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शिमला पुलिस की FIR खारिज...धरना प्रदर्शन और नारेबाजी अपराध नहीं: HC - himachal update

धरना प्रदर्शन व नारेबाजी संबंधी आरोपों को लेकर दर्ज एफआईआर को प्रदेश हाईकोर्ट ने नें खारिज करते हुए कहा कि शांतिपूर्ण जुलूस निकालना व नारे लगाना कोई अपराध नहीं. न्यायाधीश अनूप चिटकारा ने अधिवक्ता अनु तुली आजटा के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 341, 147, 147, 149, 353, 504, और 506 के तहत दायर प्राथमिकी को खारिज करते हुए ये बात कही.

high court himachal
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Published : Feb 25, 2021, 7:43 PM IST

शिमलाःप्रदेश हाईकोर्ट ने मुख्यतः धरना प्रदर्शन व नारेबाजी तथा इस वजह से सरकारी काम में बाधा उत्पन्न करने संबंधी आरोपों को लेकर दर्ज एफआईआर को खारिज करते हुए कहा कि शांतिपूर्ण जुलूस निकालना व नारे लगाना भारत के संविधान के तहत कोई अपराध नहीं है और न ही कभी हो सकता है. न्यायाधीश अनूप चिटकारा ने अधिवक्ता अनु तुली आजटा के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 341, 147, 147, 149, 353, 504, और 506 के तहत दायर प्राथमिकी को खारिज करते हुए ये बात कही.

प्रार्थी का पक्ष

प्रार्थी के अनुसार 19 जुलाई 2019 को बालूगंज में एकत्रित होकर वकील शिमला बस अड्डे की ओर से प्रतिबंधित मार्ग चौड़ा मैदान होते हुए जिला न्यायालय परिसर चक्कर जाने के लिए छूट की मांग कर रहे थे. उन्हें उक्त मार्ग से जाने पर रोकने का शांतिपूर्ण तरीके से विरोध कर रहे थे. पुलिस ने आंदोलन को दबाने के लिए दुर्भावनापूर्ण इरादे से एक मनगढ़ंत प्राथमिकी दर्ज की और पुलिस ने प्रार्थी को भी एक आरोपी बनाया.

क्या है अभियोजन पक्ष

अभियोजन पक्ष के अनुसार बालूगंज बाजार में बड़ी संख्या में वकील इकट्ठे हुए थे और वे अपने वाहनों को प्रतिबंधित सड़क के माध्यम से बिना रोकटोक जाने की मांग कर रहे थे. जबकि उनके पास ऐसा करने के लिए कोई वैध परमिट नहीं था. एसएचओ बालूगजं ने जब वकीलों को प्रतिबंधित सड़क पर गाड़ी चलाने के लिए परमिट दिखाने के लिए कहा तो वकील आक्रामक हो गए और दोनों पक्षों में छुटपुट झड़प भी हुई.

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प्रार्थी को एक अभियुक्त के रूप में नामित करना कानून की प्रक्रिया का घोर दुरुपयोग

इसके बाद वकीलों के खिलाफ एक प्राथमिकी दर्ज की गई और प्रार्थी को भी उसमें नामित किया गया था जो मौके पर मौजूद थी. मामले से जुड़े रिकॉर्ड का अवलोकन करने पर कोर्ट ने पाया कि प्राथमिकी में प्रार्थी की भूमिका का उल्लेख नहीं किया गया है. कोर्ट ने कहा कि प्रार्थी को एक अभियुक्त के रूप में नामित करना कानून की प्रक्रिया का घोर दुरुपयोग है. यदि प्रार्थी के खिलाफ कार्यवाही जारी रखने की अनुमति दी जाती है तो यह न्याय के विरुद्ध होगा.

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