शिमला:हिमाचल प्रदेश में सत्ता का रास्ता कांगड़ा जिला से होकर निकलता है. कारण ये है कि कांगड़ा राज्य का सबसे बड़ा जिला है और यहीं पर सबसे अधिक 15 विधानसभा क्षेत्र हैं. प्रेम कुमार धूमल के समय भी भाजपा मिशन रिपीट का सपना देख रही थी और राजनीतिक रूप से काफी मजबूत थी, परंतु कांगड़ा का किला न साध पाने के कारण सत्ता से बाहर हो गई थी.
गुटबाजी का विष ही ऐसा है कि चिंतन और मंथन के बावजूद रह ही जाता है. इस बार भाजपा हाईकमान फूंक-फूंक कर कदम रख रही है और किसी भी तरह से मिशन 2022 को पूरा करना चाहती है. पूर्व में अमित शाह कह चुके हैं कि हिमाचल में भाजपा पांच साल के लिए नहीं बल्कि पंद्रह साल के लिए सत्ता में रहने की रणनीति पर काम कर रही है. यदि भाजपा ने इस सपने को पूरा करना है तो उसे कांगड़ा का दुर्ग सबसे पहले सुरक्षित करना होगा.
इसी कड़ी में शिमला में कोर ग्रुप की मीटिंग के बाद कांगड़ा के धर्मशाला में दो दिवसीय कार्ययोजना बैठकहो रही है. इस बैठक की इंपोर्टेंस का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इसमें राष्ट्रीय संगठन मंत्री बीएल संतोष सहित पार्टी के उपाध्यक्ष सौदान सिंह व अन्य प्रमुख नेता भाग ले रहे हैं. हिमाचल भाजपा के दिग्गज नेता प्रेम कुमार धूमल, सीएम जयराम ठाकुर, केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर पार्टी के सांसद, संगठन मंत्री राकेश जम्वाल और पार्टी प्रभारी अविनाश राय खन्ना चिंतन शिविर यानी कार्ययोजना मीटिंग में शामिल हुए हैं.
2022 के चुनावों पर चर्चा
पार्टी प्रवक्ता रणधीर शर्मा के अनुसार ये मीटिंग 2022 के चुनाव की तैयारियों पर चर्चा के लिए है. उपचुनाव की रणनीति भी इसी मीटिंग में डिस्कस की जाएगी. साथ ही सरकार व संगठन में तालमेल व सरकार के कामकाज की समीक्षा भी की जा रही है. कार्ययोजना बैठक के लिए कांगड़ा जिला को चुनना अपने आप में अहम है. कांगड़ा को यदि साध लिया तो सत्ता हासिल हो जाती है.
कांगड़ा की अनदेखी भी खतरनाक
कांगड़ा जिला को ऐसा लगता है कि सत्ता में आने के बाद सरकारें उसकी अनदेखी करती हैं. कांगड़ा से यदि देखें तो केवल शांता कुमार ही सीएम बने हैं. यहां सबसे अधिक 15 सीटें हैं. मुख्यमंत्री की कुर्सी शिमला, हमीरपुर और फिर अब मंडी जिला के पास आई है. कांगड़ा जिला जिस पार्टी को सत्ता में लाता है उसकी झोली कम से कम 10 सीटों से तो भर ही देता है. साथ ही जिसे विपक्ष में बिठाता है, जाहिर है उसे चार से पांच सीटें ही मिलेंगी.