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कैसे हुई मंडी अंतरराष्ट्रीय शिवरात्रि महोत्सव की शुरुआत, जानिए पूरा इतिहास

अंतरराष्ट्रीय शिवरात्रि महोत्सव मंडी देश की सांस्कृतिक विरासत है जिसे सदियों से मंडी ने सहेज कर रखा है. कुछ लोगों का मानना है कि 1788 में मंडी रियासत के राजा ईश्‍वरीय सेन कांगड़ा के महाराजा संसार चंद की कैद में थे. शिवरात्रि के कुछ ही दिन पहले वे लंबी कैद से मुक्त होकर स्वदेश लौटे थे. इसी खुशी में स्थानीय लोग अपने देवताओं के साथ राजा की हाजिरी भरने मंडी नगर में पहुंचे गए. राजा की रिहाई और शिवरात्रि का लोगों ने मंडी में एकसाथ जश्न मनाया. इसी जश्न के साथ मंडी शिवरात्रि की शुरुआत हो गई.

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Published : Mar 11, 2021, 6:21 PM IST

Updated : Mar 12, 2021, 3:10 PM IST

मंडीः अंतरराष्ट्रीय शिवरात्रि महोत्सव मंडी हमारी सांस्कृतिक विरासत है जिसे सदियों से मंडी ने सहेज कर रखा है. एक सप्ताह तक छोटी काशी यानी की मंडी भोले नाथ की भक्ति में लीन हो जाती है. छोटी काशी में शिव के लगभग 81 मंदिर हैं इन सभी मंदिरों में भोले का शृंगार किया जाता है. सात दिन तक हर तरफ भोले की जयकार ही सुनाई देती है. मंडी में शिवरात्रि महोत्सव प्राचीन काल से मनाया जा रहा है. इस बात को लेकर अभी तक इतिहासकार, देव गुरु और कारदार एकमत नहीं है कि शिवरात्रि महोत्सव की शुरुआत कैसे हुई.

ये है इतिहास

कुछ लोगों का मानना है कि 1788 में मंडी रियासत के राजा ईश्‍वरीय सेन कांगड़ा के महाराजा संसार चंद की कैद में थे. शिवरात्रि के कुछ ही दिन पहले वे लंबी कैद से मुक्त होकर स्वदेश लौटे थे. इसी खुशी में स्थानीय लोग अपने देवताओं के साथ राजा की हाजिरी भरने मंडी नगर में पहुंचे गए. राजा की रिहाई और शिवरात्रि का लोगों ने मंडी में एकसाथ जश्न मनाया. इसी जश्न के साथ मंडी शिवरात्रि की शुरुआत हो गई.

इसके अलावा कुछ लोगों का मानना है कि साल में एक बार शिवरात्रि पर पूरे नगर के लोग मंडी में राजा से मिलने पहुंचते थे. यहीं पर ही राजा को पूरे साल का लेखा-जोखा दिया जाता था और शिवरात्रि भी मनाई जाती थी. ये परंपरा धीरे-धीरे आगे बढ़ती रही और आज ये शिवरात्रि महोत्सव के नाम से जानी जाती है.

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मंडी शिवरात्रि की शुरुआत कैसे शुरू हुई इसकी जानकारी तो नहीं है, लेकिन ये सच है कि शिवरात्रि महोत्सव का मंडी रियासत के राज परिवार के साथ गहरा नाता है. 18वीं सदी में राजा सूरज सेन ने माधव राय को राजपाठ सौंप दिया था और खुद सेवक बन गए थे. माधव राय को विष्णु भगवान का रूप माना जाता है.

माधव राय की पालकी नहीं निकलती तब तक शुरू नहीं होती शिवरात्रि

जब तक मंडी शहर के राज देव माधव राय की पालकी नहीं निकलती तब तक शिवरात्रि महोत्सव की शुरूआत नहीं होती. माधव राय मंदिर से भूतनाथ मंदिर तक माधव राय की भव्य जलेब यानी पालकी निकलती है. भूतनाथ मंदिर में शिव भगवान को शिवरात्रि का न्यौता दिया जाता है. माधोराय की जलेब में चुनिंदा देवी-देवताओं के रथों के अलावा होमगार्ड के साथ पुलिस बैंड, घुड़सवार और स्कूली बच्चों की परेड भी शामिल होती है. इसके अलावा कमरुनाग देव के मंडी आने पर ही शिवरात्रि महोत्सव के सारे काम शुरू होते हैं. कमरूनाग ही शिवरात्रि महोत्सव में सबसे पहले पधारते हैं.

इन देवताओं की अनुमति बाद शुरू होती है शिवरात्रि महोत्सव

शिवरात्रि महोत्सव को लेकर एक मान्यता यह भी है कि यह एक ऐसा महोत्सव है जिसमें शैव, वैष्णव और लोक देवता का संगम होता है. शैव भगवान शिव, वैष्णव भगवान श्री कृष्ण और लोक देवता देव कमरूनाग को कहा गया है. इन तीनों की अनुमति के बाद ही मंडी का शिवरात्रि महोत्सव शुरू होता है.

मेले में पहुंचते हैं 200 से अधिक देवता

इसके अलावा शिवरात्रि में पूरे मंडी जनपद के 200 से अधिक देवता मेले में पहुंचते हैं. पूरा हफ्ता देवता एक दूसरे से मिलते हैं. सबसे खास बात ये है कि सभी देवताओं को राज माधो राय के दरबार में हाजिरी भरनी ही पढ़ती है. दूर दूर से आए देवता अपने तय स्थानों पर बैठते हैं. शिवरात्रि महोत्सव में तीन बार देवता की जलेब निकाली जाती है.

पूरा हफ्ता सांस्कृति संध्याओं, लोक नृत्यों का आयोजन किया जाता है. पहले शिवरात्रि महोत्स की सारी बागड़ोर राज परिवार के हाथ में होती थी. राजाओं के राज समाप्त हुए और आज इसकी बागड़ोर जिला प्रशासन के पास आ गई है. जिला प्रशासन ही मंडी शिवरात्रि महोत्सव की पूरी जिम्मेदारी संभालता है.

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Last Updated : Mar 12, 2021, 3:10 PM IST

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