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चुनने से पहले सुन लें, जनता चाहे तो एक झटके में लखपति हो सकती है पंचायत

हिमाचल प्रदेश में ग्राम संसद चुनने के लिए जनता में उत्साह का माहौल है. यदि जनता चाहे तो एक झटके में उनकी पंचायत लखपति बन सकती है. हिमाचल में निर्विरोध चुने जाने वाली पंचायतों को सरकार की तरफ से दस लाख रुपए की प्रोत्साहन राशि मिलती है.

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जनता चाहे तो एक झटके में लखपति हो सकती है पंचायत

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Published : Dec 22, 2020, 4:43 PM IST

शिमला: पंचायत चुनाव की अधिसूचना जारी होते ही हिमाचल प्रदेश के ग्रामीण इलाकों में हलचल तेज हो गई है. ग्राम संसद चुनने के लिए जनता में उत्साह का माहौल है. इंटरनेट के इस जमाने में पंच, सरपंच का चुनाव लडने वाले भी हाईटैक हथियारों से लैस हैं. लोग सोशल मीडिया पर पोस्टर अपलोड करके चुनाव में खड़ा होने की सूचना दे रहे हैं. साथ ही समर्थन भी मांग रहे हैं.

सभी अपनी पंचायत को आदर्श पंचायत बनाने का दावा कर रहे हैं लेकिन इस चुनावी शोर में एक अहम बिंदु अनसुना-सा है. यदि जनता चाहे तो एक झटके में उनकी पंचायत लखपति बन सकती है. आखिर, विकास के लिए पैसा चाहिए और यदि बिना चुनावी प्रक्रिया के ही कोई पंचायत लखपति हो जाए तो क्यों न उसका लाभ उठाया जाए.

निर्विरोध पंचायत चुने जाने पर सरकार की तरफ से 10 लाख की प्रोत्साहन राशि

हिमाचल में निर्विरोध चुने जाने वाली पंचायतों को सरकार की तरफ से दस लाख रुपए की प्रोत्साहन राशि मिलती है. हिमाचल की जागरुक ग्रामीण जनता ने समझदारी का परिचय देते हुए कई बार पंचायत प्रतिनिधियों का निर्विरोध चयन किया है.

साल 2015 में शिमला जिला की 29 पंचायतों को 2.90 करोड़

वर्ष 2015 के चुनाव की बात करें तो अकेले शिमला जिला में 29 पंचायतें निर्विरोध चुनी गई थीं. इस तरह शिमला जिला की 29 पंचायतों ने एक झटके में ही 2.90 करोड़ रुपए अपने खाते में डलवा लिए थे. यह राशि विकास कार्यों में काम आई. उस दौरान शिमला जिला में भलोह, दुधाल्टी, श्यामलाघाट, कंडा, पगोग, खनेटी, नारकंडा, मझोली, मातल, प्रेमनगर, पंदराणु सहित कुल 29 पंचायतों में निर्विरोध प्रतिनिधि चुने गए थे.

साल 2010 में आम सहमति से चुनीं 106 पंचायतें

विगत पंचायत चुनाव में हिमाचल की 114 पंचायतों ने दस लाख प्रति पंचायत की इनामी राशि जीती थी. इन पंचायतों को 11.40 करोड़ रुपए इनाम के तौर पर मिले थे. वर्ष 2015 में पंचायत चुनाव पूरा होने पर बाद में डाटा कंपाइल किया गया तो कुल 114 पंचायतें निर्विरोध चुन कर आई थीं.

जिला सिरमौर इस मामले में सिरमौर साबित हुआ था. चुनावी जंग में कूदने की बजाय इन पंचायतों ने आपसी सहमति से दस लाख की राशि विकास कार्यों के लिए चुनी. उससे पहले वर्ष 2010 के पंचायत चुनाव में 106 पंचायतें आम सहमति से बिना चुनाव के चुन ली गई थीं.

क्या इस बार टूटेगा रिकॉर्ड

क्या इस बार यह रिकॉर्ड टूटेगा, यह देखना दिलचस्प रहेगा. पिछली बार के आंकड़ों पर नजर डालें तो जिला सिरमौर की कुल 228 पंचायतों में से 30 पंचायतें सर्वसम्मति से चुनी गई है. उस दौरान जनजातीय जिला लाहौल-स्पीति की जनता ने भी बेहतर उदाहरण पेश करते हुए अधिकांश पंचायतें सहमति से चुन लीं. काजा खंड में तो 13 में से 10 पंचायतें सहमति से चुनी गई.

दिलचस्प होगा निर्विरोध पंचायतें चुनते देखना

इसी तरह किन्नौर की 65 में से 13 पंचायतें बिना विरोध के आम सहमति से चुन ली गईं. तब बिलासपुर जिला ही एकमात्र ऐसा जिला रहा, जहां से एक भी पंचायत निर्विरोध नहीं चुनी गई थीं. इसी तरह प्रदेश के सबसे बड़े जिला कांगड़ा में भी कुल 4 पंचायतें ही निर्विरोध चुनी गई हैं. अन्य जिलों में चंबा में 1, हमीरपुर में 2, कुल्लू में 6, मंडी में 11, शिमला में 24, सोलन में 11 व ऊना में 2 पंचायतें सहमति से चुनी गई हैं. अब देखना है कि इस बार कितनी पंचायतें निर्विरोध चुनी जाती हैं.

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