शिमलाः हिमाचल में यूं तो लंबे समय से वीवीआईपी आलीशान गाड़ियों की रजिस्ट्रेशन करवा कर टैक्स बचा रहे हैं, लेकिन वीरेंद्र सहवाग से जुड़े ताजा मामले के बाद ये मसला राजनीतिक तौर पर सुलग गया है.
हिमाचल में पंजीकरण शुल्क अन्य राज्यों के मुकाबले कम
कांग्रेस के विधायक और विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष मुकेश अग्निहोत्री ने इस मामले पर सरकार के घेरा है. दरअसल, हिमाचल के सीमांत इलाकों में ये धंधा लंबे समय से चल रहा है. पंजाब व हरियाणा सहित दिल्ली के धन्ना सेठ महंगी गाड़ियां खरीद कर उनकी रजिस्ट्रेशन हिमाचल में करवाते हैं. इसका कारण ये है कि हिमाचल में गाड़ियों का पंजीकरण शुल्क अन्य राज्यों के मुकाबले कम है. इससे हिमाचल के परिवहन विभाग को टैक्स के रूप में बेशक कुछ आय हो जाए, लेकिन पिछले दरवाजे से होने वाली ये कवायद टैक्स चोरी की ही समझी जाएगी. ऐसे में वीवीआईपी की टैक्स चोरी का कलंक तो जरूर हिमाचल के माथे पर लगता है. हालांकि इस तरीके से करवाया गया पंजीकरण फर्जी नहीं कहा जा सकता.
टैक्स चोरी की राह तलाशते हैं अमीरजादे
अमीरजादे महंगी गाड़ियां तो खरीद लेते हैं, परंतु टैक्स चोरी की राह भी साथ ही तलाश लेते हैं. इस तरह के जुगाड़ तंत्र से हिमाचल को तो टैक्स के तौर पर कुछ आय हो जाती है, परंतु जिस राज्य में गाड़ी खरीदी गई होती है, वहां की सरकार के संबंधित विभाग को टैक्स के रूप में नुकसान होता है. कुछ साल पहले तो हिमाचल में गाड़ियों का पंजीकरण शुल्क काफी कम था. फिर उत्तर भारत के राज्यों के अफसरों की बैठक हुई और ये तय किया गया कि हिमाचल भी पंजीकरण शुल्क बढ़ाए. इससे ये लाभ हुआ कि अपेक्षाकृत कम पैसे बचने से कई धन्नासेठ दौड़-धूप से बचने के लिए उसी जगह पंजीकरण करवाने लगे, जहां गाड़ी खरीदी गई हो.
वीरेंद्र सहवाग से कैसे जुड़े मामले के तार
जहां तक वीरेंद्र सहवाग का मामला है तो उन्होंने नूरपुर में पंजीकरण करवाया है. नूरपुर भी सीमांत उपमंडल है. पहले ऐसे अधिकतर मामले इंदौरा उपमंडल में देखने को मिलते थे. वहीं, वीरेंद्र सहवाग ने कांगड़ा जिला के उपमंडल नूरपुर में गाड़ी का पंजीकरण करवाया है. गाड़ी की रजिस्ट्रेशन करवाने के लिए प्रूफ ऑफ रेजीडेंस जरूरी है. इसमें रेंट का प्रूफ भी साथ लगाना होता है. वीरेंद्र सहवाग ने जहां से गाड़ी खरीदी, वहां के महंगे पंजीकरण शुल्क से बचने के लिए हिमाचल में पंजीकरण करवाया. इसके लिए शिमला के एक शिक्षण संस्थान से जुड़ा प्रूफ दिया गया. वैसे ये फर्जी की श्रेणी में नहीं आता, लेकिन नैतिकता के मापदंड देखें तो कुछ लाख रुपए बचाने के लिए ऐसा काम गलत ही कहा जाएगा. सहवाग की गाड़ी का नंबर एचपी-38-8988 है.