शिमला:हिमाचल प्रदेश के वनों में क्षतिग्रस्त पेड़ों को लेकर सरकार ने एसओपी (मानक संचालन प्रक्रिया) जारी कर दी है. इसके तहत 30 दिनों के भीतर इन पेड़ों को निपटाना होगा. इससे स्थानीय स्तर पर इमारती लकड़ी पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध हो सकेगी. प्रदेश के वन क्षेत्र में प्राकृतिक कारणों से क्षतिग्रस्त पेड़ों के बचाव एवं इनके समुचित प्रबंधन के लिए प्रदेश सरकार ने एसओपी तैयार की है. इसमें ऐसे पेड़ों के कटान से लेकर इन्हें बिक्री के लिए उपलब्ध करवाने तक की प्रक्रिया को समयबद्ध किया गया गया है. निर्धारित समय अवधि में इस प्रक्रिया की कड़ाई से अनुपालना सुनिश्चित करने के लिए वन विभाग के अधिकारियों की जवाबदेही भी तय की गई है.
इसके तहत किसी वन परिक्षेत्र में 25 से कम क्षतिग्रस्त पेड़ों के निपटाने के लिए एक निश्चित समय सारिणी तैयार की गई है, जिसमें पेड़ों की मार्किंग से लेकर इनके अंतिम निपटान तक 30 दिनों की अवधि तय की गई है. हर माह के पहले सात दिनों में फारेस्ट गार्ड और वन निगम के कर्मचारी आपसी सहयोग से इससे संबंधित ब्यौरा तैयार करेंगे.
आगामी तीन दिनों में डिप्टी रेंजर (उप वन परिक्षेत्राधिकारी ) ऐसे पेड़ों की मार्किंग करेंगे और इससे संबंधित सूची रेंजर (वन परिक्षेत्राधिकारी) को अगले तीन दिनों में सौंपेंगे. रेंजर सात दिनों के भीतर पेड़ों के कटान, इन्हें लट्ठों में बदलने और निर्दिष्ट डिपो तक उत्पाद के परिवहन से संबंधित सभी प्रक्रियाओं को पूर्ण करेंगे. यह सब प्रक्रिया पूर्व निर्धारित दरों के तहत संबंधित वन मंडलाधिकारी के समन्वय से तय समय अवधि में पूरी की जाएगी. प्रभावी निपटान के लिए रेंजर संबंधित मंडलाधिकारी को सूचित करेंगे और वह माह की 22 एवं 23 तारीख को वन निगम में संबधित अधिकारी से संपर्क कर निष्कर्षण लागत और परिवहन व्यय निर्धारित करने के बारे में अवगत करवाएंगे. इसके साथ ही वन मंडलाधिकारी निष्कर्षण, परिवहन लागत और रॉयल्टी के आधार पर बिल तैयार कर इसे वन निगम के मंडलीय प्रबंधक को भेजेंगे. बिल की अदायगी पर माह की 24 से 26 तारीख के मध्य तैयार लकड़ी वन निगम को भेज दी जाएगी. यदि वन निगम इसे लेने से मना करता है तो रेंजर माह की 27 एवं 28 तारीख को विभागीय स्तर पर नीलामी की प्रक्रिया आरंभ करेगा और इसके लिए हिमाचल प्रदेश वन विभाग के प्रबन्धन विंग द्वारा आरक्षित मूल्य निर्धारित किया जाएगा.