शिमला:प्रदेश की दो बड़ी सीमेंट कंपनियों अंबुजा दाड़लाघाट और एसीसी बरमाणा में ताले लटके हुए हैं. 14 दिसंबर को अदानी ग्रुप की ओर से अचानक एक लिखित आदेश अपने कर्मचारियों को जारी किया जाता है, जिसमें उनसे अगले कल से काम पर न आने को कहा जाता है. अदानी ग्रुप की ओर से कहा गया है कि हिमाचल के दोनों प्लांट घाटे में हैं. ऐसे में अनिश्चितकालीन तक इनको बंद कर दिया जाता है. साथ ही अदानी ग्रुप ट्रक ऑपरेटरों से मालभाड़ा कम करने के लिए भी कह रहा है. सीमेंट प्लांट बंद करना उसका ट्रक ऑपरेटरों पर दवाब बनाने के एक रणनीति के तहत देखा जा रहा है. (Ambuja cement plant closed controversy in Himachal)
फैक्ट्रियों को बंद हुए 21 दिन बीत गए हैं. फैक्ट्रियों के बार हजारों ट्रक खड़े हैं. ट्रक आपरटेरों के साथ-साथ इन प्लांट से अप्रत्यक्ष रूप से रोजगार हासिल करने वाले हजारों लोगों का रोजगार एक ही झटके में चला गया. दोनों कंपनियों के प्रबंधनों और ट्रक ऑपरेटरों के बीच कई वार्ता हो चुकी है, मगर कोई भी हल नहीं निकला है. फैक्ट्रियां बंद होने से हजारों ट्रक खड़े हो गए हैं. प्लांट के आसपास छोटा मोटा कारोबार कर अपने परिवार का भरण पोषण करने वाले हजारों लोगों की रोजी रोटी का जरिया चला गया है. लोगों ने शायद ही कभी सोचा होगा कि ये दिन भी आएगा जब उनकी कमाई का साधन एकाएक खत्म या बंद हो जाएगा. (Closure of cement factories in Himachal)
दोनों फैक्ट्रियों से सीधे जुड़े करीब 8 हजार परिवार -दोनों बड़े प्लाटों में करीब 8 हजार ट्रक सीधे रूप से काम से जुड़े हुए हैं. ये ट्रक क्लिंकर और सीमेंट ढुलाई करते हैं. काम बंद होने से इन 8 हजार परिवारों की कमाई खत्म हो गई है. इसके साथ ही आसपास में दुकानें, ढाबे, सहित छोटा मोटा काम चलने वालों के लिए भी मंदी आ गई है. दरअसल इन लोगों के ग्राहक सीमेंट के काम से जुड़े लोग हैं.
इसके अलावा करीब 2000 लोग सीधे इन फैक्ट्रियों से रोजगार हासिल कर रहे हैं. इनका भी रोजगार चला गया है. हालांकि सीमेंट प्लांट्स के 143 कर्मचारियों को अदानी सीमेंट के नजदीकी संयंत्रों में स्थानांतरित करने के आदेश दिए हैं. कर्मचारियों को नालागढ़, रोपड़ और बठिंडा सहित अन्य प्लांटस में शिफ्ट किया जा रहा है. मगर अधिकतर फैक्ट्रियों के बंद होने से अब घर पर बेरोजगार बैठे हैं.
दाड़लाघाट अंबुजा सीमेंट प्लांट बंद होने से रोजी रोटी का जरिया गया-दाड़लाघाट स्थित अंबुजा कंपनी हिमाचल में सबसे बड़ी क्लिंकर निकालने वाली कंपनी है. इसकी क्लिंकर की सालाना क्षमता 5.2 मीट्रिक टन की है. सीमेंट निर्माण के हिसाब से देखें तो यह हिमाचल के चार बड़े प्लाटों में से एक है. इस प्लांट की सीमेंट तैयार करने की क्षमता 3.1 मीट्रिक टन प्रति सालाना है, जिसका माइनिंग एरिया करीब 488.08 हेक्टेयर है. (Truck operators facing problems in himachal)
अंबुजा कंपनी में ट्रक ऑपरेटरों की आठ सोसायटियां काम कर रही हैं. जिनके तहत करीब 3500 ट्रक रजिस्टर्ड हैं. इसके अलावा करीब 700 कर्मचारी सीधे तौर पर कंपनी में कार्यरत हैं. प्लांट के लिए भूमि खो देने वाले लोगों यानी लैंड लूजर्स को ज्यादा रोजगार प्रत्यक्ष तौर पर नहीं मिला है. करीब 200 लैंड लूजर्स को ही इसमें सीधा रोजगार मिला है जबकि बाकी लोग अप्रत्यक्ष रूप से इस फैक्ट्रियों पर निर्भर हैं.
