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Himachal CM Helicopter: सुक्खू सरकार चाहे सस्ता चौपर, जानें सीएम के हेलीकॉप्टर पर कितना खर्च करती है सरकार ?

हिमाचल के मुख्यमंत्री सुखविंदर सुक्खू फिलहाल बिना हेलीकॉप्टर के घूम रहे हैं. आर्थिक संकट से जूझ रही हिमाचल सरकार सस्ता हेलीकॉप्टर ढूंढ रही है. आइये आपको बताते हैं कि आखिर सीएम के हेलीकॉप्टर पर सरकार कितना खर्च करती है और क्या होती है इसकी नियम और शर्तें ?

Himachal CM Helicopter
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Published : Jun 23, 2023, 8:04 PM IST

शिमला: इन दिनों हिमाचल की सुखविंदर सिंह सरकार बिना चौपर के चल रही है. आर्थिक संकट से जूझ रही सरकार महंगे चौपर की उड़ान भरने से गुरेज कर रही है. सरकार चाहती है कि सीएम के लिए लीज पर लिए जाने वाला हेलीकॉप्टर कुछ सस्ता मिले तो बात आगे बढ़ाई जाए. सौदा महंगा बैठने के कारण दो बार टेंडर निरस्त करने पड़े हैं. अब नए सिरे से आमंत्रित किए गए टेंडर से बात बनने की उम्मीद है.

कुछ दिन बाद टेंडर खुलेंगे और अगर सब कुछ बजट में रहा तो जुलाई महीने के पहले हफ्ते में सुक्खू सरकार हेलीकॉप्टर लीज पर लेगी. फिलहाल, 26 सीटर यानी बड़े हेलीकॉप्टर से परहेज किया जा सकता है और चार सीटर चौपर पर डील पक्की हो सकती है. दरअसल इन दिनों सुखविंदर सिंह सुक्खू के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार इन दिनों बिना चौपर के है. आलम ये है कि सीएम सुखविंदर सिंह सुक्खू मंगलवार को कमर्शियल फ्लाइट से ही दिल्ली गए थे.

आर्थिक संकट से जूझ रही है सरकार

आर्थिक संकट और महंगा चौपर- हिमाचल सरकार आर्थिक संकट से जूझ रही है, प्रदेश का कर्ज का बोझ 75 हजार करोड़ पहुंच गया है. हिमाचल के लिए लीज पर लिया गया छोटा हेलीकॉप्टर सालाना 20 करोड़ और बड़ा 45 से 50 करोड़ रुपए में पड़ता है. यानी एक सरकार पांच साल में करीब 200 करोड़ रुपए से अधिक हवाई उड़ानों पर ही खर्च करती है. इसमें अधिकांश रूप से इसका प्रयोग सीएम और राज्यपाल करते हैं.

बिना चौपर के बीत रहा जून- राज्य सरकार के लिए लीज पर चौपर लेने के लिए सामान्य प्रशासन विभाग टेंडर आमंत्रित करता है. पूर्व की जयराम सरकार नई सरकार के लिए पीएचएल यानी पवनहंस लिमिटेड कंपनी का छोटा चौपर छोड़ गई थी. उसकी लीज अवधि खत्म होने पर एक्सटेंड की गई थी. अब एक्सटेंडेड लीज पीरियड भी जून की पहली तारीख को पूरा हो चुका है. इस तरह जून की पहली तारीख से लेकर अब तक राज्य सरकार बिना चौपर के है.

जून महीने में बिना हेलीकॉप्टर के हिमाचल के सीएम सुखविंदर सुक्खू

तीसरे टेंडर से उम्मीद-सरकार के सामान्य प्रशासन विभाग ने दो बार टेंडर बुलाए थे. दोनों ही बार जिन कंपनियों ने पार्टिसिपेट किया, उन्होंने रेट अधिक लगाए थे. सरकार को ये रेट महंगा लगा तो टेंडर निरस्त कर दिए गए. अब तीसरी दफा टेंडर लगाया गया है. जीएडी के सूत्रों के अनुसार इस बार चौपर को लेकर बात बन जाएगी. जब सरकार ने दूसरी दफा टेंडर आमंत्रित किए थे तो कुल तीन कंपनियों ने प्रक्रिया में हिस्सा लिया था. जीएडी की शर्तों पर तीन कंपनियों में से केवल दो ही खरा उतरी थीं. लीज अवधि खत्म होने से पहले राज्य सरकार जिस चौपर का यूज कर रही थी, उसका प्रति घंटा किराया 2.30 लाख रुपये था. दूसरी बार के टेंडर में अगस्ता वैस्टलेंड कंपनी ने ये किराया 3.40 लाख रुपए प्रति घंटा कोट किया.

हेलीकॉप्टर लीज पर लेने की शर्त

हिमाचल सरकार पवनहंस के भरोसे- हिमाचल में अधिकतर सरकारों ने पवनहंस कंपनी को ही प्रेफर किया है. इसके अलावा मैस्को कंपनी व स्काई वन कंपनी भी हिमाचल में काम करती आई है. पूर्व में जयराम सरकार पवनहंस कंपनी के बड़े चौपर का इस्तेमाल किया, जिसका किराया प्रति घंटा 4.80 लाख रुपए तय था. अभी सुखविंदर सरकार ने दूसरी बार जो टेंडर मांगे गए, उसमें पवनहंस कंपनी ने बड़े चौपर के लिए 5.40 लाख रुपए प्रति घंटा का रेट कोट किया था.

