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Himachal Apple News: किलो के हिसाब से सेब बेचने के सिस्टम से आढ़ती-खरीदार खुश नहीं, बागवानों की मुसीबतें भी बढ़ी

Himachal Apple News: हिमाचल प्रदेश में इस बार मंडियों में सेब वजन के हिसाब से बिक रहा है. वजन के हिसाब से दाम मिलना बागवानों के हित में है, लेकिन बागवान बार-बार तौलकर भी कार्टन में निर्धारित 24 किलो तक सेब पैकिंग नहीं कर पा रहे. इससे बागवानों को काफी परेशानी हो रही है. पढ़ें पूरी खबर...

Himachal Apple News
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Published : Jul 1, 2023, 8:20 PM IST

Updated : Jul 1, 2023, 9:07 PM IST

आढ़तियों, खरीदारों से ETV BHARAT की खास बातचीत.

शिमला: हिमाचल में सेब सीजन की शुरुआत हो गई है. हालांकि अभी अर्ली वैरायटी का सेब रेड जून और टाइडमैन ही मंडियों में आ रहा है. शिमला की भट्टाकुफर फल मंडी में भी टाइडमैन सेब पहुंचने लगा है. सेब के शुरुआती दाम अच्छे हैं. बेहतर क्वालिटी का सेब 100 से 120 रुपए किलो के हिसाब से बिक रहा है. रेड जून भी मंडी में आ रहा है, लेकिन इसमें क्वालिटी अच्छी नहीं है. यही वजह है कि यह 35 रुपए किलो के आसपास बिक रहा है.

पहली बार वजन के हिसाब से बिक रहा है टाइडमैन:हिमाचल में पहली बार वजन के हिसाब से सेब बिक रहा है. अन्य मंडियों की तरह शिमला में भी वजन के हिसाब से अब सेब के दाम तय हो रहे हैं. वजन के हिसाब से दाम मिलना बागवानों के हित में है, अब सेब के दाम बागवानों को किलो के हिसाब से मिलने लगे हैं, जिसकी बागवान मांग भी कर रहे थे, लेकिन उनकी परेशानी अभी भी कम नहीं हुई है. बागवान बार-बार तौलकर भी कार्टन में निर्धारित 24 किलो तक सेब पैकिंग नहीं कर पा रहे. सेब का वजन और साइज अलग-अलग होने से एक फिक्स पैकिंग करना संभव नहीं है. इसके बाद मंडियों में अब उनको वजन के हिसाब से रेट के लिए जूझना पड़ रहा है.

पहली बार वजन के हिसाब से बिक रहा है टाइडमैन

'बिना किसी इंतजाम कर लागू कर दी व्यवस्था':सरकार ने सेब वजन के हिसाब से बेचने का फरमान तो जारी कर दिया है, लेकिन इसके लिए मंडियों में उचित व्यवस्था नहीं है. शिमला फल मंडी की बात की जाए तो यहां पर स्पेस की कमी है. भट्टाकुफर फल मंडी पर कुछ साल पहले भूस्खलन हो गया था, जिससे इसका एक बड़ा हिस्सा खराब हो गया है. वहीं अबकी बार वजन के हिसाब से सेब बेचने के लिए आढ़तियों को जगह की जरूरत महसूस हो रही है. कई सालों से यहां काम कर रहे आढ़ती कृष्ण कुमार सूद का कहना है कि वे वजन के हिसाब से सेब लेने को तैयार है, लेकिन इसमें उनको बहुत दिक्कत आ रही है, मंडी में उतारने के लिए जगह नहीं है. वजन करने में समय लग रहा है गाड़ी उतारने में काफी समय लग रहा है.

निर्धारित मात्रा से ज्यादा सेब भी ला रहे बागवान:आढ़ती का काम कर रहे रोहित का कहना है कि हालांकि सरकार के फैसले का बागवानों को जानकारी जरूर है, लेकिन वे निर्धारित 24 किलो से ज्यादा की पैकिंग भी मंडियों में ला रहे हैं. इस तरह पहले बागवानों को सेब पैक करने से पहले तोलना पड़ रहा है तो दूसरी ओर मंडियों में भी सेब को तोलकर लेना पड़ रहा है. आगे खरीदार भी अब तोलकर ही सेब मांग रहा है. इस तरह लंबी प्रक्रिया हो गई है.

