शिमला: पांच साल बाद आने वाले लोकतंत्र के पर्व में सभी नेता जीत की कामना लेकर किस्मत आजमाते हैं. लोकतंत्र में जनता क्यों सर्वोपरि होती है, उसका अंदाजा चुनाव परिणाम से लगता है. हिमाचल में कुछ सीटों पर हर बार नेता जीत की दहलीज पर पहुंचते तो हैं, लेकिन विजयश्री उनके हाथों से रेत की मानिंद फिसल कर विरोधी के पास चली जाती है. किसी के हिस्से में जीत तो किसी के हिस्से में हार, लेकिन अंतर मामूली सा. हिमाचल प्रदेश में एक बार तो जीत का अंतर महज तीन मतों का रह गया था. अनेक बार ऐसा हुआ है कि दिग्गज नेता तक परिणाम आने पर हक्के-बक्के रह गए. विधानसभा चुनाव परिणाम ये समझने में मदद करते हैं कि कैसे जनता अपनी राय मतों के जरिए व्यक्त करती है. (Himachal Election History) (Himachal Assembly Election 2022) (Election in Himachal)
वर्ष 1998 की बात है- हिमाचल में पहली बार भाजपा की सरकार पांच साल चली. तब प्रेम कुमार धूमल सीएम बने थे. उस चुनाव में यही रोचक और उल्लेखनीय बात नहीं थी. इससे भी बढ़कर हैरान करने वाली बात चुनाव परिणाम से जुड़ी थी. ऊना जिले की कुटलैहड़ सीट से भाजपा के रामदास मलांगड़ महज तीन मतों से जीते थे. वे बाद में विधानसभा उपाध्यक्ष बनाए गए. यही नहीं, रामदास मलांगड़ 1993 में भाजपा की ही टिकट पर 972 मतों से जीते थे. हिमाचल के चुनावी इतिहास में सबसे कम मतों से जीत का रिकॉर्ड रामदास मलांगड़ के नाम रहा. इसके अलावा रोचक तथ्य ये भी है कि पांच सौ से कम मतों से राजीव सैजल भी दो बार चुनाव जीते हैं. 2012 में राजीव सैजल 24 मतों से और 2017 में 442 मतों से जीते. (Assembly elections held so far in Himachal)
1972 में पहली बार हुए चुनाव- हिमाचल प्रदेश में चुनावी इतिहास पर नजर डालें तो यहां सभी 68 सीटों पर वर्ष 1972 में पहली बार चुनाव हुए. इसी चुनाव में हिमाचल ने तीसरी विधानसभा का गठन किया था. खास बात यह रही कि 1972 के चुनाव में 27 सीटों का फैसला 2000 से कम मतों से हुआ था. अगला चुनाव 1977 में हुआ. तब यहां भाजपा नहीं थी और कांग्रेस के अलावा जनता पार्टी प्रमुख दल था. वर्ष 1977 में चर्चित नेता शांता कुमार कांगड़ा जिले की सुलह सीट से चुनाव जीते थे. इस चुनाव में भी 16 सीटों का परिणाम बहुत नजदीकी रहा. फिर 1982 में पांचवीं विधानसभा के लिए चुनाव हुआ और इस चुनाव में 26 सीटों पर मुकाबला 2000 से कम अंतर पर तय हुआ. बाद में वर्ष 1985 में छठी विधानसभा के लिए चुनाव हुआ. शिमला जिले की जुब्बल कोटखाई सीट से वीरभद्र सिंह ने भी चुनाव लड़ा था. इस चुनाव में 22 सीटों का फैसला 2000 से कम मतों से हुआ. (Himachal Assembly Election 1972)
