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मोदी सरकार ने पहले कार्यकाल में बागवानों को किया निराश, 'नमो 2.0' से बागवानों को आस

हिमाचल के पास आय के लिए अपने कोई आार्थिक संसाधन नहीं है. ऐसे में हिमाचल की आर्थिकी कुछ हद तक बागवानी, कृषि, नगदी फसलों पर टिकी है. सेब हिमाचल की अर्थव्यवस्था की रीढ़ की हड्डी है.

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Published : May 27, 2019, 3:22 PM IST

शिमलाः लोकसभा चुनाव में बीजेपी सरकार को पूर्ण बहुमत मिला है. कई राज्यों के साथ हिमाचल में भी बीजेपी ने क्लीन स्वीप किया है. बीजेपी को प्रचंड बहुमत मिलने के बाद हिमाचल के सेब बागवानों को मोदी सरकार से उम्मीद है.

हिमाचल के पास आय के लिए अपने कोई आार्थिक संसाधन नहीं है. ऐसे में हिमाचल की आर्थिकी कुछ हद तक बागवानी, कृषि, नगदी फसलों पर टिकी है. सेब हिमाचल की अर्थव्यवस्था की रीढ़ की हड्डी है. विदेशी सेब पर आयात शुल्क बढ़ाने और हिमाचल के सेब को विशेष श्रेणी का दर्जा दिलाने के नाम पर हर राजनीतिक पार्टी ने हिमाचल के बागवानों को झुनझुना ही थमाया है. इस बार बागवानों को उम्मीद है कि अब केन्द्र और राज्य सरकार सेब बागवानों पर पड़ रही विदेशी सेब की मार से निजात दिलाने का काम करेगी.

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हिमाचल में करोड़ों रूपयों का सेब हर साल उत्पादित करता है. पूरे हिमाचल में सेब की ढाई करोड़ से अधिक पेटियां होती हैं. करीब 4 लाख परिवार सेब बागवानी से जुड़े हैं. शिमला, कुल्लू, मंडी, चंबा, किन्नौर, सिरमौर, लाहौल स्पीति में सेब की बागवानी होती है. सबसे ज्यादा सेब की पैदावार शिमला जिला में होती है.

सेब बागवानों की मांगें
सेब कारोबार का हिमाचल की आर्थिकी में बहुत बड़ा रोल है, लेकिन लंबे समय से हिमाचल के सेब बागवान घाटे का सौदा झेल रहे हैं. सेब बागवान लंबे समय से अपनी कुछ मांगें पूरी होने के इंतजार में हैं. विदेशों से आयात होने वाले सेब ने प्रदेश की एप्पल इंडस्ट्री को भारी नुकसान पहुंचाया है. साल 2018 में अगस्त माह तक यूएसए से 1.45 लाख मिट्रिक टन सेब आयात किया गया है. यूएसए के अलावा भी न्यूजीलैंड, चिली, ईरान और टर्की से 2.78 लाख टन मिट्रिक सेब बीते साल सितबंर माह तक आयात किया गया. यही वजह है कि प्रदेश के बागवान लंबे समय से सेब को विशेष फल का दर्जा देने की मांग कर रहे हैं.

कस्टम ड्यूटी बढ़ाने की मांग
हिमाचल के सेब बागवानों का सबसे बड़ा मुद्दा विदेशी सेब का भारत में अंधाधुंध आयात रोकना है. शिमला के युवा बागवान संजीव चौहान ने कहा कि विदेशों से सेब भारत की मंडियों में आता है और इसके सामने हिमाचली सेब पिछड़ जाता है. इसकी वजह यह है कि आकार, रंग और अन्य बाहरी दिखावे के दृष्टिगत हिमाचल का सेब विदेशी सेब का मुकाबला नहीं कर पाता.

