हिमाचल प्रदेश

himachal pradesh

ETV Bharat / state

गौ सेवा का ऐसी मिसाल! विदेश में इंजीनियरिंग के बाद बेसहारा पशुओं का सहारा बने अंशुल

विदेश में इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने के बाद अपने प्रदेश वापसी कर सड़कों पर बेसहारा घूम रहे पशुओं को आश्रय देने का काम किया है. सड़कों पर बेसहारा छोड़े गए पशुओं को सहारा देकर उनका सरक्षंण करने का जिम्मा उठा कर राजगढ़ के अंशुल अत्री ने एक अलग मिसाल कायम की है. अंशुल अपने इस काम से जहां बेसहारा पशुओं को आश्रय देने का काम कर रहे है. वहीं राजगढ़ के लोगों को भी वह अपने इस काम के माध्यम से रोजगार दे रहे है.

अंशुल अत्री
अंशुल अत्री

By

Published : Nov 11, 2020, 6:02 PM IST

शिमला: आज के समय में युवा विदेशों में बेहतर पढ़ाई कर अच्छी मल्टीनेशनल कंपनी में नौकरी करने को प्राथमिकता देते है. वहीं, प्रदेश के एक युवा ने विदेश में इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने के बाद अपने प्रदेश वापसी कर सड़कों पर बेसहारा घूम रहे पशुओं को आश्रय देने का काम किया है. सड़कों पर बेसहारा छोड़े गए पशुओं को सहारा देकर उनका सरक्षंण करने का जिम्मा उठा कर राजगढ़ के अंशुल अत्री ने एक अलग मिसाल कायम की है.

एयरोनॉटिकल इंजीनियर की पढ़ाई कर चुके अंशुल

स्पेन के बार्सिलोना से एयरोनॉटिकल इंजीनियर की पढ़ाई कर अपने घर राजगढ़ लौटे अंशुल अत्री ने सिरमौर जिले को बेसहारा पशु मुक्त जिला बनाने की ठानी है और वह काम भी कर रहे हैं. गौ संरक्षण’ अभियान के तहत वह लोगों की ओर से छोड़े गए पशुओं को सहारा दे रहे हैं. उन्होंने अपने पिता राजेंद्र अत्री के अरणायक गौसदन को हाई टेक कर राजगढ़ जिले को बेसहारा पशु मुक्त क्षेत्र बना दिया है और अब उनका लक्ष्य पूरे सिरमौर जिले के बेसहारा पशुओं को आश्रय देना हैं.

स्थानीय लोगों को दे रहे रोजगार

अंशुल अपने इस काम से जहां बेसहारा पशुओं को आश्रय देने का काम कर रहे है. वहीं राजगढ़ के लोगों को भी वह अपने इस काम के माध्यम से रोजगार दे रहे है. अरणायक गौसदन में राजगढ़ के स्थानीय लोगों को भी रोजगार मिला है. आज लगभग 20 व्यक्ति गौसदन में काम कर रहे हैं. पशुओं को चारा डालना, पीने का पानी देना, साफ-सफाई से लेकर उनके स्वास्थ्य की देखभाल करने का काम कर्मचारी करते हैं. अंशुल अत्री ने अपने पिता के छोटे से गौसदन को वेबसाइटके माध्यम से पूरे हिमाचल में स्थापित गौसदनों से जोड़ा है, जिससे लोग बेसहारा पशु से संबंधित सूचना दे सकें.

वीडियो रिपोर्ट.

वेबसाइट के माध्यम से संपर्क करें

कोई भी व्यक्ति अगर सहायता करना चाहता है तो वह इस वेबसाइट के माध्यम से संपर्क कर सकता है. अंशुल ने मौजूदा गौशालाओं की मदद करने का यह पहला डिजिटल कदम उठाया है. उन्होंने गौसेवा के लिए दिए जाने वाले धन और अन्य सेवाओं की प्रक्रिया को डिजिटल रूप देकर सरल बनाया है. अंशुक अत्रि ने कहा कि डिजिटल प्रक्रिया से आर्थिक रूप से आवारा पशुओं की समस्या को हल करने में मदद मिलेगी. भारत में ऑनलाइन भुगतान विधियों का उपयोग करने वाले लोगों की संख्या बढ़ रही है. अंशुल ने उनके लिए डिजिटल सुरक्षित दान मंच बनाया हैं.

ऑनलाइन बेच रहे गौ उत्पाद

गौसदन में मात्र बेसहारा पशुओं को आश्रय ही नहीं दिया जा रहा है बल्कि जैविक और प्राकृतिक रूप से खाद तैयार की जा रही है. गौ खाद, जैव-उर्वरक जैसे वर्मीकम्पोस्ट और गौ-मूत्र उत्पादों को तैयार कर वेबसाइट के जरिए आम लोगों को उपलब्ध करवाया जा रहा है. अंशुल ने बताया कि इससे सभी गौशालाओं को अपने उत्पाद बेचने के लिए एक केंद्रीकृत ऑनलाइन बाजार मिल सकेगा, जो उनके लिए उपयोगी होगा. साथ ही साथ ग्राहकों को आसानी से उच्च गुणवत्ता वाले जैविक उत्पाद एक ही जगह मिल सकेंगें. उन्होंने कहा कि सभी गौशाला मालिकों और सामान्य ग्राहकों को इन उत्पादों के उपयोग और उनके लाभों के बारे में शिक्षित किया जाना चाहिए.

अनोखा गौसदन चला रहे अंशुल
अंशुल अत्री ने अपने पिता की 250 बीघा और अन्य 1000 बीघा जमीन पर पशुओं के लिए अरण्य बनाया है, जहां पशु दिन भर खुले में स्वतंत्र विचरण कर सकते हैं. उनके गौसदन में 260 पशु हैं, जिनमें से कुछ दुधारू पशु भी हैं. यह पशु सारा दिन चरके शाम को बनाए गए गौसदन में लौट आते हैं.

युवाओं के लिए प्रेरणा है अंशुल
अंशुल पेशे से इंजीनियर हैं. उन्होंने स्पेन के बार्सिलोना से एरोनॉटिकल (वैमानिक )इंजीनियरिंग की पढ़ाई की है. उन्होंने एरोनॉटिकल इंजीनियरिंग में बीई पंजाब इंजीनियरिंग कॉलेज चंडीगढ़ से की. उसके बाद उन्होंने अपनी मास्टर्स बार्सिलोना से पूरी की. 30 वर्षीय अंशुल नौकरी करने की जगह अपने पिता के साथ गौसदन के काम में हाथ बंटा रहे हैं. कोरोना काल में जब लोग अपने घरों में बंद थे. उस समय भी अंशुल अत्री ‘गौ संरक्षण’ अभियान के तहत बेसहारा पशुओं को आश्रय देने का काम कर रहे थे. इसके अलावा अंशुल अत्री को लिखने का भी शौक है. उन्होंने अपने छात्र जीवन में ‘क्वार्टर लाइफ क्राइसिस’ नाम का नोबेल लिखा है. साथ ही वह ‘सरला पब्लिकेशंस’ भी चला रहे हैं.

ABOUT THE AUTHOR

...view details