चौपर लीज पर लेने की शर्तें- सरकार जब चौपर लीज पर लेती है तो मैंटेनेंस और अन्य खर्च कंपनी का होता है. सरकार के लिए शर्त यही होती है कि महीने में कम से कम चालीस घंटे की उड़ान जरूरी भरनी होती है. यदि सरकार महीने में चालीस घंटे से कम उड़ान भरे तो भी किराया चालीस घंटा प्रति माह का ही देना होता है. अगर इससे अधिक की उड़ान हो तो आगे का किराया अलग से कैलकुलेट होता है. मान लीजिए अगर सरकार को नया छोटा चौपर साढ़े तीन लाख रुपए प्रति घंटा के हिसाब से मिले तो ये 1.40 करोड़ रुपए प्रति माह बनता है यानी साल भर का खर्च 16.80 करोड़ रुपए होता है. जरूरी नहीं कि चौपर की उड़ान महीने में चालीस घंटे ही हो. आपात स्थितियों में ये उड़ान पचास घंटे की अवधि भी क्रॉस कर जाती है. ऐसे में खर्च और बढ़ जाता है.

जयराम ठाकुर पवन हंस हेलीकॉप्टर में भरते थे उड़ान

मुख्यमंत्रियों पर लगते हैं चौपर के मिसयूज के आरोप- हिमाचल में सरकार किसी की भी हो, हर मुख्यमंत्री पर चौपर के मिसयूज का आरोप लगता रहा है. जब वीरभद्र सिंह राज्य सरकार के मुखिया थे तो भाजपा आरोप लगाती थी कि वे हैलीकॉप्टर से नीचे नहीं उतरते. फिर जयराम सरकार सत्ता में आई तो उनपर भी ये आरोप लगे. अब सुखविंदर सिंह सरकार पावर में है तो भाजपा आरोप लगाती है कि चौपर का मिसयूज हो रहा है. अप्रैल 2021 में तत्कालीन जयराम सरकार के कैबिनेट मंत्री सुरेश भारद्वाज ने कांग्रेस पर तंज कसते हुए कहा था कि क्या जब पूर्व में कांग्रेस सरकारें सत्ता में थी तो वे घोड़े या खच्चर पर दिल्ली जाते थे ? सुरेश भारद्वाज ने तब कहा था कि हैलीकॉप्टर हर सरकार की जरूरत है और इस पर राजनीति नहीं होनी चाहिए.

वीरभद्र सिंह और प्रेम कुमार धूमल

जयराम सरकार के समय बड़े और छोटे चौपर का प्रयोग- जयराम सरकार दिसंबर 2017 में सत्ता में आई थी. उस समय पवनहंस कंपनी का चौपर प्रयोग में लाया जा रहा था. उसमें निरंतर तकनीकी खराबी आ रही थी. इस कारण वर्ष 2019 में सरकारी कंपनी पवनहंस की जगह स्काई वन एयरवेज का रुख किया गया. वर्ष 2019 में 22 सीटर स्काई वन कंपनी का हेलीकॉप्टर लीज पर लिया गया. इसका किराया प्रति घंटा 5.10 लाख रुपए था. पवनहंस कंपनी के चौपर में जब खराबी आना शुरू हुई तो दो महीने के लिए तत्कालीन सीएम जयराम ठाकुर के लिए 2018 में एक निजी कंपनी का हेलीकॉप्टर दो माह के लिए किराए पर लिया गया था. इससे पहले राज्य सरकारें मैक्स कंपनी का चौपर भी प्रयोग करती रही. प्रेम कुमार धूमल के समय मैक्स कंपनी का चौपर था. फिर लंबे समय तक भाजपा व कांग्रेस सरकारों ने पवनहंस कंपनी का हेलीकॉप्टर प्रयोग किया.

बड़ा हेलीकॉप्टर हिमाचल की जरूरत है

हिमाचल में हेलीकॉप्टर की जरूरत- हिमाचल प्रदेश में कई दुर्गम इलाके हैं. बर्फबारी में जनजातीय जिलों से बीमार लोगों को जिला मुख्यालय लाने के लिए सरकारी हेलीकॉप्टर प्रयोग होता रहा है. जब अटल टनल नहीं बनी थी तो सरकार हर साल जनजातीय जिलों के लिए 14 करोड़ रुपए का बजट एमरजेंसी हवाई उड़ानों के लिए रखती थी. नोटबंदी के दौरान हिमाचल में वीरभद्र सिंह सरकार ने 18 नवंबर 2016 को चौपर के जरिए जनजातीय जिलों में 29 करोड़ रुपए की नकदी पहुंचाई थी. इसके अलावा सर्दियों में बड़ा भंगाल सहित अन्य दुर्गम इलाकों में हजारों टन राशन, मिट्टी का तेल आदि हेलीकॉप्टर से पहुंचाया जाता है. एमरजेंसी में मरीजों को एयरलिफ्ट किया जाता है.

हेलीकॉप्टर का इस्तेमाल प्रदेश के दुर्गम इलाकों में आपात स्थिति में भी होता है

वरिष्ठ पत्रकार संजीव कुमार शर्मा का कहना है कि बड़ा हेलीकॉप्टर हिमाचल की जरूरत है. भौगोलिक रूप से हिमाचल को हवाई उड़ानों की हमेशा से जरूरत रही है. एमरजेंसी में मरीजों को एयरलिफ्ट करने से कई अनमोल जीवन बचाए गए हैं. इसके अलावा आपदा में फंसे लोगों के लिए भी हवाई सेवा वरदान साबित होती है. ये बात अलग है कि चौपर का मिसयूज करने का आरोप हर सियासी दल लगाता है, लेकिन ये पहाड़ी राज्य के लिए बहुत ही जरूरी है.

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