शिमलाः हिमाचल प्रदेश में 90 फीसदी आबादी ग्रामीण इलाकों में रहती है और किसी न किसी रूप में खेती-बागवानी, पशुपालन आदि से जुड़ी है. हिमाचल प्रदेश में सात लाख से अधिक किसान परिवार व चार लाख के करीब बागवान परिवार हैं.
कोरोना महामारी के इस दौर में केंद्र सरकार के 20 लाख करोड़ रुपए के आर्थिक पैकेज में से एग्रीकल्चर व अन्य सेक्टर को 1.63 लाख करोड़ रुपए मिले हैं.
हिमाचल के संदर्भ में देखा जाए तो यहां की परिस्थितियां बायो-डायवर्सिटी के कारण अलग हैं. यहां के अधिकांश किसान लघु व सीमांत हैं, उनके पास छोटे-छोटे खेत हैं. प्रदेश में बेमौसमी सब्जियों का भी अच्छा खासा उत्पादन होता है.
हालांकि खेती-बागवानी व पशुपालन का प्रदेश की जीडीपी में अधिक योगदान नहीं है, लेकिन खेती-किसानी यहां आजीविका का आधार स्तंभ है. ये सही है कि इस पैकेज से हिमाचल को दीर्घकाल में लाभ होगा, लेकिन यहां की कुछ ज्वलंत समस्याएं अभी भी हल नहीं हुई हैं.
उदाहरण के लिए हिमाचल प्रदेश में बंदर व जंगली जानवर फसल और फलों को सालाना पांच सौ करोड़ रुपए से अधिक का नुकसान पहुंचाते हैं.
हालांकि हिमाचल सरकार ने सोलर फैंसिंग के लिए कई प्रावधान किए हैं, लेकिन समस्या का पूरी तरह से हल नहीं हुआ है. सोलर फैंसिंग के लिए हिमाचल सरकार ने 200 करोड़ रुपए केंद्र से मंजूर करवाए थे.
फिलहाल शुक्रवार को घोषित एक लाख करोड़ रुपए कृषि सेक्टर में इन्फ्रास्ट्रक्चर के लिए है. ये आने वाले समय में तो अहम साबित होगा, लेकिन अभी के लिए इसका खास फायदा नहीं है.