शिमला: हिमाचल सरकार भयावह रूप से कर्ज के जाल में फंस चुकी है. कर्ज एक ऐसा स्लो पॉइजन है, जिससे कोई भी राज्य धीरे-धीरे आर्थिक मौत की तरफ बढ़ता जाता है. हिमाचल भी कर्ज के जाल में उलझ चुका है. सत्ता संभालने के बाद मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह का एक बयान खूब चर्चा में रहा था, जिसमें उन्होंने कहा था कि हिमाचल के हालात श्रीलंका जैसे हो सकते हैं. बेशक ये चेतावनी थी, लेकिन हकीकत में हिमाचल की स्थितियां आर्थिक इमरजेंसी जैसी है. राज्य पर 76 हजार करोड़ रुपए के करीब कर्ज है. हिमाचल की आबादी 75 लाख है.
पहली बार आएगा श्वेत पत्र-बजट पेश करते हुए मुख्यमंत्री ने बताया था कि प्रत्येक हिमाचली पर 92 हजार रुपए से अधिक का कर्ज है. चूंकि हिमाचल के पास आर्थिक संसाधन न के बराबर हैं और राज्य केंद्र की मदद पर निर्भर है, लिहाजा प्रदेश अकेले अपने बूते इस कठिन दौर से नहीं निकल सकता. इन्हीं परिस्थितियों को देखते हुए हिमाचल की सुखविंदर सिंह सरकार ने राज्य की आर्थिक हालत पर श्वेत पत्र लाने का ऐलान किया है. इसके लिए सरकार ने डिप्टी सीएम मुकेश अग्निहोत्री की अगुवाई में कमेटी बनाई है. हिमाचल के इतिहास में पहली बार प्रदेश की आर्थिक स्थिति पर श्वेत पत्र लाया जा रहा है. ऐसे में ये सवाल उठ रहा है कि क्या सुखविंदर सरकार के श्वेत पत्र में हिमाचल के कर्ज का जाल काटने का कोई उपाय निकलेगा? इससे पहले कि उपायों की चर्चा करें, ये देखना जरूरी है कि हिमाचल का कर्ज पहाड़ जैसा क्यों हो गया ? क्या कारण है कि लिए गए लोन का ब्याज चुकाने के लिए भी कर्ज लेना पड़ता है ?
कर्ज का ब्याज चुकाने के लिए भी सरकार लेती है कर्ज- हिमाचल पर वित्तीय वर्ष 2021-22 के अंत में 68 हजार 630 करोड़ रुपए का कर्ज था. तब इस कुल 45,297 करोड़ रुपए मूल कर्ज था और 23,333 करोड़ रुपए ब्याज की देनदारी के रूप में था. हिमाचल की स्थिति ये है कि सरकार को कर्ज पर चढ़े ब्याज को चुकाने के लिए भी लोन लेना पड़ रहा है. कैग रिपोर्ट में भी दर्ज है कि आगामी पांच साल के भीतर राज्य सरकार को 27,677 करोड़ रुपए का कर्ज चुकाना है. वित्तीय वर्ष 2021-22 के कर्ज का आंकड़ा लें तो एक साल में ही कुल लोन का दस प्रतिशत यानी 6992 करोड़ एक साल में अदा करना है. राज्य सरकार को अगले दो से पांच साल की अवधि में कुल लोन का चालीस फीसदी यानी 27677 करोड़ रुपए चुकाना है. इसके अलावा अगले पांच साल के दौरान यानी 2026-27 तक ब्याज सहित लोक ऋण की अदायगी प्रति वर्ष 6926 करोड़ होगी.
एक दशक में ढाई गुणा बढ़ा कर्ज- हिमाचल प्रदेश में दस साल के अंतराल में ही कर्ज का बोझ ढाई गुणा से अधिक हो गया है. पूर्व में प्रेम कुमार धूमल के समय जब 2012 में भाजपा सरकार ने सत्ता छोड़ी तो प्रदेश पर 28760 करोड़ रुपए का कर्ज था. अब कर्ज का बोझ 76 हजार करोड़ रुपए से अधिक हो गया है. सरकारी खजाने का बड़ा हिस्सा कर्मचारियों के वेतन, अन्य वित्तीय लाभ और पेंशनर्स की पेंशन आदि पर खर्च हो जाता है. वर्ष 2017-18 में वेतन और मजदूरी पर 10765.83 करोड़ रुपए का व्यय हुआ था. तब पेंशन पर 4708.85 करोड़ रुपए व ब्याज के भुगतान पर सरकार ने 3788 करोड़ रुपए चुकाए. फिर 2018-19 में वेतन पर 11210.42 करोड़ रुपए, पेंशन पर 4974.77 करोड़ व ब्याज भुगतान पर 4021.52 करोड़ रुपए खर्च किए गए. वित्तीय वर्ष 2020-21 में वेतन पर खर्च 12192.52 करोड़ रुपए हो गया। इसके अलावा पेंशन पर 6398.91 व ब्याज भुगतान पर 4640.79 करोड़ रुपए खर्च करने पड़े.