1993 में CM जयराम ने पहला चुनाव लड़ा- अगला चुनाव 1990 में सातवीं विधानसभा के लिए हुआ. इस चुनाव में वीरभद्र सिंह रोहड़ू से और ठाकुर रामलाल जुब्बल-कोटखाई से चुनाव लड़े. इस चुनाव में 2000 से कम वोटों से तय हुई सीटों की संख्या सबसे कम थी. तब चुनाव में सात सीटों का फैसला 2000 से कम मतों से हुआ था. इस चुनाव में भाजपा ने कांग्रेस को हरा दिया था और शांता कुमार मुख्यमंत्री बने थे. अगले चुनाव में 1993 में 19 सीटें 2000 से कम वोटों के अंतर पर तय हुई थी. उल्लेखनीय है कि वर्ष 1993 में वर्तमान मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने भी पहला चुनाव लड़ा था. जयराम ठाकुर तब अपना पहला चुनाव कांग्रेस के मोतीराम से महज 1951 वोट से हार गए थे. (Himachal Election History) (Himachal Assembly Election 2022) (Election in Himachal)
पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल पहली बार वर्ष 1998 में हमीरपुर की बमसन सीट से चुनाव लड़े थे और 8828 वोटों से जीते. इस चुनाव में पंडित सुखराम की हिमाचल विकास कांग्रेस की एंट्री हुई और तब 23 सीटें 2000 से कम वोटों के अंतर पर तय हुई थी. फिर वर्ष 2003 में वीरभद्र सिंह की अगुवाई में कांग्रेस ने बीजेपी को मात दे दी. इस चुनाव में भी 11 सीटों का फैसला 2000 से कम मतों के अंतर पर हुआ. इसका अगला चुनाव 2007 में 11वीं विधानसभा के लिए आया जिसमें भाजपा ने कांग्रेस को सत्ता से बाहर कर दिया. इस चुनाव में भी 16 सीटों का फैसला 2000 वोट से कम अंतर पर हुआ. 2012 में हुए 12वीं विधानसभा के चुनाव में कांग्रेस फिर सत्ता में लौटी, लेकिन 15 सीटों का फैसला 2000 वोट से कम अंतर पर हुआ. इसके बाद 2017 में हुए 13वीं विधानसभा के चुनाव में भाजपा को 44 सीटें मिली. इस बार 18 सीटों पर जीत का अंतर बेहद कम था. किन्नौर सीट पर जगत सिंह नेगी महज 120 मतों से जीते थे. (himachal assembly election 2017 result) (himachal assembly election 1998 result)
पांच सौ मतों से कम जीत- हिमाचल में 1993 में राकेश सिंघा 159 मतों से, कुलदीप पठानिया बमसन से 215, आईडी धीमाने 447 व मनजीत सिंह नादौनता से 171 मतों से जीते. इसी तरह 1998 में कृष्णा मोहिनी 26, रामदास मलांगड़ 03, देशराज 148, विपिन परमार 125, आशा कुमारी 421 व कुल्लू से चंद्रमोहन 38 मतों से जीते. 2003 में सतपाल सिंह सत्ती 51 व दामोदर दास 188 मतों से जीते, 2007 में निखिल राजौर 118, योगराज 342, तुलसीराम 16 व खीमीराम 232 मतों से जीते. 2012 में विक्रम जरियाल 111, कुलदीप पठानिया 478, राजीव सैजल 24 और वर्ष 2017 में आईडी लखनपाल 439, राजीव सैजल 442 व जगत नेगी 120 मतों से जीते हैं. (Himachal Assembly Election 2012) (Himachal Assembly Election 2003)
हिमाचल में चुनाव और दो हजार से कम मतों से जीत-वर्ष 1993 में किन्नौर सीट से कांग्रेस के प्रत्याशी देवराज नेगी 882 मतों से जीते. ठियोग से भाजपा के राकेश वर्मा 1404 मतों से विजयी हुए. इसी तरह शिमला से माकपा के राकेश सिंघा 159 मतों से जीते. दून से कांग्रेस लज्जाराम चौधरी 563 मतों से, नादौन से कांग्रेस के एनसी पराशर 1065 मतों से, हमीरपुर से ठाकुर जगदेव चंद 1146 वोटों से, कांग्रेस के कुलदीप पठानिया बमसन से 215 मतों से, भाजपा के आईडी धीमान मेवा सीट से 447 मतों से, हमीरपुर की ही नादौनता से निर्दलीय मनजीत सिंह 171 मतों से और ऊना से कांग्रेस के ओपी रत्न 802 वोटों से जीत हासिल करने में कामयाब रहे थे.