शिमला:टांडा मेडिकल कॉलेज की मनमानी से जुड़ा मामला सामने आया है. मेधावी छात्रा निकिता चौधरी (divyang student nikita chaudhary) को उसकी दिव्यांगता के कारण डॉ. राजेंद्र प्रसाद मेडिकल कॉलेज, टांडा ने एमबीबीएस में प्रवेश देने से इंकार कर दिया है. उमंग फाउंडेशन के अध्यक्ष और राज्य विकलांगता सलाहकार बोर्ड के विशेषज्ञ सदस्य प्रो. अजय श्रीवास्तव ने राज्यपाल राजेंद्र विश्वनाथ आर्लेकर को पत्र लिखकर निकिता को न्याय दिलाने की मांग की है. (Tanda Medical College) (divyang student denied admission in MBBS) (governor rajendra vishwanath arlekar)
अटल मेडिकल यूनिवर्सिटी के मनमाने नियम: राज्यपाल अटल मेडिकल विश्वविद्यालय मंडी के कुलाधिपति भी हैं. प्रो. अजय श्रीवास्तव ने बताया की कांगड़ा जिले की तहसील बड़ोह के गांव सरोत्री की निकिता चौधरी ने इस वर्ष नीट की कठिन परीक्षा उत्तीर्ण की है. वह विकलांगता के कारण व्हीलचेयर यूजर हैं. कांगड़ा के मेडिकल बोर्ड ने उसे 75% विकलांगता का प्रमाण पत्र दिया था. उसे मेरिट के आधार पर राज्य कोटे की एमबीबीएस की सीट टांडा मेडिकल कॉलेज में मिलनी थी.
नीट की शर्तों के अनुसार ऐसे उम्मीदवारों को उसके द्वारा अधिकृत मेडिकल बोर्ड से विकलांगता का प्रमाणीकरण कराना आवश्यक है. चंडीगढ़ के सेक्टर 32 का राजकीय मेडिकल कॉलेज इसके लिए नीट ने अधिकृत किया था. निकिता ने वहां से विकलांगता का प्रमाण पत्र लिया जो 78% का है. नीट के नियमों के अनुसार 80% तक विकलांगता वाले युवा एमबीबीएस में प्रवेश के पात्र हैं. इस आधार पर उसका प्रवेश टांडा मेडिकल कॉलेज में हो जाना चाहिए था.
नियमों की उड़ाई गयी धज्जियां:टांडा मेडिकल कॉलेज ने नीट के नियमों के विपरीत जाकर उसका दोबारा मेडिकल कराया और प्रमाण पत्र में उसकी विकलांगता 90% कर दी. वहां उससे यह भी कहा गया कि तुम पढ़ाई के दौरान व्हीलचेयर से कैसे चल पाओगी. गौरतलब है कि कांगड़ा के मेडिकल बोर्ड और चंडीगढ़ के मेडिकल कॉलेज के अधिकृत बोर्ड ने उसकी विकलांगता को 'प्रोग्रेसिव' नहीं बताया था. टांडा मेडिकल कॉलेज के बोर्ड ने प्रमाण पत्र पर लिखा कि उसकी बीमारी प्रोग्रेसिव है यानी भविष्य में और भी बढ़ सकती है.