शिमला:सरकार ने वर्ष 2030 तक प्रदेश के वन क्षेत्र को 30 प्रतिशत तक बढ़ाने का लक्ष्य रखा है. वन विभाग द्वारा विभिन्न चिन्हित स्थानों पर पौधरोपण अभियान चलाया गया है और 2019 में 1,18,932 स्थानीय लोगों की मदद से 26, 47,146 पौधे रोपित किए गए हैं. यह अभियान पांच दिनों के लिए चलाया गया था और प्रदेश के इतिहास में पहली बार पांच दिनों के भीतर एक साथ इतने पौधे रोपित किए गए थे. इस अभियान में विभिन्न वर्गों के लोगों ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया था.
वर्ष 2019 के वन सर्वेक्षण की रिपोर्ट के अनुसार हरित वन आवरण क्षेत्र जो वर्ष 2017 में 15,100 वर्ग किलोमीटर था वह वर्ष 2019 में बढ़कर 15433.52 हो गया है. भारत वन सर्वेक्षण में कुल वन आवरण क्षेत्र में आए परिवर्तन के साथ-साथ अधिक सघन, मध्य सघन तथा खुले वन क्षेत्रों में भी वृद्धि दर्ज की गई है. प्रदेश में औसतन मध्यम सघन वन क्षेत्र जो वर्ष 2017 में 6705 वर्ग किलोमीटर था, वह वर्ष 2019 में बढ़कर 7125.93 वर्ग किलोमीटर हो गया है. इसी प्रकार अधिक सघन वन क्षेत्र भी 3110 वर्ग किलोमीटर से बढ़कर 3112.71 वर्ग किलोमीटर हो गया है.
वन संवर्द्धन को आजीविका से जोड़ने के लिए जापान सरकार और भारत सरकार के सहयोग से 800 करोड़ रुपये की हिमाचल प्रदेश वन पारिस्थितिकी तंत्र प्रबंधन और आजीविका परियोजना (जेआईसीए) शुरू की है. यह परियोजना प्रदेश के छह जिलों कुल्लू, मण्डी, लाहौल-स्पिति, बिलासपुर, शिमला और किन्नौर में कार्यान्वित की जा रही है. इस परियोजना का मुख्य लक्ष्य प्रदेश में सतत सामाजिक-आर्थिक विकास के लिए वन क्षेत्र में पारिस्थितिकी में सुधार करना है.
इस परियोजना के अंतर्गत 460 कमेटियों का गठन कर वन एवं पर्यावरण संरक्षण, जैव विविधता एवं जीव जंतु, संरक्षण, आजीविका में सुधार जैसी गतिविधियों को प्रोत्साहन दिया जाएगा. इसके अतिरिक्त सरकार तथा जर्मन विकास बैंक केएफडब्ल्यू के सहयोग से जिला कांगड़ा तथा चंबा में 310 करोड़ रुपये की हिमाचल प्रदेश फॉरेस्ट इको सिस्टम क्लाईमेट प्रूफिंग परियोजना भी चलाई जा रही है.
छात्रों में वन और पर्यावरण के संरक्षण की भावना को जागरूक करने के लिए सरकार ने 'विद्यार्थी वन मित्र योजना' आरम्भ की है, जिसके अंतर्गत विभिन्न प्रजातियों के उपयोगी पौधों के रोपण के लिए विद्यालयों को वन भूमि में भूखण्ड आवंटित किए गए हैं. इसी प्रकार 'वन समृद्धि जन समृद्धि योजना' भी शुरू की गई है. इस योजना के अंतर्गत लोगों को वनों में जड़ी-बूटियों को एकत्र करके स्थानीय स्तर पर प्रसंस्करण, मूल्य वृद्धि व विपणन प्रदान किया जाएगा. जंगली जड़ी-बूटियों के माध्यम से भी रोजगार के अवसर सृजित किए जा रहे हैं और निजी भूमि में भी विभिन्न प्रकार की जड़ी-बूटियों के उत्पादन को बढ़ावा दिया जा रहा है.