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करसोग में ठगे गए मनरेगा श्रमिक, सरकार ने 1 रुपये बढ़ाई दिहाड़ी

केंद्र सरकार ने मनरेगा श्रमिकों की दिहाड़ी केवल एक रुपये बढ़ाई है. जिससे मनरेगा श्रमिकों को अब 185 रुपये दिहाड़ी मिलेगी.

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Published : Apr 26, 2019, 5:24 PM IST

मनरेगा (डिजाइन फोटो)

करसोग: देश भर में साल 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने का दावा करने वाली केंद्र की मोदी सरकार द्वारा मनरेगा श्रमिकों की नाममात्र दिहाड़ी बढ़ाने से श्रमिक छला महसूस कर रहे हैं. करसोग ब्लॉक के तहत विभिन्न पंचायतों को जारी आदेशों के मुताबिक सरकार ने मनरेगा के माध्यम से जीवन यापन करने वाले श्रमिकों की दिहाड़ी मात्र 1 रुपये बढ़ाई है.

मनरेगा के तहत काम करते श्रमिक (फाइल फोटो)

मनरेगा श्रमिकों को अब 185 रुपये दिहाड़ी मिलेगी. पिछले वित्त वर्ष में गैर जनजातीय क्षेत्र में यही दिहाड़ी 184 रुपये थी. केंद्र सरकार की ओर से जारी अधिसूचना के मुताबिक जनजातीय क्षेत्रों में मनरेगा श्रमिकों को अब 231 रुपये मिलेंगे. इससे पहले इन क्षेत्रों में ये दिहाड़ी 230 रुपये थी. ऐसे में पिछले कई सालों से दिहाड़ी बढ़ाने की मांग कर रहे श्रमिकों की उम्मीदों पर सरकार ने पानी फेर दिया है.

अन्य राज्य की तुलना में हिमाचल में कम दिहाड़ी होने के कारण लोग मनरेगा से मुंह फेर रहे हैं. जिसकी वजह से मनरेगा में काम करने के लिए अब मुश्किल से ही श्रमिक मिल रहे हैं. मंडी जिला के डीआरडीए के प्रोजेक्ट डायरेक्टर संतराम शर्मा का कहना है कि बढ़ी हुई दिहाड़ी 1 अप्रैल से लागू हो गई है. इस बारे में सभी खंड विकास अधिकारियों को आदेश जारी कर दिए हैं.

सरकार की ओर से जारी की गई अधिसूचना

करसोग में मनरेगा के तहत 24239 श्रमिक
करसोग खंड में मनरेगा के तहत कुल 24,239 श्रमिक पंजीकृत हैं. इसमें 23609 परिवारों को जॉबकार्ड जारी किए गए हैं. खंड की विभिन्न पंचायतों के तहत 30 अप्रैल तक कुल 4551 परिवारों ने काम की मांग की है. जिसमें अभी तक 4540 परिवारों को काम दिया गया है. इसमें अभी 6420 श्रमिक काम कर रहे हैं. वर्तमान में मनरेगा के तहत करसोग में 3288 काम चल रहे हैं.

मनरेगा (डिजाइन फोटो)

13 सालों में बढ़ी 115 रुपये दिहाड़ी
मंडी जिला में 21 अप्रैल 2007 को सभी खंडों में मनरेगा योजना आरंभ हुई थी. उस वक्त मनरेगा के तहत श्रमिकों को 70 रुपये दिहाड़ी दी जाती थी. इस तरह से पिछले 13 सालों में सरकार ने केवल 115 रुपये दिहाड़ी बढ़ाई है, जबकि इस अवधि में जीने के लिए जरूरी वस्तुओं की कीमतें कई गुना बढ़ी है. ऐसे में श्रमिकों को अपनी रोजमर्रा की जरूरतें पूरी करना भी मुश्किल हो गया है.

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