माहौल की आवश्यकता होती है. इसलिए यदि लॉरेटो कॉन्वेंट स्कूल तारा हॉल प्रशासन मातृत्व लाभ अधिनियम 1961 के तहत तैनात श्रम अधिकारी के निर्देश के अनुसार सहायक अध्यापक की नियुक्ति स्वीकार करने का इरादा नहीं रखता है तो उन्हें सहायक अध्यापक को पहले से ही दिए गए मातृत्व लाभ के अलावा 15 लाख रुपये का मुआवजा देना होगा.