शिमला: छोटे पहाड़ी राज्य हिमाचल की दुखती रग अगर कोई है तो वो कर्ज का विशाल पहाड़ है. कर्ज के जाल में बुरी तरह से जकड़े जा चुके देश के टॉप फाइव स्टेट्स में हिमाचल का भी नाम है. विधानसभा के मानसून सेशन में हिमाचल की वित्तीय स्थिति पर श्वेत पत्र रखा गया. बजट सेशन में सीएम सुखविंदर सिंह सुक्खू ने ऐलान किया था कि उनकी सरकार आने वाले समय में राज्य की वित्तीय स्थिति पर श्वेत पत्र लाएगी.
कर्ज पर श्वेत पत्र: डिप्टी सीएम मुकेश अग्निहोत्री की अगुवाई में गठित की गई कैबिनेट सब-कमेटी की श्वेत पत्र वाली रिपोर्ट बताती है कि इस समय हिमाचल प्रदेश पर 76,630 करोड़ रुपए का कर्ज है. जल्द ही ये आंकड़ा एक लाख करोड़ को पार कर जाएगा. कारण ये है कि इस समय हिमाचल प्रदेश की प्रत्यक्ष देनदारियां 92774 करोड़ रुपए हैं. अभी हिमाचल सरकार को नए वेतन आयोग की सिफारिशों के तहत कर्मचारियों का बकाया पैसा देना है. इसके अलावा डीए की किश्तें बाकी हैं. ऐसे में आने वाले पांच साल में कर्ज का आंकड़ा सवा लाख करोड़ के करीब हो जाएगा.
कंगाली में आटा गीला: हिमाचल प्रदेश छोटा पहाड़ी राज्य है और विकास कार्यों के लिए यहां की सरकार केंद्रीय सहायता पर निर्भर है. पिछली सरकार के समय से हिमाचल की हालत कंगाली में आटा गीला वाली हो रही है. पूर्व की जयराम सरकार के समय में कोरोना ने हिमाचल की आर्थिकी की रीढ़ पर्यटन की कमर तोड़ दी तो मौजूदा सरकार के समय में भयावह आपदा ने राज्य के विकास की गाड़ी को एक दशक पीछे धकेल दिया. इस तरह हिमाचल की स्थिति दयनीय हो गई.
OPS ने बढ़ाई मुश्किलें: इसके अलावा अब हिमाचल की कांग्रेस सरकार ने कर्मचारियों के लिए ओपीएस लागू कर दी। अब हिमाचल को एनपीएस के तहत जमा किया गया शेयर भी नहीं मिल पाएगा. अभी हिमाचल सरकार को 18 साल से ऊपर की महिलाओं के लिए 1500 रुपए प्रति महीना की गारंटी के साथ दूध व गोबर खरीद जैसी गारंटियों को भी पूरा करने का दबाव है. ऐसे में हिमाचल का कर्ज के जाल से निकलना असंभव प्रतीत हो रहा है.
वाटर सेस से धन जुटाने की कवायद भी कानूनी पेंच में: सत्ता में आने के बाद सीएम सुखविंदर सिंह ने हिमाचल की नदियों के पानी पर बनी जलविद्युत परियोजनाओं पर वाटर सेस लगाने का फैसला लिया. इस कवायद से हिमाचल सरकार ने सालाना एक हजार करोड़ रुपए जुटाने का लक्ष्य रखा था, लेकिन हिमाचल की वाटर सेस कवायद को कंपनियों ने हाईकोर्ट में चुनौती दे दी. मामला हाईकोर्ट में है और अभी ये कानूनी पेंच में फंसा हुआ है. इसके अलावा हिमाचल सरकार ने बीबीएमबी परियोजनाओं का 4000 करोड़ रुपए बकाया वापस पाने के लिए भी हाथ-पांव मारे हैं. राज्य सरकार को आस है कि पंजाब से 2024 मार्च में शानन प्रोजेक्ट हिमाचल को वापिस मिल जाएगा. उस प्रोजेक्ट से भी हिमाचल को सालाना 200 करोड़ की आय होगी, लेकिन ये सारी भविष्य की बातें हैं.
