शिमला: हिमाचल में नशाखोरी के बढ़ते जाल के बीच नशा मुक्ति केंद्र दयनीय स्थिति में हैं. शिमला में चार साल पहले खुला सेंटर बंद होने की कगार पर है. यहां चार साल से केंद्र से कोई वित्तीय सहायता नहीं मिली है. राज्य के अन्य केंद्रों के हाल भी बेहाल है. इस पर हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट ने राज्य सरकार से स्टेट्स रिपोर्ट तलब की है. साथ ही हाई कोर्ट ने केंद्र सरकार से पूछा है कि नशा मुक्ति केंद्रों को वित्तीय सहायता प्रदान करने की ताजा स्थिति क्या है? दरअसल, हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट ने इस मामले में स्वत: संज्ञान लिया है. वित्तीय तंगी झेल रहे एकीकृत व्यसन पुनर्वास केंद्र अपने मकसद में कामयाब नहीं हो रहे हैं. अदालत ने राज्य सरकार से पूछा है कि जहां एनजीओ की तरफ से संचालित किए जा रहे नशा मुक्ति केंद्र नहीं हैं, वहां सरकार क्या कदम उठा रही है.
इस मामले में हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति एमएस रामचंद्र राव व न्यायमूर्ति ज्योत्सना रिवाल दुआ की खंडपीठ ने राज्य सरकार से स्टेट्स रिपोर्ट तलब की है. खंडपीठ ने राज्य सरकार को ये बताने के आदेश दिए हैं कि नशे के चंगुल में फंसे लोगों को सरकारी अस्पतालों में कितने बिस्तर उपलब्ध हैं. राज्य सरकार को हर जिला के बारे में जानकारी देनी होगी. अदालत ने गंभीरता दिखाते हुए इस मामले में सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव व विभाग के निदेशक को भी प्रतिवादी बनाया है. खंडपीठ ने किन्नौर, लाहौल-स्पीति, ऊना और हमीरपुर में नशे से मुक्ति के लिए उपलब्ध करवाई जा रही सुविधाओं की जानकारी भी मांगी है. अदालत के संज्ञान में ये तथ्य आया है कि कुल्लू, धर्मशाला, चंबा, मंडी, सिरमौर, बिलासपुर और सोलन में स्थापित नशा मुक्ति केंद्र पहले अनुदान मिलने के बावजूद अभी तक शुरू नहीं हुए हैं.