हिमाचल प्रदेश

himachal pradesh

धरती मां की 'साधना' में लीन लीना शर्मा, दूसरी महिलाओं के लिए बनी प्रेरणा

By

Published : Jul 12, 2019, 12:06 PM IST

लीना शर्मा अपनी अनूठी लग्न से सुभाष पालेकर प्राकृतिक खेती के तहत गांव की अन्य महिलाओं के साख बंजर पड़ी जमीन पर प्राकृतिक खेती कर रही हैं. इस खेती के तहत देसी प्रजाति के गोवंश के गोबर एवं मूत्र से जीवामृत, घनजीवामृत और बीजामृत का प्रयोग कर खेती की जाती है.

डिजाइन फोटो

मंडी: करसोग के पज्याणु गांव की लीना शर्मा अपनी अनूठी लग्न से सुभाष पालेकर प्राकृतिक खेती के तहत सफलता के झंडे गाड़ रही हैं. बहुआयामी व्यक्तिव की कर्मठ नारी लीना शर्मा न केवल खुद प्राकृतिक खेती कर रही हैं बल्कि उन्होंने आसपास के इलाकों की महिलाओं को भी प्रेरित किया है.

बड़ी बात ये है कि उच्च शिक्षित होने पर भी लीना शर्मा सरकारी नौकरी के पीछे दौड़ने के बजाय दूसरों के लिए प्रेरणादायक काम कर रही हैं. रासायनिक खेती के इस दौर में तमाम विपरीत परिस्थितियों के बावजूद पहाड़ की इस महिला ने पहाड़ सा संकल्प लेकर अपने तरीके से बंजर पड़ चुकी भूमि की कोख को कड़ी मेहनत और लगन से सींच कर सोने जैसी बालियों वाली फसल तैयार कर दी.

सुभाष पालेकर प्राकृतिक खेती

ऐसे में प्राकृतिक खेती की तकनीक अपना कर लीना इलाके का आर्थिक नक्शा बदल रही हैं. लीना की सफलता की कहानी अक्टूबर 2018 में पदम् श्री सुभाष पालेकर से शिमला के कुफरी में पांच दिवसीय प्रशिक्षण लेने के साथ से शुरू हुई.

लीना शर्मा ने बताया कि कुफरी से लौटने के बाद उन्होंने गांव की कुछ महिलाओं को साथ लेकर 10 बीघा भूमि पर सुभाष पालेकर प्राकृतिक खेती का काम शुरू किया. इसके अच्छे परिणाम देखकर अब न केवल पज्याणु बल्कि आसपास के गांवों की महिलाएं भी प्राकृतिक खेती की तकनीक को अपना रही हैं.लीना ने बताया कि उसने प्राकृतिक खेती को 10 बीघा से शुरू किया था, लेकिन गांव की महिलाओं ने एक साल में करीब एक साल में 35 बीघा जमीन पर प्राकृतिक खेती शुरू कर दी है.

क्या है सुभाष पालेकर प्राकृतिक खेती
सुभाष पालेकर प्राकृतिक खेती देसी गाय के गोबर एवं गोमूत्र पर आधारित है. एक देसी गाय के गोबर व गोमूत्र से एक किसान तीस एकड़ जमीन पर जीरो बजट खेती कर सकता है. देसी प्रजाति के गोवंश के गोबर एवं मूत्र से जीवामृत, घनजीवामृत और बीजामृत आदि बनाया जाता है.

इनका खेत में उपयोग करने से मिट्टी में पोषक तत्वों की बढ़ोतरी के साथ जैविक गतिविधियों का विस्तार होता है. जीवामृत का महीने में एक अथवा दो बार खेत में छिड़काव किया जाता है. वहीं, बीजामृत का इस्तेमाल बीजों को उपचारित करने में किया जाता है. इस विधि से खेती करने वाले किसान को बाजार से किसी प्रकार की खाद और कीटनाशक रसायन खरीदने की जरूरत नहीं पड़ती. प्राकृतिक खेती से कम बारिश होने पर भी अच्छा उत्पादन होता है.

लीना शर्मा ने बताया कि कुफरी में पांच दिन का प्रशिक्षण लेने के बाद उन्होंने गांव की कुछ महिलाओं को साथ लेकर 10 बीघा भूमि पर सुभाष पालेकर प्राकृतिक खेती का काम शुरू किया. इसके अच्छे परिणाम देखकर अब न केवल पज्याणु बल्कि आसपास के गांवों की महिलाएं भी प्राकृतिक खेती की तकनीक को अपना रही हैं.

ABOUT THE AUTHOR

...view details