हिमाचली सेब देशभर के बाजार में स्थापित हो सके इसलिए बागवान विदेशों से आयात होने वाले सेब पर कस्टम ड्यूटी बढ़ाने की मांग कर रहे हैं. सेब बागवानों का कहना है कि विदेशों से आयात होने वाले सेब पर कस्टम ड्यटी कम होने से हिमाचल के सेब को बाजार नहीं मिल पाता. कस्टम ड्यूटी कम होने से विदेशी सेब सस्ता होता है. विदेशी सेब के सस्ता होने के कारण हिमाचली सेब को ग्राहक नहीं मिल पाता.

नया सेब सीजन शुरू होने वाला है. ऐसे में सेब बागवानों को विदेशी सेब की मार पड़ने की चिंता सता रही है. आयात शुल्क की लड़ाई लड़ रहे बागवानों का कहना है कि अभी विदेशी सेब पर 50 फीसदी आयात शुल्क है. विदेशों में सेब उत्पादन की लागत कम होने के कारण विदेशी 50 फीसदी आयात शुल्क पर भी खूब सेब भारत भेज रहे हैं. जब यह आयात शुल्क खत्म ही हो जाएगा तो बड़ी समस्या खड़ी हो जाएगी. वर्तमान में सार्क देशों से ही बगैर आयात शुल्क के सेब भारत आता है. ऐसे में अफगानिस्तान, नेपाल और श्रीलंका से होता हुआ ईरान का सेब भारत पहुंचकर हिमाचली सेब को नुकसान पहुंचा रहा है.

बिक्री के लिए मंडियों की कमी
सेब बागवानों के फसल बेचने के लिए मंडियों की सही व्यवस्था नहीं है. ना ही आढ़तियों की मनमर्जी रोकने के लिए कानून. सेब की पैदावार बढ़ने पर बागवानों को ना तो मंडियों में सेब के रख-रखाव के लिए जगह मिलती है और न ही सही दाम. ऐसे में बागवान मंडियों की उचित व्यवस्था की मांग लंबे समय से कर रहे हैं.

उद्योगों की कमी
हिमाचल में ऐसे उद्योगों की कमी है जो सेब और दूसरे फलों का फ्रूट जूस, जैम, जैली और अन्य उत्पाद बना सकें. ऐसे में बागवानों के पास ज्यादा विकल्प नहीं है. 2014 के लोकसभा चुनाव के ठीक पहले शिमला में रैली के दौरान पीएम मोदी ने बागवानों से वादा किया था कि वो ये सुनिश्चित करेंगे कि बाजार में बिकने वाले पेय पदार्थों में सेब के जूस की कुछ मात्रा का इस्तेमाल किया जाए, लेकिन अभी तक मोदी सरकार अपना ये वादा पूरा नहीं कर पाई है.

सीए स्टोर कमी
शिमला के युवा बागवान संजीव चौहान ने कहा कि हिमाचल में बागवानों के पास सेब के रख-रखाव के लिए या यूं कहें कि सेब को स्टोर करने के लिए सीए (कंट्रोल एटमॉस्फेयर) स्टोर की व्यवस्था नहीं है. सेब के रख-रखाव की व्यवस्था न होने से बागवान अपना सेब लंबे समय तक स्टॉक नहीं कर सकते. ऐसे में बागवानों को सेब जल्द से जल्द बेचना पड़ता है. बागवानों की मांग है कि उन्हे सीए स्टोर बनाने के लिए सरकार अनुदान दे.

प्रोमोशन की कमी
हिमाचली सेब को प्रोमोट करने के लिए न तो राज्य सरकार और न ही केंद्र सरकार अभी तक कोई कदम उठा पाई है. अमेरिका में उत्पादित किए जाने वाले वॉशिंगटन सेब को अमेरिकी सरकार अपने स्तर पर विश्व भर में प्रमोट करती है. अमेरिकी सरकार ने इसके लिए अलग से मंत्रालय भी बना रखा है. हिमाचल के सेब बागवानों की मांग है कि केंद्र और राज्य सरकार भी अमेरिकी सरकार की तर्ज पर हिमाचल के सेब को प्रमोट करे.

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