सुंदरनगर: मंडी जिला की सुकेत रियासत में बसे सूरजकुंड मंदिर का इतिहास अपने आप में अनूठा है. इस मंदिर का इतिहास सुकेत रियासत से जुड़ा है. कहा जाता है कि जीत सेन की मृत्यु के बाद गुरुर सेन को नरसिंह मंदिर में राजगद्दी पर बिठाया. उसके उपरांत गुरुर सेन कुल्लू से कांगड़ा होकर जब सुकेत लौट रहे थे तो उन्होंने हीमली के राणा की पुत्री से विवाह किया.
अष्टधातू मूर्ति की स्थापना
इसी समय वो करतारपुर से अपनी राजधानी को वनेड ले आए. अपने राजमहल के समीप भेछनी धार की तलहटी में बनोण नाले के समीप महाराजा गुरुरसेन की रानी पन्छमु देई ने सूरजकुंड मंदिर का निर्माण किया. कहा जाता है कि पंछमु देई सेन वंश की सबसे धार्मिक और विद्वान स्त्री थी. उन्होंने अष्टधातु की सूर्य की मूर्ति की स्थापना प्राकृतिक जल स्त्रोत के ऊपर चतरोखड़ी नामक स्थान पर की और सामने एक जलकुंड का निर्माण किया. मूर्ति के नीचे से जल धारा प्रवाहित होकर उस जलकुंड में गिरती थी. कहा जाता है कि मंदिर में मौजूद चमत्कारी बर्तन में सूर्य नारायण भगवान की यंत्र पूजा के साथ अष्टधातु की मूर्ति को स्नान करवाया जाता था.