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आंगनवाड़ी वर्कर-हेल्पर पॉलिसी पर HC नाराज, सरकार से पूछा किस आधार पर आंकी 41 रुपये दैनिक आय

न्यायाधीश तरलोक सिंह चौहान ने उक्त आदेश प्रार्थी संगीता द्वारा दायर याचिका को स्वीकार करते हुए आंगनवाड़ी वर्कर-हेल्पर पॉलिसी पर टिप्पणी की है. अदालत ने आश्चर्य जताते हुए कहा कि राज्य सरकार के अधिकारी किस तरह से इस नतीजे पर पहुंचे कि एक परिवार एक दिन में  मात्र 41 रूपये में गुजारा कर सकता है.

आंगनवाड़ी

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Published : Aug 25, 2019, 7:27 PM IST

शिमलाः हिमाचल प्रदेश में आंगनबाड़ी कार्यकर्त्ता और हेल्पर के पदों को भरने के लिए राज्य सरकार द्वारा बनाई गई पॉलिसी पर प्रदेश हाई कोर्ट ने कड़ी टिप्पणी की है. न्यायाधीश तरलोक सिंह चौहान ने राज्य के मुख्य सचिव को आदेश दिए है कि वह सभी सम्बंधित अधिकारिओ से मीटिंग करे और नई पालिसी को बनाने के लिए संभावनाए तलाशे जो कि व्यवहारिक और तर्कपूर्ण हो.

बता दें राज्य सरकार द्वारा बनाई गई आंगनवाड़ी पॉलिसी में आंगनवाड़ी कार्यकर्ता और हेल्पर के लिए वार्षिक आय पंद्रह हजार रूपये रखी गई है जोकि प्रतिदिन के हिसाब से मात्र 41 रूपये आंकी जा सकती है. इस पर अदालत ने आश्चर्य जताते हुए कहा कि राज्य सरकार के अधिकारी किस तरह से इस नतीजे पर पहुंचे कि एक परिवार एक दिन में मात्र 41 रूपये में गुजारा कर सकता है.

पॉलिसी में दिए गए अपील के प्रावधान पर भी अदालत ने प्रतिकूल टिप्पणी दर्ज की है. पॉलिसी में दिए प्रावधानों के तहत आंगनवाड़ी कार्यकर्ता या हेल्पर की नियुक्ति को चुनौती सिर्फ पंद्रह दिनों के अंदर ही दी जा सकती है. यही नहीं अपील को निपटाने के लिए भी पंद्रह दिनों का ही समय दिया गया है जोकि व्यवहारिक और तर्कपूर्ण नहीं है.

एक ही भवन में डाक माध्यम से होता है पत्राचार, HC ने की टिप्पणी
न्यायाधीश तरलोक सिंह चौहान के राज्य सरकार के उन कर्मचारियों और अधिकारिओं की कार्यप्रणाली पर भी कड़ी प्रतिकूल टिप्पणी की है जो एक ही छत के नीचे स्थापित है और उसी भवन में स्थापित दूसरे दफ्तर के लिए डाक के माध्यम से पत्राचार करते हैं जिसे कि सेवादार के जरिये और इमेल या अन्य माध्यमों से जल्दी भेजा जा सकता है. इससे समय और सरकारी खजाने दोनों की ही बचत होगी.

न्यायाधीश तरलोक सिंह चौहान ने उक्त आदेश प्रार्थी संगीता द्वारा दायर याचिका को स्वीकार करते हुए पारित किये. एडीएम ने प्रार्थी की याचिका को यह कहकर खारिज कर दिया था कि प्रार्थी ने अपील पंद्रह दिनों के भीतर दायर नहीं की. हालांकि प्रार्थी ने दलील दी थी की चूँकि अपील दायर करने के लिए कम समय का प्रावधान रखा गया है, फिर भी उसने समय रहते अपील दायर कर दी थी.

अदालत ने मामले से जुड़े तमाम रिकॉर्ड्स का अवलोकन करने के बाद पाया गया कि प्रार्थी ने पंद्रह दिन के अंदर डीसी को अपील डाक के माध्यम से भेज दी थी और यह भी पाया कि प्रार्थी की अपील पंद्रह दिनों के भीतर डीसी कार्यलय में पहुंच गई थी. डीसी ने अपील का निपटारा करने के लिए एडीएम को पॉवर दी और अपील को डाक के माध्यम से भेजा. अदालत ने पाया कि डीसी और एडीएम एक भी भवन में स्थापित है फिर भी प्रार्थी कि अपील को डाक के माध्यम से भेजा गया जिस कारण प्रावधान के अनुसार अपील पंद्रह दिनों के भीतर एडीएम कार्यालय में नहीं पहुंची. हाई कोर्ट ने डीसी और एडीएम कि लचर कार्यप्रणाली पर प्रतिकूल टिप्पणी करते हुए प्रार्थी कि याचिका को स्वीकार करते हुए उक्त आदेश पारित किये.

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