शिमला: प्रदेश का गांव मड़ावग सेब की खेती के लिए एशिया का सबसे अमीर गांव बन गया है. प्रति व्यक्ति आय में इस गांव ने गुजरात के माधवपुर गांव का भी रिकॉर्ड तोड़ दिया है.
बता दें कि 1982 में एशिया के सबसे अमीर गांव का श्रेय भी हिमाचल के शिमला जिला को छोटे से गांव क्यारी के पास था. क्यारी गांव के बाद अब मड़ावग गांव एशिया का सबसे अमीर गांव है.
दरअसल प्रदेश के गांव मड़ावग में साल 1954 में किसान चैइंयां राम मेहता अपने खेत में उपजाए आलू की फसल खच्चर पर लादकर कोटखाई के रास्ते शिमला में बेचने के लिए जा रहे थे. वापसी में लौटने पर वे कोटखाई से सेब के पौधे लेकर आए. मड़ावग पहुंचे और उन्होंने ग्रामीणों को सेब के पौधों के बारे में बताया. चैइंयां राम की बात सुनकर ग्रामीणों ने आलू की जगह सेब उगाने का प्रबल विरोध किया.
ग्रामीणों के विरोध के बाद भी धुन के पक्के चैइंयां राम अपनी बात पर अड़े रहे. उन्होंने कुछ जमीन पर सेब के पौधे लगा दिए. वहीं, कोटखाई के बागवान उस समय तक सेब उत्पादन में पहचान बना चुके थे. चैइंयां राम कोटखाई जाकर सेब के पौधों की देखभाल के बारे में सीखते रहे. बारह साल बाद 1966 में जब पौधों में पहली बार फल लगे और चैइंयां राम उन्हें बेचने मंडी गए तो वापसी में उनकी जेब में आठ हजार रुपये की रकम थी. सौ-सौ के नोट देखकर ग्रामीणों भी हैरान रह गए. इसके बाद धीरे-धीरे ग्रामीणों ने भी सेब के पौधे लगाने शुरू किए और नतीजा ये निकला कि लक्ष्मी अब साक्षात इस गांव में बसती है.
चैइंयां राम की पहल की वजह की वजह से आज मड़ावग गांव एशिया का सबसे अमीर गांव बन गया है. इलाके में दो हजार से अधिक की आबादी है. आलीशान मकान, हर मकान के आगे महंगी गाड़ियां और हर साल सेब के दस लाख बॉक्स का उत्पादन यहां होता है. यहां एक साल में 150 करोड़ रुपये का सेब पैदा किया जाता है.
युवाओं ने संभाली बुजुर्गों की विरासत
मड़ावग गांव के बुजुर्गों ने सेब उत्पादन के जो बीज बोए थे, युवाओं ने उसे मेहनत और लगन का खाद-पानी दिया. गांव के प्रगतिशील युवाओं ने सरकारी नौकरी की बजाय सेब उत्पादन में महारत हासिल करने पर ध्यान दिया. बागवानों का कहना है कि इस समय गांव में विदेशी किस्मों के सेब सफलता से उगाए जा रहे हैं. चीन, अमेरिका, न्यूजीलैंड और इटली को टक्कर देने में यहां बागवान सक्षम हैं. नई तकनीक और इंटरनेट की जानकारी से लैस मड़ावग गांव के युवा अपने बागीचों की देखभाल आधुनिक जरियों से करते हैं. यहां पैदा हुए सेब की देश की बड़ी मंडियों जैसे मुंबई, अहमदाबाद, कोलकाता में भारी मांग है.
विदेशों को भी यहां के सेब का निर्यात किया जाता है. बताया जाता है कि ट्रॉपिकाना कंपनी के एप्पल जूस में मड़ावग की कुछ सेब किस्मों को प्रेफर किया जाता है. बागवानी विशेषज्ञ डॉ. एसपी भारद्वाज के अनुसार मड़ावग गांव के बागवानों ने अपनी लगन से ये मुकाम हासिल किया है. पहले भी शिमला जिला के क्यारी गांव का नाम एशिया के सबसे अमीर गांवों में आ चुका है.
संपन्नता की मिसाल
मड़ावग में करीब चार सौ परिवार रहते हैं. दो हजार से कुछ अधिक की आबादी वाले इस गांव की भूमि सेब उत्पादन के लिए माकूल है. यहां सालाना डेढ़ सौ करोड़ रुपये के सेब होते हैं. प्रति परिवार आय सालाना 75 लाख के करीब है. आज ये गांव संपन्नता की मिसाल है. बागवान इतने जागरुक हैं कि हर साल सेब का ऑन इयर होता है. ऑन इयर एक तकनीकी शब्द है, जिसके अनुसार हर साल सेब का उत्पादन होता है. अमूमन ऐसा होता है कि एक बार ऑन इयर और एक बार ऑफ इयर ऑफ प्रोडक्शन होता है, लेकिन मड़ावग के बागवान अपने बागीचों को इस तरह मैंटेन करते हैं कि यहां हर साल ऑन इयर ऑफ प्रोडक्शन होता है.
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