शिमलाः लोकसभा चुनाव में बीजेपी सरकार को पूर्ण बहुमत मिला है. कई राज्यों के साथ हिमाचल में भी बीजेपी ने क्लीन स्वीप किया है. बीजेपी को प्रचंड बहुमत मिलने के बाद हिमाचल के सेब बागवानों को मोदी सरकार से उम्मीद है.
हिमाचल के पास आय के लिए अपने कोई आार्थिक संसाधन नहीं है. ऐसे में हिमाचल की आर्थिकी कुछ हद तक बागवानी, कृषि, नगदी फसलों पर टिकी है. सेब हिमाचल की अर्थव्यवस्था की रीढ़ की हड्डी है. विदेशी सेब पर आयात शुल्क बढ़ाने और हिमाचल के सेब को विशेष श्रेणी का दर्जा दिलाने के नाम पर हर राजनीतिक पार्टी ने हिमाचल के बागवानों को झुनझुना ही थमाया है. इस बार बागवानों को उम्मीद है कि अब केन्द्र और राज्य सरकार सेब बागवानों पर पड़ रही विदेशी सेब की मार से निजात दिलाने का काम करेगी.
हिमाचल में करोड़ों रूपयों का सेब हर साल उत्पादित करता है. पूरे हिमाचल में सेब की ढाई करोड़ से अधिक पेटियां होती हैं. करीब 4 लाख परिवार सेब बागवानी से जुड़े हैं. शिमला, कुल्लू, मंडी, चंबा, किन्नौर, सिरमौर, लाहौल स्पीति में सेब की बागवानी होती है. सबसे ज्यादा सेब की पैदावार शिमला जिला में होती है.
सेब बागवानों की मांगें
सेब कारोबार का हिमाचल की आर्थिकी में बहुत बड़ा रोल है, लेकिन लंबे समय से हिमाचल के सेब बागवान घाटे का सौदा झेल रहे हैं. सेब बागवान लंबे समय से अपनी कुछ मांगें पूरी होने के इंतजार में हैं. विदेशों से आयात होने वाले सेब ने प्रदेश की एप्पल इंडस्ट्री को भारी नुकसान पहुंचाया है. साल 2018 में अगस्त माह तक यूएसए से 1.45 लाख मिट्रिक टन सेब आयात किया गया है. यूएसए के अलावा भी न्यूजीलैंड, चिली, ईरान और टर्की से 2.78 लाख टन मिट्रिक सेब बीते साल सितबंर माह तक आयात किया गया. यही वजह है कि प्रदेश के बागवान लंबे समय से सेब को विशेष फल का दर्जा देने की मांग कर रहे हैं.
कस्टम ड्यूटी बढ़ाने की मांग
हिमाचल के सेब बागवानों का सबसे बड़ा मुद्दा विदेशी सेब का भारत में अंधाधुंध आयात रोकना है. शिमला के युवा बागवान संजीव चौहान ने कहा कि विदेशों से सेब भारत की मंडियों में आता है और इसके सामने हिमाचली सेब पिछड़ जाता है. इसकी वजह यह है कि आकार, रंग और अन्य बाहरी दिखावे के दृष्टिगत हिमाचल का सेब विदेशी सेब का मुकाबला नहीं कर पाता.
हिमाचली सेब देशभर के बाजार में स्थापित हो सके इसलिए बागवान विदेशों से आयात होने वाले सेब पर कस्टम ड्यूटी बढ़ाने की मांग कर रहे हैं. सेब बागवानों का कहना है कि विदेशों से आयात होने वाले सेब पर कस्टम ड्यटी कम होने से हिमाचल के सेब को बाजार नहीं मिल पाता. कस्टम ड्यूटी कम होने से विदेशी सेब सस्ता होता है. विदेशी सेब के सस्ता होने के कारण हिमाचली सेब को ग्राहक नहीं मिल पाता.