दाड़लाघाट से किरतपुर रूट पर सोयाटियों करीब 1000 ट्रक रोजाना चलते हैं, जिससे इस पूरे रूट पर ढाबे वालों, चाय वालों, वर्कशॉप और अन्य काम करने वालों को रोजगार मिला हुआ था जोकि अब बंद पड़ा है दाड़लाघाट से निकलने वाला अधितकर क्लिंकर अंबुजा के रोपड़, भंटिंडा, नालागढ़ और रूड़की के दूसरे प्लांट को ट्रकों से ले जाया जाता है, जहां इससे सीमेंट तैयार किया जाता है.
दाड़लाघाट से निकलने वाला 80 से 85 फीसदी क्लिंकर इन प्लांट को भेजा जा रहा है जहां इससे सीमेंट वहां तैयार होता है, जबकि 15 से 20 फीसदी क्लिंकर से दाड़लाघाट में सीमेंट बनाया जाता है. इस तरह बाहर के सीमेंट प्लाटों को क्लिंकर ले जाने और वापसी में रोपड़ से सीमेंट तैयार करने में इस्तेमाल होने वाला कच्चा माल ट्रकों में लाया जाता है. ट्रक ऑपरेटरों के मुताबिक दाड़लाघाट से करीब 10 लाख मीट्रिक टन हर साल और 80 से 85 हजार मीट्रिक टन माल हर माह उनके ट्रक ढोते हैं, मगर अब यह काम ठप हो गया हैं.
ट्रकों की किश्तें, ड्राइवर-क्लीनर की सैलरी निकालना हुआ मुश्किल-दाड़लाघाट प्लांट से संबंधित ट्रक चलाने वाली सोसायटी एडीकेएम यानि अंबुजा-दाड़ला-कश्लोग-मांगू ट्रक को-आप्रेटिव सोसायटी के पूर्व अध्यक्ष बालकराम शर्मा का कहते हैं कि ट्रक ऑपरेटरों के लिए प्लांट बंद होना किसी बड़ी मुसीबत से कम नहीं है. तीन सप्ताह से उनके ट्रक खड़े हुए हैं. उनके लिए ट्रकों की किश्तें निकालना मुश्किल हो गया है. उनकी मानें तो अंबुजा कंपनी में लगे करीब 90 फीसदी ट्रकों की बैंकों और फाइनेंस कंपनियों को किश्तें जाती हैं जो कि अब नहीं जा रही. इसके अलावा घर परिवार भी ट्रक ऑपरेटरों का इससे चलता है, जाहिर है अब घर चलाना भी लोगों का मुश्किल हो गया है.
पहाड़ी इलाका होने से ट्रकों की लाइफ भी हो जाती है कम-बालक राम शर्मा कहते हैं कि आमतौर पर ट्रकों की लाइफ 15 साल मानी जाती है, लेकिन पहाड़ी भौगोलिक स्थितियों के चलते यहां पर 10 साल ही ट्रकों की लाइफ रह जाती है. इसके चलते ट्रक ऑपरेटरों का प्रयास रहता है कि 7-8 साल में ही अपना पुराना ट्रक बेचकर नया खरीद ले, जब ट्रक खरीद लिया तो फिर इसकी किश्तें 7-8 साल चुकाते रहते हैं. वह कहते हैं कि अगर ट्रक को इसे ज्यादा चलाया तो तो इसको कबाड़ में बेचने की नौबत आ जाती है.
ऐसे में उन लोगों की पहले खरीदे गए ट्रकों को बेचकर नए खरीदने की मजबूरी होती है, जो कि लोन पर ही अधिकतर खरीदे जाते हैं. लोन की किश्तें लाखों की पड़ जाती हैं. इस तरह लाखों रूपए ट्रक अब खड़े हैं. दाड़लाघाट के ट्रकों का मालभाड़ा 10.58 पैसे प्रति टन प्रति किलोमीटर पहाड़ी इलाकों के लिए है जबकि मैदानी इलाकों के लिए ऑपरेटरों इसका 50 फीसदी मालभाड़ा लेते हैं. ऑपरेटरों का कहना है कि बड़ी गाडियों के माल भाड़े में वह 5 फीसदी तक दे रहे हैं, इसके बावजूद कंपनी ने अड़ियल रवैया अपनाया हुआ है.
एसीसी सीमेंट प्लांट बरमाणा के बंद होने से भी हजारों बेरोजगार-अल्ट्राटेक के बाद एसीसी हिमाचल का दूसरा सबसे बड़ा सीमेंट निर्माता है. इसका सीमेंट प्लांट बिलासपुर के बरमाणा में लगा हैं, इसके सीमेंट उत्पादन की कुल क्षमता 4.4 मीट्रिक टन प्रति वर्ष है. इसका माइनिंग एरिया करीब 231.25 हेक्टेयर में फैला हुआ हैं. इसके अलावा यह 3.3 मीट्रिक टन क्लिंकर भी निकालता तैयार करता है. बरमाणा सीमेंट कंपनी से करीब 4500 ट्रक जुड़े हुए हैं.