शिमला:विधानसभा चुनाव में कर्ज एक बड़ा मुद्दा है. हिमाचल में कांग्रेस और भाजपा बारी-बारी से सत्ता में आते रहे हैं. कर्ज के मर्ज को लेकर दोनों दल एक-दूसरे को कटघरे में खड़ा करते हैं. कांग्रेस आरोप लगाती है कि भाजपा ने प्रदेश को कर्ज में डुबो दिया, तो भाजपा का कहना है कि हिमाचल के कर्ज की इकलौती जिम्मेदार कांग्रेस पार्टी है. आंकड़ों की जुबानी देखें तो हिमाचल पर इस समय 67,404 करोड़ रुपए का कर्ज है. जयराम सरकार ने पांच साल में कुल 19,498 करोड़ रुपए का लोन लिया है. वहीं, वीरभद्र सिंह की सरकार के दौरान वर्ष 2012 से 2017 तक की अवधि में कुल 19,200 करोड़ रुपए का कर्ज लिया गया. इस तरह देखा जाए तो जयराम सरकार ने पूर्व की सरकार के मुकाबले अधिक कर्ज लिया है, लेकिन भाजपा सरकार का कहना है कि उसने वीरभद्र सिंह सरकार के समय एक वित्तीय खामी को दुरुस्त कर बकाया रकम चुकाई थी.
विधानसभा में कैबिनेट मंत्री सुरेश भारद्वाज की तरफ से एक आंकड़ा पेश किया गया था कि प्रेम कुमार धूमल के नेतृत्व वाली सरकार ने 2012 में जब सत्ता छोड़ी थी तो हिमाचल पर 28760 करोड़ रुपए का कर्ज था. बाद में कांग्रेस सरकार के समय यह कर्ज 47,906 करोड़ रुपए हो गया. इस तरह वर्ष 2017 में वीरभद्र सिंह सरकार हिमाचल पर 47,906 करोड़ का कर्ज छोड़ गई थी. तब पांच साल में यानी 2012 से 2017 तक 19146 करोड़ रुपए का कर्ज लिया गया. आंकड़ों की इस बाजीगिरी के बीच ये तथ्य और सत्य है कि हिमाचल की गाड़ी कर्ज के सहारे चल रही है. जयराम सरकार ने भी अपने कार्यकाल का संभवत: आखिरी लोन लिया है. ये लोन 2500 करोड़ रुपए के रूप में है.
सरकार ने सितंबर महीने के पहले पखवाड़े में ये कर्ज लिया है. किश्तों में लिए गए इस कर्ज की देनदारी दशकों तक रहेगी. सरकार के खाते में 14 सितंबर 2022 को लोन की रकम आई और अक्टूबर महीने में वेतन तथा एरियर पर खर्च भी हो गई. कुल 2500 करोड़ रुपए का ये लोन अलग-अलग चार मदों में लिया गया है. पहली मद में 500 करोड़ रुपए का कर्ज 11 साल के लिए, फिर से 500 करोड़ रुपए का कर्ज 12 साल के लिए, 700 करोड़ का लोन 14 साल के लिए और फिर 800 करोड़ रुपए का कर्ज 15 साल के लिए लिया गया.
सरकार ने नए वेतनमान की सिफारिशों को लागू किया है. कर्मचारियों को संशोधित वेतनमान का एरियर दिया गया. एरियर की पहली किश्त देने में ही एक हजार करोड़ रुपए का खर्च हुआ. इस 2500 करोड़ रुपए के कर्ज से पहले मौजूदा सरकार ने अब तक के कार्यकाल में 16,998 करोड़ का लोन लिया था. वहीं, पांच साल के अंतराल में यानी 2012 से 2017 तक वीरभद्र सिंह सरकार ने 19200 करोड़ रुपए का कर्ज लिया था. मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर के अनुसार पूर्व कांग्रेस सरकार के समय में लोन लेने की वृद्धि दर 67 फीसदी थी.
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