शिमला: हिमाचल देव भूमि है और रविवार को इसका प्रमाण शिमला के ऐतिहासिक रिज मैदान पर देखने को मिला. यहां आज देव परंपरा का अनूठा आयोजन हुआ. रिज मैदान पर देवता डोम सन्नाटा गुठाण की जातर का आयोजन किया गया, जहां देवलु देवता का रथ लेकर पहुंचे और पारंपरिक देव नृत्य किया.
यह अद्भुत नजारा देखते ही बन रहा था. यहां स्वर्ण जड़ित प्रतिमाओं के देवता के भव्य रथ के इर्द गिर्द देवलुओं ने पारंपरिक नृत्य किया. इस समागम का आयोजन 20 साल के बाद किया गया, जहां लोगों ने पारंपरिक चोलटू नृत्य पेश किया.
पांरपरिक भेषभूषा में नृत्य करते देवलु.
राजधानी शिमला में सुबह से ही बारिश और ओलावृष्टि हो रही थी. इसके बावजूद भी देवता के रथ को रंझाना से पैदल सड़क मार्ग से होते हुए शिमला के रिज मैदान पर लाया गया. वहीं, हजारों की संख्या में लोग और श्रद्धालु देवता की जातर को देखने के लिए रिज मैदान पर जुटे.
20 सालों के बाद आयोजित हुई देवता डोम सन्नाटा गुठाण की जातर. देव धुनों पर यह नृत्य 2 से 3 घंटे रिज मैदान पर चलता रहा. वहीं, लोग भी देवता के रथ के इर्द-गिर्द भीड़ जुटाकर इस जातर को देखते हुए नजर आए. इस अवसर पर देवता ने तमाम शिमला वासियों को सुख एवं समृद्धि का आशीर्वाद दिया. इस आयोजन के लिए प्रदेश सरकार और जिला प्रशासन ने विशेष रूप से अनुमति दी थी, जिसके बाद ही देवता का रथ रिज मैदान पर लाया गया और यहां जातर नृत्य का आयोजन किया गया.
देवता डोम सन्नाटा गुठाण के प्रमुख कारदार मदन लाल वर्मा ने बताया कि हर 20 साल बाद देवता की जातर का आयोजन किया जाता है, जिसमें देवता शिमला वासियों को सुख समृद्धि का आशीर्वाद देते हैं. उन्होंने कहा कि इससे पहले यह जातर शिमला की रानी झांसी पार्क में आयोजित की जाती थी. लेकिन हाईकोर्ट ने यहां इस जातर को आयोजित करने पर प्रतिबंध लगा दिया.
इस बार प्रदेश सरकार और जिला प्रशासन ने उनका सहयोग किया, जिसके बाद इस जातर का आयोजन शिमला के रिज मैदान पर किया गया. आखिरी बार वर्ष 2000 में शिमला के रानी झांसी पार्क में जातर करवाई गई थी. रविवार को इसका आयोजन शिमला के रिज मैदान पर किया गया. मदन लाल वर्मा ने कहा कि यह परंपरा सदियों से चली आ रही है और आज भी इसका निर्वहन उसी श्रद्धा और आस्था से किया जा रहा है.
18 ठकुराइयों और 22 रियासतों के देवता है डोम सन्नाटा
शिमला और सोलन जिलों की 18 ठकुराइयों और 22 रियासतों के देवता डोम प्रमुख देवता हैं. इनका रथ भी स्वर्ण जड़ित प्रतिमाओं का हैं और देवलु भी सफेद पारंपरिक वेषभूषा में पांव में जुट की पुले पहन कर चोल्टू नृत्य करते हैं.
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