श्रीलंका जैसे हो सकते हैं हिमाचल के हालात: सत्ता संभालने के बाद सीएम सुखविंदर सिंह का एक बयान खूब चर्चा में रहा था, जिसमें उन्होंने कहा था कि हिमाचल के हालात श्रीलंका जैसे हो सकते हैं. बेशक ये चेतावनी थी, लेकिन हकीकत में हिमाचल की स्थितियां आर्थिक इमरजेंसी जैसी हैं. वर्ष 2017 में हिमाचल के हर नागरिक पर 66 हजार रुपए से अधिक का कर्ज था. अब श्वेत पत्र के अनुसार ये बढक़र 102818 रुपए हो चुका है.
हिमाचल प्रदेश पर कर्ज:वित्तीय वर्ष 2021-22 के अंत में 68 हजार 630 करोड़ रुपए का कर्ज था. तब इस कुल कर्ज में 45 हजार 297 करोड़ रुपए मूल कर्ज था और 23333 करोड़ रुपए ब्याज की देनदारी के रूप में था. हिमाचल की स्थिति ये है कि सरकार को कर्ज पर चढ़े ब्याज को चुकाने के लिए भी लोन लेना पड़ रहा है. कैग रिपोर्ट में भी दर्ज है कि आगामी पांच साल के भीतर राज्य सरकार को 27,677 करोड़ रुपए का कर्ज चुकाना है. वित्तीय वर्ष 2021-22 के कर्ज का आंकड़ा लें तो एक साल में ही कुल लोन का दस प्रतिशत यानी 6992 करोड़ एक साल में अदा करना है. राज्य सरकार को अगले दो से पांच साल की अवधि में कुल लोन का चालीस फीसदी यानी 27677 करोड़ रुपए चुकाना है. इसके अलावा अगले पांच साल के दौरान यानी 2026-27 तक ब्याज सहित लोक ऋण की अदायगी प्रति वर्ष 6926 करोड़ होगी.
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एक दशक में ढाई गुणा बढ़ा कर्ज: हिमाचल प्रदेश में दस साल के अंतराल में ही कर्ज का बोझ ढाई गुणा से अधिक हो गया है. पूर्व में प्रेम कुमार धूमल के समय जब 2012 में भाजपा सरकार ने सत्ता छोड़ी तो प्रदेश पर 28760 करोड़ रुपए का कर्ज था. अब कर्ज का बोझ 76 हजार 660 करोड़ रुपए से अधिक हो गया है. सरकारी खजाने का बड़ा हिस्सा कर्मचारियों के वेतन, अन्य वित्तीय लाभ और पेंशनर्स की पेंशन आदि पर खर्च हो जाता है. वर्ष 2017-18 में वेतन व मजदूरी पर 10765.83 करोड़ रुपए का खर्च हुआ था. तब पेंशन पर 4708.85 करोड़ रुपए व ब्याज के भुगतान पर सरकार ने 3788 करोड़ रुपए चुकाए. फिर 2018-19 में वेतन पर 11210.42 करोड़ रुपए, पेंशन पर 4974.77 करोड़ व ब्याज भुगतान पर 4021.52 करोड़ रुपए खर्च किए गए. वित्तीय वर्ष 2020-21 में वेतन पर खर्च 12192.52 करोड़ रुपए हो गया. इसके अलावा पेंशन पर 6398.91 व ब्याज भुगतान पर 4640.79 करोड़ रुपए खर्च करने पड़े.
हर सरकार के समय बढ़ा कर्ज का बोझ: हिमाचल में कांग्रेस और भाजपा की सरकारें कर्ज का ठीकरा एक-दूजे पर फोड़ती आई हैं. बजट पेश करने के बाद ये तथ्य सामने आता है कि सरकार को लिए गए कर्ज के ब्याज की अदायगी के लिए सौ रुपए के मानक में दस रुपए खर्च करने पड़ते हैं. अमूमन राज्य सरकार एक समय में एक तिमाही में डेढ़ हजार करोड़ रुपए से ढाई हजार करोड़ रुपए कर्ज लेती है. सुखविंदर सिंह सरकार के पहले बजट के आंकड़ों के अनुसार हिमाचल प्रदेश सरकार वित्त वर्ष 2023-24 में 11068 करोड़ का कर्ज चुकाएगी. इसमें से 5562 करोड़ रुपए तो सिर्फ लिए गए कर्ज के ब्याज की अदायगी पर खर्च होगा. कर्ज की किश्तों के रूप में 5506 करोड़ रुपए चुकाने होंगे. वित्त वर्ष 2023-24 के अंत में राज्य पर 87 हजार करोड़ का लोन हो जाएगा और इसी प्रकार 2024-25 तक हिमाचल का कर्ज एक लाख करोड़ का आंकड़ा पार कर जाएगा.
