शिमला: कोरोना संकट और वैश्विक मंदी के चलते हिमाचल प्रदेश के प्रमुख आर्थिक साधन सेब का कारोबार धीमा रहने के आसार हैं. वहीं, हाल ही में पर्यावरण और इंसानी सेहत को हो रहे घातक नुकसान के चलते कृषि मंत्रालय द्वारा 27 कीटनाशकों को बैन करने के प्रस्ताव ने बागवानों की परेशानी को और बढ़ा दिया है, क्योंकि इसमें से अधिकतर कीटनाशक सेब बागवानी में दशकों से इस्तेमाल किए जा रहे हैं.
फैसले से हिमाचल के सेब बागवान परेशान
कृषि मंत्रालय द्वारा जारी की गई खतरनाक कीटनाशकों की सूची में कई कीटनाशक दवाएं हिमाचल में सेब उत्पादन के लिए बड़े पैमाने पर इस्तेमाल की जाती हैं. इनमें कैपटान, कारबेन्जियम, क्लोरोप्युरिफास, बुटाक्लोर, मैंकोजेब एम-45, जिनोम, जीरम, जिनेब और थायोफनेट मिथाइल, थीरम आदि शामिल हैं.
कई कीटनाशक दवाएं हिमाचल में सेब उत्पादन के लिए बड़े पैमाने पर इस्तेमाल की जाती हैं. इनमें से अधिकतर सॉल्ट्स कई कीटनाशक दवाओं में इस्तेमाल किए जा रहे हैं. प्रदेश का बागवानी विभाग स्प्रे शेड्यूल में इन दवाओं के उपयोग की सिफारिश करता है. सेब के बगीचों में साल भर में करीब 5 दफा किए जाने वाले स्प्रे में अलग-अलग मौसम में लगने वाली बीमारियों से बचाव के लिए प्रदेश के किसान इन कीटनाशकों का छिड़काव करते हैं. इन दवाओं के बैन होने की सूचना के बाद प्रदेश के बागवानों की परेशानियां बढ़ गई है.
क्या हैं विकल्प
प्रदेश बागवानी विभाग के निदेशक मदन मोहन शर्मा का कहना है कि विभाग द्वारा जारी स्प्रे शेड्यूल में एक मौसम में छिड़काव के लिए कई विकल्प दिए जाते हैं. तो इन कीटनाशकों के बैन हो जाने के बाद भी किसानों के पास कई और भी विकल्प रहेंगे. वहीं बागवानों के मुताबिक इन वैकल्पिक पेस्टिसाइड्स की कीमतों का भार बागवानों को उठाना पड़ेगा जो कि अब तक इस्तेमाल किए जा रहे कीटनाशकों के मुकाबले करीब तीन गुना से भी ज्यादा कीमत के होंगे. जिसका असर बागवानों के मुनाफे पर पड़ेगा.
बागवानों के पास दूसरा विकल्प ऑर्गेनिक फार्मिंग हैं. हालांकि ऊपरी शिमला के प्रगतिशील बागवान डिंपल पांजटा का मानना है कि अच्छी क्वालिटी और क्वांटिटी में ऑर्गेनिक सेब तैयार करना लगभग नामुमकिन है. सेब को विभिन्न तरह की बीमारियों से बचाने और बेहतर पैदावार के लिए कीटनाशकों का छिड़काव बेहद जरूरी है.
क्या बड़ी कंपनियों को फायदा पहुंचाने की सरकार की मंशा
प्रदेश के बागवानी विशेषज्ञों का कहना है कि बैन किए गए अधिकतर पेस्टिसाइड्स देश की छोटी कंपनियां बनाती हैं जोकि बागवानों को सस्ते दामों पर मिलते हैं. इस लिस्ट में बड़ी बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा बनाए जाने वाले कीटनाशक शामिल नहीं किए गए हैं, जिनकी कीमत ज्यादा होती है. छोटी कंपनियों के सस्ते कीटनाशक बंद होने के बाद किसानों को मजबूरन बड़ी कंपनियों के महंगे उत्पाद खरीदने पड़ेंगे. किसानों को शक है कि सरकार इन पेस्टिसाइड्स के बंद करने की आड़ में कहीं बड़ी बहुराष्ट्रीय कंपनियों को फायदा पहुंचाने का इरादा तो नहीं रखती है.
