शिमला: विश्व के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश भारत ने वर्ष 1975 में इमरजेंसी का स्याह समय भी देखा है. तब 19 महीने आपातकाल रहा था और विरोधियों को जरा-जरा सी बात पर जेल में ठूंस दिया जाता था. हिमाचल के कद्दावर नेता शांता कुमार, राधारमण शास्त्री, स्व. श्यामा शर्मा सहित कई लोग नाहन सेंट्रल जेल में कैद रहे. इमरजेंसी हटने के बाद चुनाव हुए और जनता पार्टी की सरकार सत्ता में आई. आपातकाल के समय जेल जाने वाले अभी भी उस दौर को याद करके सिहर उठते हैं. राधारमण शास्त्री बताते हैं कि जेल में कैसे कठिन समय गुजारा था.
जयराम सरकार ने शुरू की थी योजना:खैर, नई सदी आई और वर्ष 2019 में भाजपा की जयराम ठाकुर सरकार ने इमरजेंसी में जेल जाने वालों के लिए लोकतंत्र प्रहरी सम्मान योजना शुरू की. उधर, 2022 में कांग्रेस सत्ता में आई सुखविंदर सिंह सरकार ने इस योजना को बंद कर दिया. आइए, देखते हैं कि कैसे इमरजेंसी से जुड़ी सम्मान योजना राजनीति की बलि चढ़ गई.
लोकतंत्र प्रहरी सम्मान योजना के तहत हर माह राशि: वर्ष 1975 में आपातकाल के समय मीसा कानून के तहत जेल में कैद सियासी बंदियों के लिए जयराम ठाकुर के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार ने 2019 में लोकतंत्र प्रहरी सम्मान योजना शुरू की. आरंभ में इस योजना के तहत पहले सालाना 11 हजार रुपए और फिर बाद में प्रति माह 11 हजार रुपए की लोकतंत्र प्रहरी सम्मान राशि घोषित की गई. बाद में वर्ष 2021 में इसे लेकर विधानसभा में बिल लाया गया था.
सूक्खू सरकार ने बंद की योजना: हिमाचल में भाजपा से जुड़े कई नेताओं को इस योजना के तहत सम्मान राशि मिल रही थी. फिर सत्ता परिवर्तन हुआ और सुखविंदर सिंह सुक्खू के नेतृत्व में कांग्रेस सरकार बनी. जब ये योजना लागू हुई तो कांग्रेस विपक्ष में थी और उसने सदन में इसका विरोध किया था. बाद में सत्ता में आने के बाद सरकार ने इसे बंद कर दिया.
पहले भी कांग्रेस विधायकों ने किया था विरोध: सुखविंदर सिंह सरकार के पहले ही बजट सत्र में इस योजना को निरस्त करने का ऐलान हुआ. इसके निरसन से संबंधित विधेयक को सदन में पारित किया गया. मौजूदा सरकार के संसदीय कार्यमंत्री हर्षवर्धन सिंह चौहान ने विधेयक पर चर्चा का उत्तर देते हुए कहा कि पूर्व सरकार ने इस सम्मान राशि के तहत खजाने पर 3 करोड़ रुपए से अधिक का बोझ डाला. भाजपा के विधायकों ने कांग्रेस सरकार के इस कदम का विरोध किया और सदन से वॉकआउट भी किया था.
बजट सेशन में आई योजना, बजट सेशन में ही निरस्त:हिमाचल में भाजपा सरकार के समय में वर्ष 2019 में फरवरी में बजट सेशन के दौरान तत्कालीन सीएम जयराम ठाकुर ने मीसा बंदियों को पहले सालाना 11 हजार रुपए देने का ऐलान किया था. बाद में मुख्यमंत्री ने इस योजना में संशोधन किया और साल की बजाय हर महीने 11 हजार रुपए की सम्मान राशि देने का ऐलान किया था. सत्ता में आने पर बजट सेशन में ही सुखविंदर सिंह सरकार ने इसे निरस्त करने से संबंधित विधेयक पारित किया. तत्कालीन जयराम सरकार ने बाद में वर्ष 2021 में सदन में हिमाचल प्रदेश लोकतंत्र प्रहरी बिल-2021 पास किया था. इस योजना के तहत प्रदेश के 81 लोग आए थे, जो एमरजेंसी में जेल में बंद रहे थे. लोकतंत्र प्रहरी सम्मान समिति के अध्यक्ष तत्कालीन जयराम ठाकुर सरकार में शहरी विकास मंत्री का पद संभाल रहे भाजपा नेता सुरेश भारद्वाज थे.
2021 में पास हुआ था लोकतंत्र प्रहरी सम्मानबिल: मार्च 2021 में सदन में ये बिल पास हुआ था, तब सुखविंदर सिंह सुक्खू कांग्रेस विधायक के तौर पर सदन में थे. उस दौरान विधायक के तौर पर सुखविंदर सिंह सुक्खू ने कहा था कि ये बिल बिना सोचे-समझे लाया गया है. इस बिल का नाम लोकतंत्र प्रहरी गलत है. उस दौरान विधायक सुक्खू ने इस बिल के सेक्शन दो को डिलीट करने की मांग की थी. उसमें सुओ मोटो वाला प्रावधान था. सुक्खू ने आरोप लगाया था कि इस बिल के जरिए सत्ताधारी दल अपनी विचारधारा के लोगों को लाभ देना चाहता है.
इमरजेंसी में जेल गए लोगों को मिलती थी राशि: वहीं, तत्कालीन नेता प्रतिपक्ष और अब डिप्टी सीएम मुकेश अग्निहोत्री ने भी बिल को सिलेक्ट कमेटी को भेजने की बात कही थी. तत्कालीन सीएम जयराम ठाकुर ने कहा था कि खुद राहुल गांधी इमरजेंसी को गलत कदम बता चुके हैं. भाजपा सरकार के बिल के अनुसार इमरजेंसी में जो लोग एक पखवाड़े तक कैद में रहे, उन्हें 8 हजार रुपए और जो इससे अधिक समय तक जेल में रहे उनको अधिकतम 12 हजार रुपए मिलते रहे हैं.
खैर, इमरजेंसी पिछली सदी में लगाई गई थी और इस सदी में भी उसकी गूंज है. हर साल 25 जून को सियासी दल अपने-अपने तरीके से इमरजेंसी की व्याख्या करते हैं. वरिष्ठ मीडिया कर्मी धनंजय शर्मा का कहना है कि भाजपा सरकार ने लोकतंत्र प्रहरी सम्मान राशि का ऐलान किया तो कांग्रेस ने सत्ता में आने पर उसे बंद कर दिया. अब भाजपा फिर सत्ता में आई तो उक्त योजना नए सिरे से शुरू हो जाएगी. इस सियासत में इमरजेंसी के मूल कारणों पर से ध्यान हटता जाएगा. उनका कहना है कि स्वस्थ लोकतंत्र के लिए स्वस्थ विचारों को स्थान देना जरूरी है. पूर्वकाल में जो गल्तियां हुई, उनसे सबक लेकर भविष्य के लिए मजबूत लोकतंत्र की राह निरंतर बनी रहनी चाहिए.
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