शिमला: करीब सत्तर हजार करोड़ रुपए के कर्ज में डूबे हिमाचल प्रदेश की आर्थिक गाड़ी को पटरी पर लाना नई सरकार के लिए सबसे बड़ी चुनौती है. व्यवस्था परिवर्तन की सोच लेकर मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू हिमाचल की वित्तीय स्थिति को सुधारने के लिए कुछ इनोवेटिव आइडियाज पर काम कर रहे हैं. इसके अलावा सीएम सामाजिक सुरक्षा के विषय पर भी गंभीर हैं. इसका पता अनाथ आश्रमों, बालिका आश्रम व वृद्ध आश्रमों के प्रति उनकी संवेदनशीलता से चल रहा है.
सीएम सुखविंदर सिंह सुक्खू कह चुके हैं कि ओल्ड पेंशन स्कीम की बहाली उनके लिए मॉनिटरी बेनेफिट से अधिक सोशल सिक्योरिटी का मामला है. फिलहाल, सीएम सुखविंदर सिंह इन दिनों सरकारी कामकाज का सिस्टम समझते हुए अपने रोडमैप को लागू करने की संभावनाओं पर काम कर रहे हैं. उन्होंने न केवल विधायकों बल्कि अफसरों को भी कुछ विशेष कार्यों पर लगाया है. मुख्यमंत्री पर्यटन, हाइड्रो पावर, इंडस्ट्री, ग्रीन ट्रांसपोर्ट पर काम कर रहे हैं.
उनका मानना है कि पर्यटन सेक्टर से आर्थिकी को मजबूत किया जा सकता है. यही कारण है कि पर्यटकों की सुविधा के लिए वे हवाई यात्रा के विकल्पों पर काम करना चाहते हैं. इसके लिए उन्होंने सभी जिलों के आयुक्तों को हेलीपोर्ट के लिए जगह तलाशने के लिए कहा है. इसी तरह इंडस्ट्री सेक्टर्स के लिए मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू निवेश प्रक्रियाओं को आसान बनाने की दिशा में काम कर रहे हैं. परिवहन सेक्टर में सीएम इलेक्ट्रिक वाहनों की तरफ जाएंगे. इससे न केवल इंधन में खर्च होने वाली भारी-भरकम रकम बचेगी, बल्कि पर्यावरण भी सहेजा जा सकेगा.
उदाहरण के लिए शिमला के उपनगर संजौली से लक्कड़ बाजार तक चलने वाली इलेक्ट्रिक सरकारी टैक्सी एक बार में सिर्फ ढाई सौ रुपए में चार्ज हो जाती है, लेकिन वो एचआरटीसी को अपने रूट से एक दिन में 2400 रुपए कमा कर देती है. यदि इसमें से ढाई सौ रुपए चार्जिंग और 1500 रुपए प्रति दिन चालक के मानदेय के तौर पर निकाल दें तो भी एक दिन में साढ़े छह सौ रुपए मात्र एक छोटे से रूट पर बचते हैं. यानी महीने में साढ़े उन्नीस हजार रुपए कमाई केवल एक वाहन से होती है. (Electric vehicle policy in Himachal).