शिमला: देश में अलग तरह की वन संपदा वाले राज्य हिमाचल प्रदेश में एक खास प्रोजेक्ट से यहां की डेढ़ लाख करोड़ की वन संपदा का हर पहलू सामने आएगा. हिमाचल में यह प्रोजेक्ट जर्मनी की सहायता से चलेगा. इसका नाम फॉरेस्ट ईको सर्विसेज प्रोजेक्ट (Forest Eco Services Project) है. इस प्रोजेक्ट में वनों से जुड़े विस्तृत अध्ययन किये जायेंगे. पूरे देश में सिर्फ हिमाचल में ही ऐसा अध्ययन होगा उसके बाद देश के अन्य हिमालयी राज्यों में यह कवायत शुरू होगी.
इस प्रोजेक्ट में एक अध्ययन होगा जिससे यह पता चलेगा कि एक पेड़ अपने पूरे जीवनकाल में मानव जाति को क्या-क्या लाभ देता है. इसके अलावा फॉरेस्ट डिवीजन स्तर पर देवदार और अन्य कीमती पेड़ों की गिनती भी की जाएगी. अभी तक हुए प्रारम्भिक अध्ययन से यह सामने आया है कि एक पेड़ अपनी 50 साल की औसत आयु में हर साल दो से तीन करोड़ के लाभ देता है. यह लाभ जल संरक्षण, मिट्टी का संरक्षण, इको सिस्टम बैलेंस आदि के रूप में है. हिमाचल के सोलन जिला के तीन गांव में पानी के प्रकृतिक स्रोत सुख गए थे. उन स्रोतों को वाटर कैचमेंट ट्रीटमेंट प्लान से पुनर्जीवित किया गया इसमें भी पेड़ों की अहम भूमिका है.
उल्लेखनीय है कि हिमाचल में राज्य सरकार फॉरेस्ट कवर को 33 फीसदी तक बढ़ाने का अभियान चला रही है. हिमाचल में ग्रीन फैलिंग पर रोक है और यहां हरा पेड़ काटने पर सजा का प्रावधान है. अपना फॉरेस्ट कवर बचाए रखने और उसे निरंतर बढ़ाने में हिमाचल ने अच्छा काम किया है. वित्त आयोग भी इसके लिए हिमाचल की सराहना कर चुका है. यही नहीं विश्व बैंक से हिमाचल को कार्बन क्रेडिट के लिए नगद इनाम भी दे चुका है. कार्बन क्रैडिट हसिल करने वाला हिमाचल एशिया का पहला राज्य है.
राज्य सरकार की वन विभाग की मुखिया डॉ. सविता के अनुसार फॉरेस्ट ईको सर्विसेज प्रोजेक्ट के तहत इको सिस्टम का संरक्षण किया जाएगा. इसमें जल संरक्षण वायु संरक्षण आदि मुख्य हैं. इसमें स्थानीय लोगों को भी जोड़ा जाएगा. साथ ही आम जनता को वनों के महत्व के बारे में बताया जाएगा. जर्मनी की सहायता से यह प्रोजेक्ट के चलाया जाएगा.
डॉ. सविता ने बताया कि वन विभाग फॉरेस्ट कवर को बढ़ाने के लिए कई योजनाओं पर काम कर रहा है. औषधीय पौधे भी लगाए जा रहे हैं और फलदार पौधों की प्लांटेशन भी की जा रही है. इसके साथ ही वन विभाग रेंज और डिवीजन स्तर पर बड़े पेड़ों की मॉनिटरिंग भी करता है. इस प्रक्रिया में पेड़ों की उम्र उनकी सेहत और उनकी ओवर ऑल स्थिति परखी जाती है. अगर कोई पेड़ मिट्टी के क्षरण या अन्य किसी कारण से बीमार होता है या सूखने लगता है तो उसका ट्रीटमेंट किया जाता है. वर्किंग प्लान से ही सूखे पेड़ों को हटाना व अन्य वन संरक्षण गतिविधियां की जाती हैं.
वन विभाग द्वारा जारी फॉरेस्ट सर्वे की रिपोर्ट के मुताबिक जनवरी 2015 से फरवरी 2019 के दौरान हिमाचल में 959.63 हैक्टेयर वन भूमि को गैर वानिकी कामों के लिए परिवर्तित किया गया. हालांकि 2019 के बाद की रिपोर्ट अभी तक जारी नहीं की गई है, लेकिन मौजूदा रिपोर्ट के अनुसार हिमाचल का ग्रीन कवर 333 वर्ग किलोमीटर बढ़ा है. हिमाचल में वर्ष 2017 के मुकाबले ग्रीन कवर क्षेत्र में 333.52 वर्ग किलोमीटर का इजाफा हुआ. ग्रीन कवर बढ़ने का कारण हिमाचल का सघन पौधारोपण अभियान भी जारी है. हिमाचल में 2017-18 में 9725 हैक्टेयर भूभाग में पौधरोपण किया गया.