निर्धारित मात्रा से ज्यादा सेब भी ला रहे बागवान

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'सरकार को समय रहते करनी चाहिए थी तैयारी':सेब खरीदार मोहम्मद आसिफ का कहना है कि जब सरकार ने वजन के हिसाब से सेब लेने की व्यवस्था कर दी है तो साइज के हिसाब से भी इसका अलग रेट तय होता. उनका कहना है कि वजन के हिसाब से सेब की व्यवस्था करने से आगे भी खरीदार इसी व्यवस्था से सेब ले रहे हैं. इससे सेब की पेटियों को बार बार तोलना पड़ रहा है. इससे सेब के डैमेज होने की संभावना ज्यादा बढ़ गई है. उनका कहना है कि सरकार ने इस सिस्टम के लिए समय रहते तैयारियां नहीं की. उनका कहना है कि आने वाले समय में जब सेब सीजन चरम पर होगा तो बहुत ज्यादा दिक्कत मंडियों में आएगी.

किलो के हिसाब से सेब बेचने के सिस्टम से आढ़ती-खरीदार खुश नहीं

'समय पर नहीं हो रही लोडिंग':सेब खरीदने मंडी पहुंच रहे लदानियों यानी खरीदारों का कहना है कि वजन के हिसाब से पेटियों को खरीदने और फिर बेचने की व्यवस्था से काफी देरी हो रही है. उनको इसमें काफी समय लग रहा है. सरकार ने हिमाचल में वजन के हिसाब से सेब बेचने की व्यवस्था तो कर दी है लेकिन बाहर की मंडियों में यह व्यवस्था लागू नहीं होगी. ऐसे में वे बाहर की मंडियों से सेब खरीदना बेहतर समझेंगे.

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'जब सभी परेशान हैं तो किसके लिए यह व्यवस्था':फल मंडी में कई दशकों से सेब का कारोबार कर रहे अतर सिंह कहते हैं कि सरकार ने एक ऐसी व्यवस्था की है, जिसमें कोई भी पक्ष सहमत नहीं है. उनका मानना है कि सरकार को इस फैसले को वापस लेना चाहिए, क्योंकि किलो के हिसाब से माल बेचना संभव नहीं. आढ़तियों के पास जगह नहीं है. मंडी में एक आढ़ती के पास 200 वर्ग मीटर जगह भी नहीं है. यही नहीं किसान भी इससे खुश नहीं है, क्योंकि उनको भी तोलना पड़ रहा है. उनका कहना था सरकार को चाहिए था कि सेब के लिए यूनिवर्सल कार्टन लाते, तब किसी को तोलने का कोई झंझट नहीं होता.

आढ़तियों का कहना है कि वजन करने में समय लग रहा है गाड़ी उतारने में काफी समय लग रहा है.

उनका कहना है कि अगर कोई ऐसा फैसला करना है तो कम से कम एक साल पहले यह लिया जाना चाहिए. उनका कहना है कि सरकार को अभी यह फैसला करना चाहिए कि अगले साल से टेलीस्कोपिक पूरी तरह से बंद हो और सभी कंपनियों को यूनिवर्सल कार्टन बनाने के आदेश दिए जाएं. इससे भी बेहतर तो यह है कि डिस्पोजल क्रेट में सेब बेचने की व्यवस्था की जाए. इससे किसी के साथ भी चीटिंग नहीं होगी. उनका कहना है कि जब अन्य फल डिस्पोजल क्रेट में बिक रहा है तो सेब क्यों नहीं बेचा जा सकता.

यूनिवर्सल कार्टन की मांग.

'दो से चार किलो काटा जा रहा कार्टन का वजन':उधर, बागवानों की समस्या यह है कि वे सेब को कार्टन में तय मात्रा में नहीं भर पा रहे क्योंकि पूरे कार्टन को सेब से भरना जरूरी होता है. अगर ऐसा नहीं किया जाता तो सेब डैमेज हो जाता है. ऐसे में 24 किलो तक सेब को फिक्स करना संभव नहीं है. वहीं मंडी में उनसे कार्टन के वजन के नाम से 2 से 4 किलो तक का वजन काटने की बात बागवान कर रहे हैं. कोटखाई से आए बागवान रवि शुक्ला का कहना है कि उन्होंने 24 किलो के हिसाब से सेब की पेटियां भरी थीं, लेकिन उनका सीधा वजन 2 किलो कम किया गया है.

कई बागवान इसे ज्यादा वजन के भी पेटियां ला रहे हैं, क्योंकि पेटियों को एक निर्धारित वजन से हिसाब से भरना संभव नहीं है. सब्जियों की तरह सेब की निर्धारित वजन में पैकिंग करना संभव नहीं है. ऐसे में जब बागवान ज्यादा वजन के पेटियां ला रहे हैं तो कार्टन के वजन के नाम से बागवानों को 22 किलो का ही रेट दिया जा रहा है. कोटखाई से सेब बेचने आए एक अन्य बागवान का कहना था कि उन्होंने 26 किलो की पेटियां लाई थी और उसमें सीधा 4 किलो वजन कार्टन का काटा गया है.

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Last Updated : Jul 1, 2023, 9:07 PM IST

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