मंडी: हिमाचल प्रदेश सहित हिमालय के अन्य क्षेत्रों में जंगली तौर पर पाया जाने वाला फल 'काफल' कई औषधीय गुणों से भरपूर होने के कारण शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने का काम करता है. हर साल अप्रैल से जून महीने के बीच काफल पक कर तैयार हो जाता है. काफल आर्थिक तौर पर भी स्थानीय लोगों के लिए लाभकारी सिद्ध होता है.
काफल जंगल में पाया पाया जाने वाला एक फल ही नहीं है, बल्कि हमारे शरीर के लिए औषधी का काम भी करता है. काफल में विटामिन, आयरन और एंटी ऑक्सीडेंट्स प्रचूर मात्रा में पाये जाते हैं. इसके साथ ही यह कई तरह के प्राकृतिक तत्वों जैसे माइरिकेटिन, मैरिकिट्रिन और ग्लाइकोसाइड्स से भी परिपूर्ण है. इसकी पत्तियों में लावेन-4, हाइड्रोक्सी-3 पाया जाता है. काफल के पेड़ की छाल, फल और पत्तियां भी औषधीय गुणों से भरपूर मानी-जाती है.
काफल की छाल में एंटी इंफ्लैमेटरी, एंटी-हेल्मिंथिक, एंटी-माइक्रोबियल, एंटी-ऑक्सीडेंट और एंटी-माइक्रोबियल क्वालिटी पाई जाती है. इतने गुणों से परिपूर्ण काफल न केवल रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है, बल्कि कैंसर जैसी गंभीर बीमारी की रोकथाम का भी काम करता है.
काफल का अत्यधिक रस-युक्त फल पाचक होता है. काफल के फल के ऊपर लगा भूरे व काले धब्बों से युक्त मोर्टिल मोम अल्सर की बीमारी में प्रभावी माना गया है. काफल का फल खाने से पेट के कई प्रकार के विकार दूर होते हैं. साथ ही इसका सेवन मानसिक बीमारियों समेत कई प्रकार के रोगों के लिए भी फायदेमंद माना गया है.
इसके पेड़ की छाल का सार, अदरक और दालचीनी का मिश्रण अस्थमा, डायरिया, बुखार, टाइफाइड, पेचिश और फेफड़े से ग्रस्त बीमारियों के लिए अत्यधिक उपयोगी माना गया है. साथ ही काफल के पेड़ की छाल का पाउडर जुकाम, आंख की बीमारी और सरदर्द में सूंधनी के रूप में इस्तेमाल में लाया जाता है. काफलड़ी चूर्ण को अदरक के जूस और शहद के साथ मिलाकर उपयोग करने से गले की बीमारी, खांसी और अस्थमा जैसे रोगों से मुक्ति दिलाने में मददगार होता है. इसके अलावा काफल की छाल दांत दर्द और छाल का तेल कान दर्द के लिए भी अत्यधिक उपयोगी माना गया है. यही नहीं काफल के फूल का तेल भी कान दर्द, डायरिया और लकवे की बीमारी में उपयोग के साथ-साथ हृदय रोग, मधुमेय रोग उच्च एंव निम्न रक्त चाप को नियंत्रित करने में भी सहायक होता है.