बागवानों की मांग
इन कीटनाशकों के प्रतिबंधित हो जाने के बाद मंदी के दौर में किसानों को मंहगे पेस्टिसाइड्स खरीदने पड़ेंगे, जिससे छोटे बागवानों पर सबसे ज्यादा असर पड़ने वाला है. जिस कीटनाशक का 200 लीटर छिड़काव बागवानों को 200 से 300 रुपये में पड़ता था वो अब 700 से 1 हजार तक की कीमत का पड़ेगा. इसको लेकर किसान इन कीटनाशकों को बैन ना करने की मांग कर रहे हैं या फिर सरकार से मंहगे कीटनाशकों की खरीद पर सब्सिडी दिए जाने का भरोसा चाहते हैं .
फैसले के पीछे सरकार का तर्क
फलों और सब्जियों में डाले जा रहे कीटनाशकों का मानव जीवन पर बुरा असर हो रहा है. इनके छिड़काव के कई दिनों बाद भी फलों और सब्जियों में इनके अंश रह जाते हैं जो इंसान के शरीर में प्रवेश करने के बाद कैंसर जैसी घातक बीमारियों को जन्म दे रहे हैं. वहीं ये कीटनाशक वन्य जीवन और पर्यावरण को भी बुरी तरह प्रभावित कर रहे हैं.
केंद्र सरकार देश में कृषि और बागवानी में इस्तेमाल होने वाले 27 कीटनाशकों पर प्रतिबंध लगाने की तैयारी में है. सरकार ने ये निर्देश 2013 में बनाई गई अनुपम वर्मा कमेटी की सिफारिशों के आधार पर दिए हैं. ये कमेटी भारत में इस्तेमाल हो रहे कीटनाशकों के दुष्प्रभावों की जांच कर रही है.
इनमें से अधिकतर कीटनाशक कई देशों में पहले से बैन किये जा चुके हैं. 14 मई को जारी प्रस्तावित आदेशों में केंद्रीय कृषि मंत्रालय ने कीटनाशक बनाने वाली कंपनियों को 45 दिन के अंदर इन 27 तरह के कीटनाशकों के निर्माण को बंद करने को कहा है या फिर मंत्रालय को अपनी आपत्तियां भेज सकते हैं.
इन 27 कीटनाशकों में ऐसफेट, अलट्राजाइन, बेनफुराकारब, बुटाक्लोर, कैपटन, कारबेनडेजिम, कार्बोफ्यूरान, क्लोरप्यरिफास, 2,4-डी, डेल्टामेथ्रीन, डिकोफॉल, डिमेथोट, डाइनोकैप, डयूरोन, मालाथियॉन, मैनकोजेब, मिथोमिल, मोनोक्रोटोफोस, आक्सीफलोरीन, पेंडिमेथलिन, क्यूनलफोस, सलफोसूलफूरोन, थीओडीकर्ब, थायोफनेट मिथाइल, थीरम, जीनेब तथा जीरम के नाम शामिल हैं.
कृषि और बागवानी में इस्तेमाल होने वाले 27 कीटनाशकों पर प्रतिबंध लगाने की तैयारी मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक भारत में तैयार इन कीटनाशकों का सालाना 20 हजार करोड़ तक का निर्यात किया जाता था. हालांकि इन 27 कीटनाशकों पर बैन को लेकर सरकार ने किसी भी तरह की आपत्तियां दर्ज करवाने के लिए कंपनियों को 30 जून तक का वक्त दिया है. लेकिन हैरानी की बात ये है कि एक तरफ जहां सरकार 'मेक इन इंडिया' और 'आत्मनिर्भर भारत' पर बल दे रही है. ऐसे में देश में बड़े स्तर पर बनने और इस्तेमाल होने वाले इन कीटनाशकों को बैन किया जा रहा है.