शिमला:कृषि कानून के खिलाफ दिल्ली में चल रहे आंदोलन में अडानी-अंबानी शब्द हजारों बार सुना जा चुका है. किसान आरोप लगा रहे हैं कि केंद्र सरकार अडानी जैसे धन्नासेठों का हित देख रही है, लेकिन भारत के एप्पल बाउल हिमाचल में अडानी एग्री फ्रेश 15 साल से सेब की खरीद कर रहा है.
हिमाचल प्रदेश के शिमला जिला में अडानी ग्रुप के तीन सीए (कंट्रोल्ड एटमॉसफियर) स्टोर हैं. देश के एप्पल स्टेट हिमाचल में सालाना 2 से 3 करोड़ पेटी सेब का उत्पादन होता है. सेब का सालाना कारोबार 3500 करोड़ रुपए का है. कुल उत्पादन में से अडानी समूह सालाना 15 से 18 लाख पेटी सेब खरीदता है.
रॉयल सेब की शैल्फ लाइफ अधिक है
अडानी एग्री फ्रेश सेब की परंपरागत वैरायटी रॉयल को ही खरीदता है. ये अलग बात है कि हिमाचल में रॉयल के अलावा पचास से अधिक विदेशी किस्मों के सेब का उत्पादन किया जा रहा है. अडानी केवल रॉयल सेब खरीदता है. इसका कारण ये है कि रॉयल सेब की शैल्फ लाइफ अधिक है. यानी तोड़ने के बाद ये काफी समय तक खराब नहीं होता.
अडानी ग्रुप किलो के हिसाब से सेब खरीदता है
हिमाचल में अडानी एग्री फ्रेश के ऊपरी शिमला में तीन सीए स्टोर हैं. ये सीए स्टोर मेंहदली, बिथल व सैंज में हैं. इन सभी की क्षमता 22 मीट्रिक टन है. ऐसे में अडानी कुल 22 मीट्रिक टन सेब ही खरीदता है. अडानी ग्रुप किलो के हिसाब से सेब खरीदता है.
ऐसे में बागवानों के लिए ये फायदे का सौदा साबित हो रहा है. वर्ष 2006 से अडानी ग्रुप लगातार सेब खरीद रहा है. इस साल अडानी ने 88 रुपए प्रति किलो के दाम से सेब खरीदा है. बागवानों के लिए लाभ की बात ये है कि अडानी एग्री फ्रेश बागीचे में ही सेब खरीद लेता है. ट्रांस्पोर्टेशन का खर्चा भी खुद उठाता है और सेब के लिए क्रेट भी अपने स्तर पर उपलब्ध करवाता है.
बागवान बगीचे से ही अपने सेब अडानी को बेच देते हैं
इस तरह बागवान सारे खर्च से बच जाता है. यही नहीं, अडानी समूह दस दिन के भीतर सेब की कीमत भी बागवान के खाते में ट्रांसफर कर देता है. इससे बागवान खुश हैं. कई बागवान अडानी के साथ एग्रीमेंट कर लेते हैं. वे बगीचे से ही अपने सेब अडानी को बेच देते हैं.
यही नहीं, अडानी समूह अपने स्तर पर बागवानों को मिट्टी व पत्तियों की जांच भी करता है. इसके लिए प्रयोगशाला भी स्थापित है. बागवानों से सेब खरीद कर अडानी सीए स्टोर में रख लेता है. बाद में दिसंबर से जून महीने तक इस सेब को देश के विभिन्न हिस्सों में बेचा जाता है. महानगरों में फाइव स्टार होटलों में रॉयल सेब की अच्छी डिमांड होती है.
सेब के साइज व क्वालिटी के हिसाब से दाम फिक्स किया जाता है
हिमाचली एप्पल एक ब्रांड भी है और रॉयल सेब अपनी मिठास के लिए प्रसिद्ध है. अडानी एग्री फ्रेश के टर्मिनल मैनेजर पंकज मिश्रा के अनुसार कंपनी 20 अगस्त के बाद सेब की खरीद शुरू करती है. सेब के साइज व क्वालिटी के हिसाब से दाम फिक्स किया जाता है. सेब स्टोर में आठ महीने तक सेब सुरक्षित रहता है.
वर्ष 2020 में अडानी समूह ने 17 मीट्रिक टन सेब की खरीद की. मिश्रा के अनुसार दस दिन के भीतर बागवानों को पेमेंट कर दी जाती है. उन्होंने बताया कि अडानी समूह अपने स्तर पर इलाके में मेडिकल कैंप भी लगाता है और बागवानों के लिए सेब उत्पादन के वैज्ञानिक तरीकों पर आयोजन भी करता है.
आढ़तियों के पास लटक जाती है पेमेंट
हिमाचल में शिमला में सबसे अधिक सेब होता है. प्रदेश का अस्सी फीसदी सेब शिमला जिला में उत्पादित किया जाता है. इसके अलावा मंडी, कुल्लू, चंबा, किन्नौर, सिरमौर के कुछ इलाकों व लाहौल में भी पैदा किया जाता है. अडानी के स्टोर केवल शिमला में तीन जगह हैं.
प्रदेश में चार लाख बागवान परिवार हैं. हिमाचल में एपीएमसी की मंडियों में सेब बेचा जाता है. यहां देश के अलग-अलग हिस्सों से आढ़ती आते हैं. मंडियों में सेब बेचने से बागवानों को कई बार अच्छा लाभ हो जाता है. कई बार वे आढ़तियों की ठगी का शिकार भी हो जाते हैं. आढ़तियों के पास पेमेंट लटक जाती है तो पुलिस के चक्कर लगाने पड़ते हैं.
मिनिमम स्पोर्ट प्राइज 8 रुपए प्रति किलो तक होता है
राज्य सरकार भी सेब के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य घोषित करती है. ये मिनिमम स्पोर्ट प्राइज 8 रुपए प्रति किलो तक होता है. खराब व दागी सेब सरकार खरीदती है. इसके एचपीएमसी जूस, जैम व सिरका बनाती है. हिमाचल का सेब देश की राजधानी दिल्ली व अन्य महानगरों सहित विदेश में भी पसंद किया जाता है.