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कोरोना काल में कम हुआ शक्तिपीठों का चढ़ावा, फिर भी अरबों की संपत्ति के मालिक हैं देवभूमि के मंदिर

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Published : Oct 30, 2020, 6:04 PM IST

हिमाचल के शक्तिपीठों में अरबों की संपत्ति है. मंदिर प्रबंधन इस संपत्ति का प्रयोग गरीबों और जनकल्याण के लिए भी करते हैं. बैंक में जमा इस संपत्ति पर हर साल लाखों रुपये ब्याज के तौर पर मिलते हैं, लेकिन कोरोना काल के दौरान इस साल मंदिरों के चढ़ावे में कमी आई है.

donations to himachal temples decreased during corona pandemic
कोरोना काल में कम हुआ शक्तिपीठों का चढ़ावा

शिमला: कोरोना काल में हिमाचल के शक्तिपीठ और अन्य आस्था के केंद्र बंद रहे. नवरात्रि के दौरान देवदर्शन के लिए सीमित छूट मिली और श्रद्धालु इन मंदिरों में भेंट अर्पित करने आए. यह सही है कि हिमाचल के शक्तिपीठों में इस साल चढ़ावे में भारी कमी दर्ज की गई, लेकिन देवभूमि के मंदिर अरबों रुपए की संपत्ति के मालिक हैं. यही नहीं, मंदिरों के पास सोना और चांदी के तौर पर अकूत संपदा है.

हिमाचल सरकार ने प्रदेश भर के कुल 35 बड़े मंदिर अधिगृहित किए हैं. इन मंदिरों की संपत्ति अरबों रुपए में है. बैंक में जमा इस संपत्ति पर हर साल लाखों रुपये ब्याज के तौर पर मिलते हैं. विश्वविख्यात शक्तिपीठ मां चिंतपूर्णी का मंदिर राज्य के सबसे अमीर मंदिरों में है. जिला ऊना के इस शक्तिपीठ की संपत्ति अरबों रुपये में है. माता के नाम बैंक में एक अरब रुपये से अधिक की एफडी है. यही नहीं, मां के मंदिर के पास एक कुंतल 98 किलो से अधिक सोना भी है.

इसी तरह बिलासपुर स्थित मां नैना देवी जी के पास भी खजाने की कमी नहीं है. मंदिर के नाम 58 करोड़ रुपये से अधिक की एफडी और एक कुंतल से अधिक सोना है. बिलासपुर जिला के शक्तिपीठ मां श्री नैना देवी जी के खजाने में 11 करोड़ रुपये से अधिक नकद, 58 करोड़ रुपये से अधिक बैंक एफडी के तौर पर है. मंदिर के पास एक कुंतल 80 किलो सोना और 72 कुंतल से अधिक की चांदी है. सोना-चांदी के हिसाब से केवल दो मंदिर ही भरपूर हैं.

चिंतपूर्णी माता के खजाने में सबसे ज्यादा भेंट चढ़ी है. एक अरब रुपये से अधिक की एफडी के साथ मंदिर के पास एक कुंतल 98 किलो सोना है. मंदिर ट्रस्ट के पास 72 कुंतल चांदी भी है. अन्य शक्तिपीठों में मां ज्वालामुखी के पास 23 किलो सोना, 8.90 कुंतल चांदी के अलावा 3.42 करोड़ रुपये की नकदी है. कांगड़ा के मां चामुंडा के पास 18 किलो सोना है. सिरमौर के त्रिलोकपुर में मां बालासुंदरी मंदिर के पास 15 किलो सोना और 23 कुंतल से अधिक चांदी है. चंबा के लक्ष्मीनारायण मंदिर के पास भी 15 किलो सोना और करोड़ों रुपए की संपत्ति है.

मां दुर्गा मंदिर हाटकोटी के पास 4 किलो सोना, 2.87 करोड़ की एफडी व 2.33 करोड़ रुपये नकद है. सरकार द्वारा अधिगृहित इन मंदिरों की संपत्ति से साधनहीन परिवारों की कन्याओं के विवाह को भी आर्थिक मदद दी जाती है. हाईकोर्ट में एक मामले की सुनवाई के दौरान साल 2018 में राज्य सरकार ने ब्यौरा दिया था कि दस साल में हिमाचल के 12 मंदिरों में 361 करोड़ रुपये का चढ़ावा आया.
वहीं, अगस्त 2016 के आंकड़ों के अनुसार ऊना जिला चिंतपूर्णी के पास सबसे ज्यादा 95 करोड़ रुपये का बैंक बैलेंस था. चिंतपूर्णी के साथ प्रदेश के 36 मंदिरों के पास भी भारी खजाना है. तब के आंकड़ों के अनुसार इन 36 अधिसूचित मंदिरों में 2 अरब, 84 करोड़, 26 लाख, 27 हजार 495 रुपये बैंक बैलेंस था.

इसके अलावा इन मंदिरों के पास एक कुंतल तीस किलो से अधिक सोना और 27 कुंतल, 72 किलो से अधिक चांदी थी. उस समय के आंकड़ों के अनुसार यानी चार साल पहले नयना देवी मंदिर बिलासपुर की संपत्तियों में 54 किलो सोना व 44 करोड़ रुपये से अधिक बैंक जमा के तौर पर था.

वहीं, बाबा बालकनाथ की तपोभूमि शाहतलाई के अलग-अलग मंदिर समूहों के पास 10.5 करोड़ रुपये से अधिक का बैंक बैलेंस है. हमीरपुर जिला में स्थित बाबा बालकनाथ गुफा मंदिर दियोटसिद्ध के पास 23 किलो सोना और 44 करोड़ से अधिक बैंक जमा राशि थी. इसी तरह कांगड़ा के ज्वालामुखी शक्तिपीठ के पास 17 किलो सोना और 22 करोड़ से अधिक बैंक बैलेंस था. सबसे ज्यादा जमा राशि ऊना जिला के चिंतपूर्णी मंदिर के पास थी. इस मंदिर की बैंक में जमा राशि 95 करोड़ रुपये से अधिक थी.

बता दें कि मंदिरों का बीस फीसदी सोना स्टेट बैंक की गोल्ड बांड स्कीम में प्रयोग होता है. पचास फीसदी सोने के बिस्किट व सिक्के बनाकर श्रद्धालुओं को बाजार रेट पर दिए जाने का प्रावधान है. इसके अलावा 20 फीसदी सोना मंदिरों में रिजर्व रखा जाता है.

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