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सराजी दयाली: जलती मशालों के साथ नाचते खेलते और युद्ध लड़ते हुए मनाई गई सराज घाटी की दिवाली - himachal pradesh hindi news

सांस्कृतिक विरासत की प्रतीक सराजी दयाली सोमवार देर रात को सराज घाटी के विभिन्न भागों के परंपरागत उल्लास और उत्साह से मनाई गई. इस दौरान गांव में दिन के समय स्थानीय देवता की करड़ी घुमाई जाती है जिस पर लोग पुष्प वर्षा के साथ साथ अखरोट भी फेंकते हैं.

Saraji Diwali celebrated in Mandi
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Published : Dec 15, 2020, 7:19 PM IST

सराज/मंडी:सांस्कृतिक विरासत की प्रतीक सराजी दयाली सोमवार देर रात को सराज घाटी के विभिन्न भागों के परंपरागत उल्लास और उत्साह से मनाई गई. इस दौरान घाटी के थाटा व घाट में स्थानीय लोगों ने लकड़ी की विशालकाय मशालों के साथ न केवल नृत्य किया बल्कि एक दूसरे गांव के लोगों ने जमकर मशालों के साथ युद्ध भी किया.

घाट पंचायत के कांढी गांव निवासी एवं अध्यापक दूनी सिंह वर्मा ने बताया कि प्रति वर्ष पौष मास की संक्राति को सराजी दयाली का आयोजन किया जाता है. स्थानीय लोग कई दिनों पूर्व ही इस समारोह की तैयारियों में जुट जाते हैं. इस दौरान गांव में दिन के समय स्थानीय देवता की करड़ी घुमाई जाती है जिस पर लोग पुष्प वर्षा के साथ साथ अखरोट भी फेंकते हैं.

पूजा अर्चना के साथ दयाली समारोह की शुरुआत होती

वहीं, घाटी के थाटा में देव श्याटी नाग की पूजा अर्चना के साथ दयाली समारोह की शुरुआत होती है. इसके उपरांत साथ लगते गावों के लोग दो गुटों में विभक्त होकर मशालों के साथ युद्ध लड़ते हैं. इस दौरान एक विशेष समय में दयाली खेलने वाले एक दूसरे समूह ले ऊपर अश्लील छींटाकशी भी करते हैं, लेकिन वर्तमान में इस रस्म को अब सिर्फ प्रतीक रूप के ही अदा किया जाता है.

इस उत्सव को रामायण काल से जोड़ा जाता है

पोश मास की यह दयाली उन्हीं क्षेत्रों में मनाई जाती है जहां देव विष्णु नारायण का रथ रूप विराजमान होता है. घाटी के कांढी, छलवाटन, चुलाथाच, रांगचा, सत्यावाली, थाटा,धारा, व शैटाधार में सराजी दयाली के ये उत्सव मनाए जाते हैं. किवदंतियों के अनुसार इस उत्सव को रामायण काल से जोड़ा जाता है, लेकिन वर्तमान में इस बारे कोई पांडुलिपि उपलब्ध नहीं है.

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