शिमला: हिमाचल प्रदेश की आर्थिकी में अहम योगदान देने वाले सेब को इस दिनों गंभीर बीमारी स्कैब परेशान कर रही है. दशकों के बाद स्कैब बीमारी के फैलने से बागवानों की नींद उड़ गई है. स्कैब बीमारी ने एक बार फिर बागवानों की चिंताएं बढ़ा दी हैं. शिमला कोटखाई के देवरीघाट, छुंजर, खड़ापत्थर, स्नाभा, रोहडू़ व चौपाल के कई ऊंचाई वाले क्षेत्रों में स्कैब के लक्षण ज्यादा देखे जा रहे हैं.
इस बीमारी पर अगर समय रहते नियंत्रण पाया गया, तो 4,200 करोड़ के सेब उद्योग को भारी नुकसान झेलना पड़ेगा. बागवानी विभाग ने स्प्रे शेड्यूल के मुताबिक बागवानों से फफूंद नाशकों का छिड़काव करने की सलाह दी है. विभाग ने बागवानों को बगीचों में लोर को साफ रखने और गिरी हुई पत्तियों को हटाने के निर्देश दिए हैं.
उधर, इस बीमारी ने बागवानों की चिंता बढ़ा दी है. बागवानों का कहना है कि पहले भी ये बीमारी पहले भी फसल का नाश कर चुकी है, जिससे काफी नुकसान हुआ था और अब फिर से इस बीमारी ने दस्तक दे दी है. बागवान विभाग से इस बीमारी को रोकने की गुहार लगा रहे हैं. बागवानो का कहना है कि क्षेत्र के 25 फीसदी बगीचे इस बीमारी की चपेट में है. विभाग से बागवान जल्द इस बीमारी पर रोक लगाने की गुहार लगा रहे हैं.
बागवानी विभाग ने भी इस बीमारी को रोकने को लेकर प्रयास तेज कर दिए हैं. विभाग ने सभी अधिकारियों और कर्मियों की छुट्टियों को रद्द कर दिया है और निगरानी के लिए समिति का गठन किया गया है. बागवानी उप निदेशक डॉ. एमएम शर्मा ने बताया कि कुछ क्षेत्रों से स्कैब नामक फफूंद की शिकायतें आ रही हैं. बागवानी विभाग ने अधिकारियों को फिल्ड में जाकर इसकी जांच के निर्देश दिए हैं. उन्होंने कहा कि सभी अधिकारियों की छुटियां भी केंसिल कर दी गई है और निगरानी के लिए समिति का गठन भी किया गया है. बीमारी पर रोक लगने के लिये हर संभव प्रयास किए जा रहे हैं.
हिमाचल प्रदेश में पहली बार स्कैब बीमारी 1982 में फैली थी और उस समय राज्य में करोड़ों रुपये की सेब की फसल बर्बाद हो गई थी. उस साल बागवानों को भारी आर्थिक नुकसान उठाना पड़ा था. उस समय सेब की सारी फसल को ठिकाने लगाने को एरिया चिन्हित किए गए थे, ताकि इसका वायरस आगे न फैले. अब एक बार फिर प्रदेश के कुछ क्षेत्रों में यह बीमारी पांव पसारने लगी है. शिमला, कुल्लू और मंडी जिले के कुछ बागीचों में पिछले एक सप्ताह से सेब की फसल में स्कैब के लक्षण देखे गए हैं.