शिमला: देवभूमि हिमाचल का देवताओं और प्रकृति से गहरा रिश्ता है. यही वजह है कि यहां कई परंपरा से जुड़े रीति रिवाज के पीछे प्रकृति को बचाने के उद्देश्य छिपा था. मान्यता है कि हिमाचल में अधिकत स्थानों पर पेड़ों पर देवताओं के वास होने के कारण लोग पेड़ों की पूजा-आराधना करते हैं. लेकिन इन दिनों प्रकृति के साथ छेड़ छाड़ के कारण लोगों को प्राकृतिक आपदाओं का सामना करना पड़ रहा है.
झील पर निर्भर है यहां के लोगों की जिंदगी ये भी पढ़ें: CM जयराम का पंडित सुखराम परिवार पर जुबानी हमला, शोर डालने वालों को जनता ने दिया करारा जवाबदेव भूमि हिमाचल में एक प्राकृतिक धरोहर राष्ट्रीय राजमार्ग 5 पर स्थित मतियाना से 11 किलोमीटर दूर गड़ाकुफर में स्थित झील है. जिसका उल्लेख हिमाचल की प्रमुख प्राकृतिक झीलों में आता है. गड़ाकुफर झील का अपना एक पौराणिक इतिहास रहा है प्राचीन समय से इस झील को पवित्र माना जाता रहा है. इस झील का पानी इतना पवित्र है कि दैविक पूजा में इसका उपयोग किया जाता था और इस स्थान पर देवता स्नान करते थे. साथ ही साथ लोग भी तीर्थ यात्रा से वापस लौट कर इस झील में स्नान कर के ही घर में प्रवेश करते थे. झील पर निर्भर है यहां के लोगों की जिंदगी ये भी पढ़ें: बिन बुलाए मेहमान की तरह भाजपा की रैली में पहुंचे अनिल शर्मा, कुर्सी न मिलने पर लौटे वापसइस झील की एक और सुंदरता झील के पानी में तैरने वाली रंग बिरंगी मछलियों से भी बनी है. लोग इस झील में मछलियों को आटा देना शुभ मानते थे. इतना ही नहीं आज भी इस झील का जलस्तर लोगों के पीने के पानी का भी अच्छा जलस्त्रोत बना हुआ है. इस झील के पानी का रिसाव निचले इलाकों में नालों के रुप में बहता है. जिससे लोग पीने के पानी के साथ सिंचाई के लिए भी उपयोग करते हैं. बता दें कि सर्दियों में बर्फ गिरने का बाद इसकी सुंदरता में चार चांद लग जाता है. पूरी झील 2 महीने तक सफेद चादर से ढक जाती है. जिससे इसकी सुंदरता देखते ही बनती है. सर्दियों में प्राकृतिक रूप से जमने वाली झील पर स्केटिंग की जा सकती है. झील पर निर्भर है यहां के लोगों की जिंदगी ये भी पढ़ें: अग्निकांड पर सरकार सख्त, खेत या घासनियों में आग लगाने से पहले वन विभाग को करना होगा सूचितआधुनिकता के दौर में लोग देव परम्पराओं के रीति रिवाज भूल गए लेकिन इस झील की अनदेखी से लोग इसके प्रकोप से बच नहीं पाए. कुछ सालों पूर्व ये झील बिल्कुल सुख गयी और पानी के लिए लोगों में हाहाकार मच गया. तीनों पंचायतें सूखे की चपेट में आ गयी. उसके बाद लोगों ने देव परम्पराओं के रीति रिवाजों का माना और उसके बाद अब ये झील एक बार फिर से अपने अस्तित्व में आ रही है. केलवी ओर भराना के लोगों ने अब इस झील को संवारने का काम शुरू कर दिया है. हालांकि सरकार जी तरफ से अभी तक इस झील को सवारने में कोई खासी मदद नहीं मिल पायी है, लेकिन पंचायत स्तर पर इसकी देखभाल के लिए लोगों ने इसका जिम्मा ले लिया है.