शिमलाः मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर की गैर मौजूदगी में विधानसभा में गुरूवार को एफआरबीएम यानी फिस्कल रिस्पॉन्सिबिलिटी एंड बजट मैनेजमेंट एक्ट विपक्ष के हंगामे के बावजूद ध्वनिमत से पारित हो गया. कांग्रेस ने सदन से वॉकआउट किया और कहा कि सरकार प्रदेश को दिवालिया बना रही है. कर्ज लेने की लिमिट बढ़ाई जा रही है और विपक्ष इस पाप में भागीदार नहीं बनेगा. माकपा विधायक राकेश सिंघा ने बिल पर संशोधन मूव किया. उन्होंने कहा कि बिल को सिलेक्ट कमेटी को भेजा जाए. कांग्रेस का कहना था कि इतनी जल्दबाजी नहीं करनी चाहिए. कैबिनेट में इसे डिस्कस किया जाए.
सत्ता पक्ष अपने साथ विपक्ष को लेकर दिल्ली चले और केंद्र सरकार से बेल आउट पैकेज की मांग करे. बाद में विपक्ष के बहिर्गमन के बावजूद संशोधन विधेयक ध्वनिमत से पारित हो गया. विधेयक के पारित होने के बाद प्रदेश सरकारों द्वारा बीते सालों में कर्ज की तय सीमा से अधिक लिए गए लोन नियमित हो गए हैं. वित्तीय वर्ष 2019-20 व इससे पहले के सालों में सरकारों ने तय सीमा से अधिक कर्ज लिया था. लिहाजा तब लिए गए लोन को विधायिका की स्वीकृति प्रदान करने के मकसद से सरकार ने एफआरबीएम एक्ट में संशोधन किया है.
एफआरबीएम में बढ़ानी पड़ रही कर्ज लेने की सीमा
शहरी विकास मंत्री ने विपक्ष के हंगामे के बीच सदन में स्पष्ट किया कि सरकार को 2019-20 में कैंपा फंड से 1600 करोड़ की रकम मिली थी. उन्होंने कहा कि कैंपा के तहत मिली राशि कर्ज में जुड़ती है. लिहाजा सरकार को सिर्फ इसी साल के लिए एफआरबीएम में कर्ज लेने की सीमा बढ़ानी पड़ रही है.
माकपा के राकेश सिंघा के सवालों का जवाब देते हुए सुरेश भारद्वाज ने कहा कि बीते साल बजट सत्र के बाद कोरोना के चलते लॉकडाउन रहा. विधानसभा का शीतकालीन सत्र नहीं हुआ. लिहाजा सरकार मौजूदा बजट सत्र में इस संशोधन को लेकर आ रही है. राकेश सिंघा ने यही कहा था कि यदि जीडीपी के तीन फीसदी से अधिक लोन लिया गया था, तो उसे जल्द से जल्द विधेयक के जरिए रेगुलर क्यों नहीं किया गया.
विधेयक पर चर्चा के दौरान माकपा विधायक राकेश सिंघा ने कहा कि सीएजी व 14 वें वित्तायोग ने प्रदेश सरकार को एफआरबीएम कानून में संशोधन को कहा था. मगर सरकार केंद्र की हिदायत पर कानून में संशोधन कर रही है. उन्होंने कहा कि कानून में संशोधन कर कर्ज लेने की सीमा बढ़ने से प्रदेश कर्ज के मकड़जाल में फंस जाएगा. सिंघा ने कहा कि सरकार को इस संशोधन विधेयक को विधानसभा की सिलेक्ट कमेटी को भेजना चाहिए. साथ ही समूचे मंत्रिमंडल के साथ मुख्यमंत्री को केंद्र के समक्ष प्रदेश के हकों की बात करनी चाहिए.
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