जायका परियोजना के तहत महिलाएं बन रही स्वरोजगार. मंडी: मंडी जिला सहित प्रदेश के अन्य जिलों में शादी समारोह या फिर बड़े आयोजनों में टौर के पत्तों से बनी पत्तलों पर खाना परोसा जाता है. वन मंडल मंडी के तहत बहुत सी महिलाएं पीढ़ी दर पीढ़ी टौर के पत्तों की पत्तलें बनाने का पारंपरिक कार्य करती आ रही हैं, लेकिन जायका परियोजना ने अब पारंपरिक रूप से बनाई जाने वाली इन पत्तलों को आधुनिकता का रंग दे दिया है. जिससे अब ये ग्रामीण महिलाएं मशीनों के जरिए पत्तलें बना रही हैं.
मशीनों से पत्तलें बनाकर दोगुना कमा रही ग्रामीण महिलाएं: जायका परियोजना के तहत वन मंडल मंडी के कुछ स्थानों पर स्वयं सहायता समूहों को पत्तलें बनाने की मशीन उपलब्ध करवाई गई है. अब महिलाएं इस मशीन के माध्यम से पत्तलें बनाती हैं. जो पत्तल पहले दो रुपये की बिकती थी, वहीं पत्तल अब चार रुपये की बिक रही है. खास बात यह है कि मशीन में बनी पत्तल की उम्र भी अधिक है और लंबे समय तक खराब भी नहीं होती. महिलाओं ने बताया कि पहले वह हाथ से ही इन पत्तलों को बनाती थी, लेकिन मशीन से पत्तलें बनाने से उनकी कमाई भी ज्यादा हो रही है और मशीन से आधुनिक रूप से बनी इन पत्तलों की मांगी भी काफी ज्यादा हो रही है.
मंडी में मशीनों से बनाई जा रही पारंपरिक टौर के पत्तों की पत्तलें. टौर के पत्तों से मशीनों में तैयार हो रही पत्तलें: जायका परियोजना वन मंडल मंडी के एसएमएस जितेन शर्मा ने बताया कि परियोजना का मुख्य उद्देश्य वनों का संरक्षण और इसके माध्यम से ग्रामीणों को आजीविका मुहैया करवाना है. जायका परियोजना के तहत ग्रामीण जिस कार्य में निपुण हैं और वह जो कार्य करना चाह रहे हैं, उन्हें उसी प्रकार का काम दिया जा रहा है. जिससे काम में अधिक दक्षता देने को मिल रही है. वहीं, इस परियोजना के माध्यम से पर्यावरण को भी फायदा पहुंच रहा है.
प्रदेश और पड़ोसी राज्यों में इनकी भारी डिमांड: वहीं, उप अरण्यपाल वन मंडल मंडी वासु डोगर ने बताया कि महिलाओं द्वारा बनाई जा रही पत्तलों की प्रदेश सहित पड़ोसी राज्यों में काफी डिमांड बढ़ रही है. महिलाओं की आर्थिकी भी मजबूत हो रही है और पर्यावरण संरक्षण की दिशा में भी प्रयास हो रहे हैं. टौर के पत्तों से बनी पत्तलें पूरी तरह से बायोडिग्रेडेबल हैं, जिनसे पर्यावरण को कोई नुकसान नहीं पहुंचता है.
मंडी में आधुनिक रूप से पत्तलें बना रहे ग्रामीण. हिमाचल में इन्हीं पत्तलों पर परोसा जाता है खाना: बता दें कि कुछ सालों पहले हिमाचल में टौर के पत्तों से बनी हुई पत्तलों का ही इस्तेमाल किया जाता था. चाहे कोई शादी हो या कोई भी समारोह, टौर के पत्तों से बनी पत्तलों की भारी डिमांड हुआ करती थी, लेकिन बीतते समय के साथ थर्माकोल और प्लास्टिक से बनी हुई प्लेट्स प्रचलन में आने लगी. इन प्लेट्स का खराब होने का डर भी नहीं होता है और सस्ती भी होती हैं, जिसके चलते लोगों का झुकाव थर्माकोल और प्लास्टिक से बनी हुई प्लेट्स की ओर होने लगा. मगर दूसरी ओर पर्यावरण के लिए ये प्लेट्स बेहद हानीकारक हैं और स्वास्थ्य के लिहाज से भी इनका इस्तेमाल नुकसानदायक है. ऐसे में एक बार फिर से टौर के पेड़ से बनी पत्तलें इस्तेमाल में आनी शुरू हो गई हैं. लोगों ने पर्यावरण और स्वास्थ्य को प्राथमिकता देते हुए पारंपरिक पत्तों की पत्तलों की ओर रुख कर लिया है.
हिमचाल में पत्तलें बनाने के लिए इस्तेमाल होते हैं टौर के पत्ते. ये भी पढे़ं:सिरमौर की महिलाएं बन रहीं आत्मनिर्भर, इस काम से प्रतिमाह कर रहीं इतनी कमाई