शिमलाःहिमाचल की राजनीति का जिक्र वीरभद्र सिंह के बिना अधूरा माना जाएगा. छह बार हिमाचल की कमान संभाल चुके वीरभद्र सिंह इस उम्र में भी जोशीले हैं. पांच दशक से भी अधिक समय से राजनीति में सक्रिय वीरभद्र सिंह को बेझिझक हिमाचल के राजनीतिक साम्राज्य का राजा कहा जा सकता है. आज वीरभद्र सिंह सिंह का 86वां जन्मदिन है. इस उम्र में भी जोश के साथ सक्रिय रहने के पीछे वे हिमाचल की जनता के स्नेह को श्रेय देते हैं.
लोकसभा व विधानसभा के चुनाव में करीब-करीब अपराजेय रहे वीरभद्र सिंह छह बार सीएम बनने के अलावा आठ विधानसभा चुनाव जीते हैं. वे केंद्र में मंत्री भी रहे हैं. संगठन में भी सक्रिय रहते हुए वे चार दफा प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष रहे हैं. इस समय बेशक अपने राजनीतिक जीवन की ढलान पर वे कानूनी मामलों में उलझे हैं, लेकिन वे खुद को फाइटर मानते हैं और दावा करते हैं कि अपने खिलाफ राजनीतिक प्रतिशोध के चलते बनाए गए मामलों से वे सुर्खरू होंगे.
शास्त्री जी ने कहा, राजनीति में आ जाओः
हिमाचल के मुख्यमंत्री के राजनीतिक जीवन के पांच दशकों की यात्रा की शुरुआत भी अचानक हुई है. देश के महान सपूत और पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की प्रेरणा से वीरभद्र सिंह राजनीति में आए. वीरभद्र सिंह का इरादा अध्यापन करने का था.
बुशहर रियासत के इस राजा ने आरंभिक स्कूली शिक्षा शिमला के विख्यात बिशप कॉटन स्कूल से की. उसके बाद दिल्ली के सेंट स्टीफन कॉलेज से बीए (आनर्स) की डिग्री हासिल की. अध्ययन के बाद वे लाल बहादुर शास्त्री की सलाह पर 1962 के लोकसभा चुनाव में खड़े हो गए.
महासू सीट से उन्होंने चुनाव जीता और तीसरी लोकसभा में पहली बार सांसद बने. अगला चुनाव भी वीरभद्र सिंह ने महासू से ही जीता, फिर 1971 के लोकसभा चुनाव में भी वे विजयी हुए. यही नहीं, वीरभद्र सिंह सातवीं लोकसभा में भी सदस्य थे. उन्होंने 1980 का लोकसभा चुनाव जीता. अंतिम लोकसभा चुनाव उन्होंने मंडी सीट से वर्ष 2009 में जीता और केंद्रीय इस्पात मंत्री बने. इस तरह वीरभद्र सिंह पांच बार सांसद रहे.
वीरभद्र सिंह पहली बार केंद्रीय कैबिनेट में वर्ष 1976 में पर्यटन व नागरिक उड्डयन मंत्री बने, फिर 1982 में उद्योग राज्यमंत्री का पदभार संभाला. वर्ष 2009 का लोकसभा चुनाव जीतने के बाद वे केंद्रीय इस्पात मंत्री बने. बाद में उन्हें केंद्रीय सूक्ष्म, लघु व मध्यम इंटरप्राइजिज मंत्री बनाया गया.
पांच दशक का राजनीतिक करियर, 6 बार संभाली है मुख्यमंत्री पद की कमान
वीरभद्र सिंह केंद्र की राजनीति में बेशक सक्रिय रहे, लेकिन उनका अधिकांश राजनीतिक जीवन हिमाचल की राजनीति के इर्द-गिर्द घूमता रहा है. वे अक्टूबर 1983 में पहली बार विधानसभा चुनाव की जंग में विजयी रहे. यह एक उपचुनाव था. उसके बाद वे जनरल इलेक्शन में 1985 में रोहड़ू विधानसभा क्षेत्र से जीते, फिर वीरभद्र सिंह की चुनावी कर्मभूमि रोहड़ू रही.
रोहड़ू से वे लगातार चुनाव जीतते रहे. कुल पांच दफा वे रोहड़ू से निर्वाचित हुए. पहली बार उन्होंने 8 अप्रैल 1983 को सीएम का पदभार संभाला. 2012 में वे विधानसभा उन्होंने शिमला (ग्रामीण) सीट से चुनाव जीता और छठी बार 25 दिसंबर 2012 को सीएम बने. वे एक विधानसभा चुनाव हार भी चुके हैं. वीरभद्र सिंह 1988 से 2003 तक हिमाचल में नेता प्रतिपक्ष रहे. वे चार दफा प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष पद पर भी विराजमान रहे. इस समय वे अर्की सीट से विधायक हैं.
सीएम रहते हुए रात तक भी फाइलें निपटाते थे वीरभद्र
वीरभद्र सिंह की कार्यक्षमता सभी को हैरान करती है. पिछली बार सीएम रहते हुए अपने कार्यकाल के आखिरी बजट सत्र में वीरभद्र सिंह ने चार घंटे तक लगातार अंग्रेजी में बजट भाषण दिया था. उस दौरान उन्होंने एक आशार के जरिए अपने राजनीतिक विरोधियों पर तंज कसा था.