करसोग: हिमाचल प्रदेश में महिलाएं आत्मनिर्भरता और आर्थिक सुदृढ़ीकरण की ओर बढ़ रही हैं. स्वयं सहायता समूहों से जुड़ कर महिलाएं न सिर्फ नए व्यवसायों की जानकारी प्राप्त कर रही हैं, बल्कि पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल रही हैं. इसी कड़ी में हिमाचल प्रदेश की महिलाएं मशरूम की खेती को अपना कर अपनी तकदीर बदल रही हैं. जापान अंतरराष्ट्रीय सहयोग एजेंसी यानी जायका वानिकी परियोजना के तहत इन महिलाओं ने मशरूम की खेती को अपना कर आत्मनिर्भरता की ओर कारगर कदम बढ़ाया है.
एक साल में 12 लाख की कमाई: जायका वानिकी परियोजना द्वारा प्रदेश में मशरूम की खेती करने के लिए स्वयं सहायता समूहों की मदद की जा रही है. जायका वानिकी परियोजना के निदेशक नागेश कुमार गुलेरिया ने बताया कि हिमाचल प्रदेश में 65 स्वयं सहायता समूहों ने मशरूम की खेती से एक साल में लगभग 12 लाख की कमाई की है. जो कि अपने आप में एक रिकॉर्ड है.
18 वन मंडलों में मशरूम की खेती: हिमाचल प्रदेश वन पारिस्थितिकी तंत्र प्रबंधन एवं आजीविका सुधार परियोजना के तहत 18 वन मंडलों के 32 फॉरेस्ट रेंज में मशरूम की खेती की जा रही है. जायका वानिकी परियोजना के जरिए हिमाचल के 65 स्वयं सहायता समूहों की महिलाओं के हर मौसम में की जाने वाली मशरूम की खेती की तकनीक बताई जा रही है. इसमें सबसे ज्यादा बटन मशरूम, शिटाके मशरूम और ढींगरी मशरूम की खेती की जा रही है. इन समूहों में महिलाओं के साथ पुरुष भी बढ़चढ़ कर भाग ले रहे हैं.
जायका वानिकी परियोजना से जुड़ी स्वयं सहायता समूह की महिलाएं 25 दिनों में बटन मशरूम तैयार: शिमला जिले के कांडा में जायका वानिकी परियोजना के कर्मचारियों और विशेषज्ञों ने स्वयं सहायता समूह को उनके गांव में बटन मशरूम की खेती के लिए प्रोत्साहित किया. स्वयं सहायता ग्रुप ने किराए के कमरे में 10 किलोग्राम के 245 बीज वाले कम्पोस्ट बैग के साथ बटन मशरूम का उत्पादन शुरू किया. जायका प्रोजेक्ट की ओर से बटन मशरूम के उत्पादन में सेल्फ हेल्प ग्रुप की महिलाओं के टेक्निकल हेल्प मुहैया करवाई गई. जिससे मात्र 25 दिनों में ही बटन मशरूम का उत्पादन शुरू हो गया. इसमें एक सप्ताह में ग्रुप ने 200 किलोग्राम मशरूम तैयार किया, जो की अब 150 से 180 रुपये प्रति किलो बिक रहा है. बटन मशरूम के साथ-साथ ढींगरी और शिटाके मशरूम की भी काफी ज्यादा डिमांड है. मंडी जिले में सुंदरनगर के वन मंडल सुकेत में 19 स्वयं सहायता समूह हैं, जो मशरूम की खेती कर रहे हैं. इन सेल्फ हेल्प ग्रुप ने एक साल में करीब 8 लाख रुपये की कमाई की है.
59 ग्रुपों ने पहली बार की खेती: जायका वानिकी परियोजना के निदेशक नागेश कुमार गुलेरिया ने बताया कि हिमाचल प्रदेश में 65 में से 59 ऐसे ग्रुप है, जो पहली बार मशरूम की खेती कर रहे हैं. इनमें मुख्य रूप से महिलाओं के 45 ग्रुप हैं और पुरुषों के 2 ग्रुप हैं. वहीं, 12 ग्रुप महिला एवं पुरुष मिश्रित हैं. जायका वानिकी परियोजना के तहत प्रदेश में लोगों को आजीविका कमाने का बेहतरीन मौका मिल रहा है. स्वरोजगार से जोड़ने के लिए लोगों को मशरूम की खेती की ट्रेनिंग दी जा रही है. मशरूम की खेती को बढ़ावा देने के लिए हर मौसम में अलग-अलग किस्म के मशरूम तैयार करने के लिए क्लस्टर तैयार किया जा रहा है.
1 दिन में 20 किलो मशरूम तैयार: जिला शिमला के जुब्बल रेंज के तहत शक्ति स्वयं सहायता समूह द्वारा एक दिन में 20 किलो बटन मशरूम तैयार किया गया. जिसकी बाजार में कीमत 170 रुपये प्रति किलो हैं. शक्ति स्वयं सहायता समूह की महिलाओं एक दिन में 20 किलोग्राम मशरूम तैयार किया. अतिरिक्त प्रधान मुख्य अरण्यपाल व जायका वानिकी परियोजना के मुख्य निदेशक नागेश कुमार गुलेरिया ने कहा कि जायका प्रोजेक्ट के जरिए हिमाचल प्रदेश की महिलाएं आत्मनिर्भर बन रही हैं और आजीविका कमाकर अपनी आर्थिक स्थिति भी सुधार रही हैं. स्वयं सहायता समूहों से जुड़ कर महिलाएं बटन मशरूम, शिटाके मशरूम और ढींगरी मशरूम की खेती कर रही हैं. जायका प्रोजेक्ट के जरिए महिलाओं को खेती करने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है और हर मौसम में मशरूम की खेती करने की खास ट्रेनिंग दी जा रही है.
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