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वन विभाग का स्पेशल प्रोजेक्ट बताएगा हिमाचल में डेढ़ लाख करोड़ की संपदा का ए-टू-जेड: राकेश पठानिया

हिमाचल में राज्य सरकार फॉरेस्ट कवर को 33 फीसदी तक बढ़ाने का अभियान चला रही है. हिमाचल में ग्रीन फैलिंग पर रोक है और यहां हरा पेड़ काटने पर सजा का प्रावधान है. अपना फॉरेस्ट कवर बचाए रखने और उसे निरंतर बढ़ाने में हिमाचल ने अच्छा काम किया है. वित्त आयोग भी इसके लिए हिमाचल की सराहना कर चुका है.

वन मंत्री राकेश पठानिया
वन मंत्री राकेश पठानिया

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Published : Aug 28, 2021, 7:09 PM IST

शिमला: देश में अलग तरह की वन संपदा वाले राज्य हिमाचल प्रदेश में एक खास प्रोजेक्ट से यहां की डेढ़ लाख करोड़ की वन संपदा का हर पहलू सामने आएगा. हिमाचल में यह प्रोजेक्ट जर्मनी की सहायता से चलेगा. इसका नाम फॉरेस्ट ईको सर्विसेज प्रोजेक्ट (Forest Eco Services Project) है. इस प्रोजेक्ट में वनों से जुड़े विस्तृत अध्ययन किये जायेंगे. पूरे देश में सिर्फ हिमाचल में ही ऐसा अध्ययन होगा उसके बाद देश के अन्य हिमालयी राज्यों में यह कवायत शुरू होगी.

इस प्रोजेक्ट में एक अध्ययन होगा जिससे यह पता चलेगा कि एक पेड़ अपने पूरे जीवनकाल में मानव जाति को क्या-क्या लाभ देता है. इसके अलावा फॉरेस्ट डिवीजन स्तर पर देवदार और अन्य कीमती पेड़ों की गिनती भी की जाएगी. अभी तक हुए प्रारम्भिक अध्ययन से यह सामने आया है कि एक पेड़ अपनी 50 साल की औसत आयु में हर साल दो से तीन करोड़ के लाभ देता है. यह लाभ जल संरक्षण, मिट्टी का संरक्षण, इको सिस्टम बैलेंस आदि के रूप में है. हिमाचल के सोलन जिला के तीन गांव में पानी के प्रकृतिक स्रोत सुख गए थे. उन स्रोतों को वाटर कैचमेंट ट्रीटमेंट प्लान से पुनर्जीवित किया गया इसमें भी पेड़ों की अहम भूमिका है.

उल्लेखनीय है कि हिमाचल में राज्य सरकार फॉरेस्ट कवर को 33 फीसदी तक बढ़ाने का अभियान चला रही है. हिमाचल में ग्रीन फैलिंग पर रोक है और यहां हरा पेड़ काटने पर सजा का प्रावधान है. अपना फॉरेस्ट कवर बचाए रखने और उसे निरंतर बढ़ाने में हिमाचल ने अच्छा काम किया है. वित्त आयोग भी इसके लिए हिमाचल की सराहना कर चुका है. यही नहीं विश्व बैंक से हिमाचल को कार्बन क्रेडिट के लिए नगद इनाम भी दे चुका है. कार्बन क्रैडिट हसिल करने वाला हिमाचल एशिया का पहला राज्य है.

राज्य सरकार की वन विभाग की मुखिया डॉ. सविता के अनुसार फॉरेस्ट ईको सर्विसेज प्रोजेक्ट के तहत इको सिस्टम का संरक्षण किया जाएगा. इसमें जल संरक्षण वायु संरक्षण आदि मुख्य हैं. इसमें स्थानीय लोगों को भी जोड़ा जाएगा. साथ ही आम जनता को वनों के महत्व के बारे में बताया जाएगा. जर्मनी की सहायता से यह प्रोजेक्ट के चलाया जाएगा.

डॉ. सविता ने बताया कि वन विभाग फॉरेस्ट कवर को बढ़ाने के लिए कई योजनाओं पर काम कर रहा है. औषधीय पौधे भी लगाए जा रहे हैं और फलदार पौधों की प्लांटेशन भी की जा रही है. इसके साथ ही वन विभाग रेंज और डिवीजन स्तर पर बड़े पेड़ों की मॉनिटरिंग भी करता है. इस प्रक्रिया में पेड़ों की उम्र उनकी सेहत और उनकी ओवर ऑल स्थिति परखी जाती है. अगर कोई पेड़ मिट्टी के क्षरण या अन्य किसी कारण से बीमार होता है या सूखने लगता है तो उसका ट्रीटमेंट किया जाता है. वर्किंग प्लान से ही सूखे पेड़ों को हटाना व अन्य वन संरक्षण गतिविधियां की जाती हैं.

