शिमला: कोरोना काल में हिमाचल के शक्तिपीठ और अन्य आस्था के केंद्र बंद रहे. नवरात्रि के दौरान देवदर्शन के लिए सीमित छूट मिली और श्रद्धालु इन मंदिरों में भेंट अर्पित करने आए. यह सही है कि हिमाचल के शक्तिपीठों में इस साल चढ़ावे में भारी कमी दर्ज की गई, लेकिन देवभूमि के मंदिर अरबों रुपए की संपत्ति के मालिक हैं. यही नहीं, मंदिरों के पास सोना और चांदी के तौर पर अकूत संपदा है.
हिमाचल सरकार ने प्रदेश भर के कुल 35 बड़े मंदिर अधिगृहित किए हैं. इन मंदिरों की संपत्ति अरबों रुपए में है. बैंक में जमा इस संपत्ति पर हर साल लाखों रुपये ब्याज के तौर पर मिलते हैं. विश्वविख्यात शक्तिपीठ मां चिंतपूर्णी का मंदिर राज्य के सबसे अमीर मंदिरों में है. जिला ऊना के इस शक्तिपीठ की संपत्ति अरबों रुपये में है. माता के नाम बैंक में एक अरब रुपये से अधिक की एफडी है. यही नहीं, मां के मंदिर के पास एक कुंतल 98 किलो से अधिक सोना भी है.
इसी तरह बिलासपुर स्थित मां नैना देवी जी के पास भी खजाने की कमी नहीं है. मंदिर के नाम 58 करोड़ रुपये से अधिक की एफडी और एक कुंतल से अधिक सोना है. बिलासपुर जिला के शक्तिपीठ मां श्री नैना देवी जी के खजाने में 11 करोड़ रुपये से अधिक नकद, 58 करोड़ रुपये से अधिक बैंक एफडी के तौर पर है. मंदिर के पास एक कुंतल 80 किलो सोना और 72 कुंतल से अधिक की चांदी है. सोना-चांदी के हिसाब से केवल दो मंदिर ही भरपूर हैं.
चिंतपूर्णी माता के खजाने में सबसे ज्यादा भेंट चढ़ी है. एक अरब रुपये से अधिक की एफडी के साथ मंदिर के पास एक कुंतल 98 किलो सोना है. मंदिर ट्रस्ट के पास 72 कुंतल चांदी भी है. अन्य शक्तिपीठों में मां ज्वालामुखी के पास 23 किलो सोना, 8.90 कुंतल चांदी के अलावा 3.42 करोड़ रुपये की नकदी है. कांगड़ा के मां चामुंडा के पास 18 किलो सोना है. सिरमौर के त्रिलोकपुर में मां बालासुंदरी मंदिर के पास 15 किलो सोना और 23 कुंतल से अधिक चांदी है. चंबा के लक्ष्मीनारायण मंदिर के पास भी 15 किलो सोना और करोड़ों रुपए की संपत्ति है.