करसोग: जिला मंडी के करसोग उपमंडल में सुभाष पालेकर प्राकृतिक खेती वागवानों के लिए वरदान साबित हो रही है.सुभाष पालेकर प्राकृतिक खेती का विस्तार अब बागवानी के क्षेत्र तक फैल गया है. कृषि क्षेत्र में सुभाष पालेकर प्राकृतिक खेती के अच्छे परिणामों को देखते हुए बागवान इस तकनीक को अपने सेब के बगीचों में भी अपनाने लगे हैं.
कृषि विभाग के विशेषज्ञ बागवानों को गौ मूत्र से सेब के पौधों के लिए पेस्ट तैयार करने की विधि और इससे होने वाले फायदों के बारे में जानकारी दे रहे हैं. करसोग के माहूंनाग क्षेत्र में बागवानों ने रासायनिक विधि से तैयार होने वाले चूना और नीला थोथा के पेस्ट को छोड़कर घर पर उपलब्ध अपने संसाधनों से पेस्ट तैयार कर पौधों के तनों में लगाया है.
बागवानों के मुताबिक रायायनिक पेस्ट की तुलना में इसके अच्छे रिजल्ट भी सामने आने लगे हैं. माहूंनाग में अधिकतर एरिया में गौ मूत्र से तैयार पेस्ट सेब के पौधों के तनों में लगाया जा रहा है.
गौ मूत्र के पेस्ट से नहीं लगता कोई रोग
विशेषज्ञों के मुताबिक सुभाष पालेकर प्राकृतिक खेती की तकनीक से तैयार पेस्ट सेब के पौधों के लिए बहुत उपयोगी साबित हो रहा है. यह पेस्ट गोबर, गौमूत्र, चिकनी मिट्टी, हल्दी हींग, लहसुन, कड़वी के पत्ते और अलसी के तेल से तैयार किया जाता है.
विशेषज्ञों के अनुसार गौ मूत्र में तांबा होता है. ऐसे में गौ मूत्र से तैयार पेस्ट लगाने से पौधों के तनों में किसी प्रकार का रोग नहीं लगता. घर पर ही तैयार किए जाने वाले इस पेस्ट में अलसी का तेल भी डाला जाता है. जो संजो स्केल नामक बीमारी नहीं लगने देता. इसके अलावा पेस्ट में हींग, लहुसन और हल्दी आदि भी पड़ती है, जो पौधे को अन्य रोगों सहित गलन सड़न रोग से भी बचाती है.
इस पेस्ट का उपयोग तने के साथ खुली मोटी जड़ों में भी किया जा सकता है. ऐसे में अधिक बारिश होने से पौधों की जड़ों को सड़न रोग से भी बचाया जा सकता है. यही नहीं सेब के पौधों में जीवामृत की स्प्रे की जा रही है, जो पौधों को स्केल सहित कई बीमारियों से बचाती है. बागवान खट्टी लस्सी से भी सेब में स्प्रे कर रहे हैं. इसमें फास्फोरस और पोटाश की अधिक मात्रा होती है. इसकी गन्ध से वायरस सहित वैक्टीरिया सेब के पौधों पर अटैक नहीं करते हैं.
कृषि विभाग के एसएमएस एवं सुभाष पालेकर प्राकृतिक खेती के विशेषज्ञ रामकृष्ण चौहान का कहना है कि प्रदेश सरकार की सुभाष पालेकर प्राकृतिक खेती किसानों के लिए अति महत्वपूर्ण योजना है. इस तकनीक को कृषि के अलावा सेब के बगीचों, फलों, फूल की खेती और पॉली हाउस के उपयोग में लाया जा सकता है. उन्होंने कहा कि माहूंनाग में बागवानों को इस तकनीक की जानकारी दी गई है. अब बागवान इस तकनीक का पूरा लाभ उठा रहे हैं.
ये भी पढ़ें:14 और 15 तारीख को मैच टिकट रिफंड के लिए HPCA लगाएगा काउंटर