वन विभाग द्वारा जारी फॉरेस्ट सर्वे की रिपोर्ट के मुताबिक जनवरी 2015 से फरवरी 2019 के दौरान हिमाचल में 959.63 हैक्टेयर वन भूमि को गैर वानिकी कामों के लिए परिवर्तित किया गया. हालांकि 2019 के बाद की रिपोर्ट अभी तक जारी नहीं की गई है, लेकिन मौजूदा रिपोर्ट के अनुसार हिमाचल का ग्रीन कवर 333 वर्ग किलोमीटर बढ़ा है. हिमाचल में वर्ष 2017 के मुकाबले ग्रीन कवर क्षेत्र में 333.52 वर्ग किलोमीटर का इजाफा हुआ. ग्रीन कवर बढ़ने का कारण हिमाचल का सघन पौधारोपण अभियान भी जारी है. हिमाचल में 2017-18 में 9725 हैक्टेयर भूभाग में पौधरोपण किया गया.

वर्ष 2019 में वन विभाग ने जनता, सामाजिक संस्थाओं, शैक्षणिक संस्थाओं आदि के सहयोग से 25 लाख 34 हजार से अधिक पौधों को रोपा. रिपोर्ट के मुताबिक राज्य में फारेस्ट एरिया 37,033 वर्ग किमी है. इसमें से 1898 वर्ग किमी रिजर्व फारेस्ट है. इसके अलावा 33130 वर्ग किमी संरक्षित व 2005 वर्ग किमी अवर्गीकृत वन क्षेत्र है. हिमाचल में संरक्षित वन क्षेत्र में 5 नेशनल पार्क, 28 वन्य प्राणी अभ्यारण्य और 3 प्रोटेक्टिड क्षेत्र हैं. अर्थात इन क्षेत्रों में वन्य प्राणियों व प्राकृतिक वनस्पतियों को संरक्षित रखा गया है.

रिपोर्ट के मुताबिक दिसंबर 2017 में राज्य में फारेस्ट कवर 15433.52 वर्ग किमी था. यह राज्य के क्षेत्रफल का 27.72 प्रतिशत है. रिकार्डड फॉरेस्ट एरिया 37033 वर्ग किलोमीटर है. यह प्रदेश के कुल क्षेत्रफल का 66.52 फीसदी है. प्रदेश के जंगलों में पेड़ों की 116 अलग-अलग प्रजातियां देखने को मिलती हैं. औषधीय प्रजातियों की संख्या 109 है और 99 प्रजातियों की झाड़ियां या छोटे पेड़ हैं. अगर फॉरेस्ट फायर यानी जंगल की आग के नजरिए से देखें तो हिमाचल के जंगलों का 4.6 फीसदी भाग अति संवेदनशील है. 220 वर्ग किमी से अधिक के जंगल दावानल के मामले में संवेदनशील है.

हिमाचल में पौधरोपण की शानदार परंपरा है. पिछले रिकार्ड के अनुसार हिमाचल ने वर्ष 2013-14 में 1.66 करोड़, वर्ष 2014-15 में 1.35 करोड़ और वर्ष 2015-16 में 1.22 करोड़ पौधे रोपे हैं. इसके बाद के समय में भी सालाना पौधे रोपने का औसत एक करोड़ पौधों से अधिक का ही है. इनका सर्वाइवल रेट भी अस्सी फीसदी से अधिक है. हिमाचल में औषधीय पौधों को रोपने का अभियान भी साथ-साथ चलता है.

औषधीय पौधों के तहत अर्जुन, हरड़, बहेड़ा व आंवला सहित अन्य पौधे रोपे जाते हैं. राज्य में जंगली फलदार पौधे भी रोपे जा रहे हैं. इसका मकसद बंदरों को वनों में ही आहार उपलब्ध करवाना है. आंकड़ों के अनुसार हिमाचल में सरकारी और गैर सरकारी संस्थाओं ने वर्ष 2013-14 में 45.30 लाख, वर्ष 2014-15 में 46.70 लाख और वर्ष 2015-16 में 43 लाख औषधीय पौधे लगाए हैं. इसके बाद के सीजन में भी औषधीय पौधों के रोपण का औसतन आंकड़ा यही है.

वन मंत्री राकेश पठानिया ने कहा कि हिमाचल में वन एरिया बढ़ाने को कई योजनाएं हिमाचल में कई तरह की वन योजनाएं लागू हैं. ग्रीन कवर बढ़ाने के लिए पिछले साल 15,000 हेक्टेयर वन भूमि पर पौधा रोपण का लक्ष्य निर्धारित किया गया था. इससे पूर्व 2019 में ये लक्ष्य 9000 हैक्टेयर भूमि पर पौधरोपण का था. हिमाचल में सामुदायिक वन संवर्धन योजना, विद्यार्थी वन मित्र योजना, वन समृद्धि-जन समृद्धि योजना, एक बूटा बेटी के नाम योजनाएं चल रही हैं. इसके अलावा हर साल वन महोत्सव में भी पौधों का रोपण किया जाता है. इस बार भी प्रत्येक ग्राम पंचायत सदस्य को 15 पौधे दिए गए हैं. इसके अलावा सामाजिक संगठनों को भी जिम्मेदारी दी गई है.

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