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नो इफ, नो बट: भाजपा को ले डूबा ओवर कॉन्फिडेंस, पहली बार रुका जयराम का विजय रथ - नगर निगम चुनाव हिमाचल प्रदेश

प्रदेश में नगर निगम चुनाव में भाजपा मंडी और धर्मशाला पर दर्ज कर पाई. वहीं, कांग्रेस सोलन और पालमपुर पर जीत का परचम लहरा पाई है. वहीं, प्रदेश में बाई-इलेक्शन की बात करें तो यहां भाजपा के अच्छे मार्जिन से जीत हासिल करने से भाजपा प्रदेश नेतृत्व का कॉन्फिडेंस आसमान पर पहुंच गया था. शायद यहीं वजह है कि भाजपा को सोलन और पालमपुर में हार का सामना करना पड़ा है.

cm jairam
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Published : Apr 8, 2021, 7:14 AM IST

शिमला: नो इफ, नो बट, भाजपा को अति आत्मविश्वास ले डूबा. विधानसभा चुनाव के नजदीक आते समय के बीच तीन नए नगर निगम गठित करना और फिर पार्टी चिन्ह पर चुनाव करवाना. दरअसल 2017 में जीत के बाद अब तक कोई भी उपचुनाव न हारना, ये सारे अति आत्मविश्वास भाजपा को ले डूबे.

उप चुनाव में अच्छे मार्जिन से जीती थी भाजपा

वर्ष 2017 में विधानसभा चुनाव में प्रचंड जीत हासिल करने के बाद भाजपा हाईकमान ने जयराम ठाकुर को सीएम पद का ताज पहनाया. दिसंबर 2017 में शिमला के रिज मैदान पर भव्य समारोह में शपथ लेने के बाद जयराम ठाकुर को जनता ने भी जी खोल कर स्वीकार कर लिया. इसका प्रमाण आने वाले समय के चुनाव बने. पहले लोकसभा चुनाव, फिर धर्मशाला और पच्छाद का उपचुनाव. उप चुनाव में अच्छे मार्जिन से जीत हासिल करने के बाद भाजपा के प्रदेश नेतृत्व का कॉन्फिडेंस आसमान पर पहुंच गया.

दो निगमों पर ही जीत पाई भाजपा

कांग्रेस पर हमला बोलते समय सीएम जयराम ठाकुर छाती तानकर कहते थे कि लोकसभा चुनाव में सांसद की चार सीटों के लिए 68 के 68 विधानसभा क्षेत्रों में भाजपा को बढ़त मिली. यही नहीं, धर्मशाला और पच्छाद के उपचुनाव भी भाजपा ने जीते. ये आत्मविश्वास बाद में अति आत्मविश्वास में बदला. परिणाम ये हुआ कि भाजपा ने विधानसभा चुनाव की आहट के बीच नए नगर निगम बना डाले. फिर इनमें चुनाव भी पार्टी चिन्ह पर करवाने का फैसला ले लिया. बाद में जनसभाओं में सीएम जयराम ठाकुर और अन्य भाजपा नेता ये भावुक अपील करते थे कि सरकार ने नगर निगम बना दिए, अब सत्ता हमें दे दो. उधर, संगठन की मजबूती का कॉन्फिडेंस अलग से था. भाजपा ये कहती नहीं थकती थी कि उसके पास मजबूत संगठन है. कांग्रेस के कार्यकर्ता बिखरे हुए हैं, सर्वमान्य नेता नहीं है कांग्रेस के पास अलाना-फलाना, आदि-आदि. ये सब फैक्टर बुधवार की रात को चुनाव नतीजों के साथ धराशायी हो गए. पालमपुर और सोलन में फजीहत हुई. धर्मशाला में मुश्किल से नाक बची और मंडी में भी सदर इलाके के वार्ड खिसक गए.

भाजपा ने सीएम के गृह जिले से जीत दर्ज की

अब भाजपा आत्मचिंतन के मोड़ पर चली जाएगी. पार्टी और सरकार के लिए ये बड़ा धक्का है. नए-नवेले अध्यक्ष सुरेश कश्यप के लिए भी चिंता का समय है. जयराम ठाकुर और उनकी सरकार इस बात पर संतोष कर सकती है कि चलो मंडी का किला तो बचा, लेकिन दूसरे गढ़ गंवाकर ये किला फतह हुआ तो जख्मों पर मरहम लगाने समान है. सोलन में सरकार के मंत्री राजीव सैजल के लिए ये दिल की धड़कन बढ़ाने वाला नतीजा है. यहां भाजपा के दो-दो डॉक्टर भी वोटर्स की नब्ज नहीं पकड़ सके. बड़ा गुमां था कि राजीव बिंदल हारी हुई बाजी पलट देते हैं, लेकिन सोलन के मतदाताओं ने भाजपा का राजनीतिक इलाज कर दिया. यहां कांग्रेस के विधायक कर्नल धनीराम शांडिल, चुनाव प्रभारी राजेंद्र राणा और हर्षवर्धन की बल्ले-बल्ले हो गई.

सत्ता के सेमीफाइनल में कांग्रेस का कमबैक

पालमपुर में भाजपा शुरू से ही कमजोर दिख रही थी. यहां कांग्रेस के कद्दावर नेता बीबीएल बुटेल के परिवार का प्रभाव बरकरार है. बीबीएल बुटेल के बेटे आशीष बुटेल विधायक हैं. फिर पालमपुर में कांग्रेस को कौल सिंह ठाकुर और रामलाल ठाकुर के अनुभव का लाभ भी मिला. धर्मशाला में अगर साख बची और नाक कटते-कटते रह गई तो इसका श्रेय युवा भाजपा विधायक विशाल नैहरिया और अनुराग ठाकुर के प्रचार को दिया जा सकता है. अगर विशलेषण को और विस्तार न दें तो संक्षेप में ये निष्कर्ष निकलता है कि सत्ता के सेमीफाइनल में कांग्रेस ने कमबैक किया है. कांग्रेस की इस सफलता को अगर आने वाले साल में भी बड़े नेताओं के मार्गदर्शन का खाद-पानी मिलता रहा तो अगले चुनाव टीम भाजपा के लिए दूर की कौड़ी बन सकते हैं.

चुनाव को लेकर भाजपा का मंथन

अगर, भाजपा के सबसे बड़े चेहरों पीएम नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह के पूर्व के बयानों पर गौर किया जाए जिसमें उन्होंने कहा कि हिमाचल में भाजपा महज पांच साल के लिए नहीं बल्कि कम से कम 15 साल के लिए सत्ता में रहेगी. लेकिन ये किला तो पांचवें साल में प्रवेश करते-करते दरकने लगा है. अब अंत में यही पंक्तियां बचती हैं कि भाजपा के आत्मचिंतन और मंथन से निकले कड़वे घूंट अगर नेतृत्व में विनम्रता से स्वीकार कर गल्तियों को पहचान कर अपने किले की दीवारों को मजबूत कर लिया तो अगले चुनाव में उम्मीद बंधी रह सकती है, वरना कांग्रेस ने तो सेंध लगा ही दी है.

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