कर्ज से मुक्ति के लिए नहीं कोई रोडमैप: सरकार के श्वेत पत्र में कर्ज का आंकड़ा और कारण तो खूब गिनाए गए हैं, लेकिन इस जाल में से कैसे निकलें, इसका रोड मैप नहीं है. पूर्व में वीरभद्र सिंह सरकार के समय सीनियर लीडर विद्या स्टोक्स की अगुवाई में रिसोर्स मोबिलाइजेशन कमेटी बनाई गई थी. उस कमेटी ने सरकारी खर्च कम करने की सलाह दी थी, लेकिन सुखविंदर सिंह सरकार ने सीपीएस की नियुक्ति के साथ कई कैबिनेट रैंक भी बांटे हैं. राज्य के खर्च बेलगाम हो रहे हैं. श्वेत पत्र के अंत में कमेटी के चेयरमैन डिप्टी सीएम ने सिफारिश की है कि राज्य सरकार संसाधन जुटाने व फिजूलखर्ची रोकने के लिए कदम उठाए. हालांकि कमेटी ने जीएसटी राजस्व वृद्धि परियोजना, शराब की बिक्री पर मिल्क सेस, वाटर सेस जैसे कदमों का उल्लेख किया है, लेकिन कोई स्पष्ट रोड मैप नहीं है.
पर्यटन और कृषि सेक्टर होगा मददगार: हिमाचल सरकार के पूर्व वित्त सचिव आईएएस केआर भारती का कहना है कि राज्य में राजस्व का सबसे बड़ा जरिया आबकारी विभाग है. उनका कहना है कि हिमाचल सरकार को पर्यटन, हाइड्रो पावर पर और अधिक फोकस करना होगा. सैलानियों का आंकड़ा कम से कम पांच करोड़ सालाना होने से पर्यटन सेक्टर में उछाल आएगा. दिल्ली से हवाई सेवाओं को सुचारू करने से ही हिमाचल को पर्यटन से बड़ी रकम मिल सकती है. वहीं, कैग ने भी हिमाचल को कृषि सेक्टर व सिंचाई सुविधाएं बढ़ाने का सुझाव दिया है. कैग के अनुसार कृषि सेक्टर को मजबूत कर राज्य की आर्थिक दशा सुधारी जा सकती है. कृषि सेक्टर को मजबूत करने से पहले राज्य को सिंचाई सुविधाएं बढ़ाने की जरूरत है.
लोकलुभावन घोषणाओं ने बढ़ाया खजाने का बोझ: पूर्व सीएम जयराम ठाकुर का कहना है कि चुनाव जीतने के लिए लोकलुभावन घोषणाएं की जाती हैं. इससे खजाने पर बोझ पड़ता है. कांग्रेस सरकार ने सत्ता में आने के बाद आठ हजार करोड़ रुपए का लोन ले लिया है. वहीं, सीएम सुखविंदर सिंह सुक्खू का कहना है कि हिमाचल को ओपीएस लागू करने की कीमत चुकानी पड़ रही है. केंद्र सरकार ने रेवेन्यू डेफिसिट ग्रांट में कटौती कर दी है. बरसात के कारण हिमाचल को दस हजार करोड़ रुपए से अधिक का नुकसान हुआ है. केंद्र सरकार को इसे राष्ट्रीय आपदा घोषित करना चाहिए. साथ ही हिमाचल को विशेष पैकेज मिलना चाहिए. सीएम सुक्खू ने कहा कि राज्य सरकार आर्थिक गाड़ी को पटरी पर लाने का प्रयास कर रही है. आने वाले समय में हिमाचल की आर्थिक स्थिति बेहतर होगी. अभी जो उपाय किए जा रहे हैं, एक दशक में उनके बेहतर परिणाम आएंगे.
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