शिमला:वीरभद्र सिंह का पार्थिव शरीर पंचतत्व में विलीन हो गया. छह दशक के राजनीतिक जीवन में वीरभद्र सिंह का दौर ऐसा रहा है कि वे खुद ही सवाल थे और खुद ही जवाब. अब उनके जाने के बाद कांग्रेस पार्टी के समक्ष छोटे-बड़े कई सवाल पैदा हो जाएंगे. उनमें सबसे बड़ा सवाल यही है कि वीरभद्र सिंह के बाद कौन....जाहिर है, वीरभद्र सिंह के कद के आसपास पहुंचना मौजूदा समय में किसी के बस की बात नहीं है.
फिलहाल तो कांग्रेस को ये सोचना है कि वीरभद्र सिंह के बाद पार्टी का सर्वमान्य चेहरा कौन होगा? क्या एक चेहरा होगा या फिर कोई टीम? बेशक इस समय कांग्रेस पार्टी में शोक का समय है, लेकिन राजनीति की दुनिया निरंतर गतिशील है. ऐसे में कांग्रेस को भविष्य की चिंता भी करनी है. आने वाले समय में कांग्रेस के सामने चार उपचुनाव की चुनौती है. उस चुनौती से पहले कांग्रेस को ये तय करना है कि पार्टी किसकी अगुवाई में आगे बढ़ेगी?
स्थितियां ये हैं कि कुलदीप सिंह राठौर (Kuldeep Singh Rathore) कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष हैं. मुकेश अग्निहोत्री नेता प्रतिपक्ष हैं. पूर्व में अध्यक्ष रहे सुखविंद्र सिंह सुक्खू विधायक हैं. इसी तरह जीएस बाली, कौल सिंह ठाकुर, सुधीर शर्मा आदि वो नेता हैं, जो चुनाव में हार चुके हैं.
इन परिस्थितियों में ये देखना दिलचस्प होगा कि खुलेआम या फिर पर्दे के पीछे, सबसे ताकतवर चेहरा कौन होगा? क्या कांग्रेस हाईकमान की चलेगी या क्षेत्रीय आकांक्षाओं को महत्व दिया जाएगा? ये बात इसलिए उठती है कि वीरभद्र सिंह खुद में इतना बड़ा नाम था और प्रदेश की जनता में उनका प्रभाव था, लिहाजा वे हाईकमान की सारी बातों के सामने सिर नहीं झुकाते थे.
वीरभद्र सिंह (Virbhadra Singh) जानते थे कि चुनाव कैसे जीते जाते हैं. यही नहीं, हाईकमान भी उनकी इस ताकत को पहचानता था. यही कारण है कि अकसर चुनाव लड़ने के समय उन्हें फ्री हैंड दिया जाता था. केंद्र की राजनीति से प्रदेश की राजनीति में 2012 में वापस आए वीरभद्र सिंह ने चुनाव लड़ने के लिए फ्री हैंड मांगा और अकेले अपने दम पर कांग्रेस को सत्ता में लाए.