शिमला: आजाद भारत के इतिहास में भारत-पाक शिमला समझौते का अहम स्थान है. 1971 में युद्ध हार जाने के बाद जब पाक के मुखिया जुल्फिकार अली भुट्टो को अहसास हुआ कि अब उन्हें देश में भारी विरोध का सामना करना होगा, तो उन्होंने भारतीय पीएम इंदिरा गांधी के पास बातचीत व समझौते का संदेश भेजा. भारत ने भी बात आगे बढ़ाई और वर्ष 1972 में 28 जून से 2 जुलाई के दरम्यान शिमला में शिखर वार्ता तय हुई.
समझौते के लिए पाकिस्तानी प्रतिनिधिमंडल अपने पीएम जुल्फिकार अली भुट्टो के साथ शिमला पहुंचा. यात्रा में भुट्टो के साथ उनकी बेगम को आना था. लेकिन उनकी बीमारी की स्थिति में उनकी जगह भुट्टो अपनी बेटी बेनजीर को लाये. जो उस समय महज 19 साल की थीं.
इंदिरा गांधी ने जुल्फीकार के लिए खरीदे थे सिगार
शिखर वार्ता के दौरान इंदिरा गांधी के स्पष्ट निर्देश थे कि मेहमानों का पूरा ख्याल रखा जाए. यहां तक कि भुट्टो की पसंद का सिगार खरीदने खुद इंदिरा गांधी मालरोड की प्रतिष्ठित दुकान गेंदामल हेमराज तक गयी थीं. मालरोड की ही एक अन्य दुकान स्टाईलको से उन्होंने अंतिम दौर की बातचीत के लिए पर्दे खरीदे थे.
19 बरस की थी बेनजीर
भारत-पाक के बीच शिमला समझौते से अलग एक चैप्टर बेनजीर भुट्टो का भी है. बेनजीर यानी जिसकी नजीर न हो यानी कोई उदाहरण न मिले. उस समय बेनजीर को देखने वालों का कहना है कि सचमुच बेनजीर भुट्टो वैसी ही थीं. शिमला समझौते के समय वे 19 बरस की थीं. बेनजीर भुट्टो निहायत खूबसूरत थीं. यही कारण है कि शिमला में उस समय उन्हें देखने के लिए भीड़ उमड़ पड़ती थी. शिमला समझौते के दौरान शिमला में बेनजीर की खूबसूरती के खूब चर्चे हुए.