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फोरलेन प्रभावित समिति का आरोप, सड़क निर्माण कंपनी ने सरकार और लोगों को दिया धोखा

फोरलेन विस्थापित एवं प्रभावित समिति के महासचिव मदनलाल शर्मा ने कहा कि एनएचएआई के परियोजना निदेशक ने कीरतपुर-नेरचौक फोर लेन निर्माण पूरी तरह से बंद होने के बाद पर्यावरण वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय देहरादून पहुंच गए हैं. उन्होंने मामले की नियमानुसार जांच करने के लिए तीन महीने का समय मांगा है और इस पर मंत्रालय समय देने पर विचार कर रहा है.

kiratpur sundernagr four lane
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Published : Sep 25, 2020, 5:11 PM IST

Updated : Oct 4, 2020, 11:03 PM IST

सुदंरनगर/मंडी: कीरतपुर-नेरचौक फोर लेन निर्माण पूरी तरह से बंद होने के बाद अब तिलमिलाए एनएचएआई के परियोजना निदेशक पर्यावरण वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय देहरादून पहुंच गए हैं. उन्होंने मामले की नियमानुसार जांच करने के लिए तीन महीने का समय मांगा है और इस पर मंत्रालय समय देने पर विचार कर रहा है.

फोरलेन विस्थापित एवं प्रभावित समिति के महासचिव मदनलाल शर्मा ने एनएचएआई के परियोजना निदेशक की इस मांग पर कड़ी आपत्ति जताई है. समिति ने मंत्रालय को पत्र लिखकर दो टूक चेताया है कि 11 सितंबर 2013 को फोर लेन का काम शुरू हुआ है. 2016 में इसे तैयार कर जनता को समर्पित करना था. जिसकी निगरानी एनएचएआई के परियोजना निदेशक के नियंत्रण में थी.

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सड़क निर्माण कंपनी ने सरेआम सरकार व लोगों की आंखों में धूल झोंकते हुए सारे रूट को बिना अनुमति के ही बदल दिया. जिससे टनलें बैठ गई और कइ श्रमिक दब कर मारे गए. अवैध ब्लास्टिंग से लोगों के मकान दो-फाड़ हो गए, जमीनें दरक गई, रास्ते, शमशान घाट, पीने के पानी के स्त्रोत सब स्वाहा हो गए, मछुआरों को रोजी-रोटी के लाले पड़ गए.

भाखड़ा बांध जैसी राष्ट्रीय धरोहर को जबरन बंद किया जा रहा है. अवैध डंपिंग से ग्रिनरी को खत्म किया जा रहा है, लेकिन कहीं भी इन गंभीर विषयों की नियमानुसार जांच नहीं हुई और इस सारे काम में एनएचएआई कंपनी और वन विभाग, प्रशासन के साथ नेताओं का पूरा हाथ रहा. उन्होंने कहा कि अप्रूव्ड रोड़ अलाइनमेंट प्लान को बिना भारत सरकार की मंजूरी के बदला जा सकता है और अब बताने के बावजूद भी एनएचएआई मानने को तैयार नहीं है.

वहीं, दूसरी ओर अप्रवूड रोड़ अलाइनमेंट में हुए बदलाव की नियमानुसार जांच कर मंत्रालय को रिपोर्ट सौंपने की समय अवधि भी पूरी हो चुकी है व मंत्रालय द्वारा एनएचएआई के परियोजना निदेशक को जारी नोटिस की समय अवधि भी पूरी हो चुकी है. लिहाजा किसी भी सूरत में एनएचएआई को समय देना जनहित में नहीं है.

मंत्रालय को चाहिए कि वह एनएचएआई के तत्कालीन परियोजना निदेशक लेफ्टीनेंट कर्नल योगेश चंद्रा व सतीश कौल, अमन रोहिला के विरुद्ध तुरंत नियमानुसार कार्रवाई अमल में लाए और लोगों के हुए नुक्सान की भरपाई के साथ हिमाचल प्रदेश की पर्यावरण हरियाली को वापिस लाकर मछुआरों और भाखड़ा बांध जैसी राष्ट्रीय धरोहर को बचाया जाए, जोकि एनएचएआई की बेतरतीब कटिंग अवैध खनन और अवैध ब्लास्टिंग व डंपिंग से हुई है.

गौरतलब है कि 25 जून को मंत्रालय ने अतिरिक्त मुख्य सचिव वन सरकार हिमाचल प्रदेश को अप्रवूड रोड़ अलाइनमेंट प्लान हुए बदलाव, अवैध मक डंपिंग, अवैध पेड़ों का कटान के कारण सड़क निर्माण पर तत्काल प्रभाव से रोक लगा दी थी. एक महीने के भीतर अप्रूवड रोड़ अलाइनमेंट प्लान को सुपर इंपोज करने के आदेश के अलावा खसरा बार बदले गए रूट की रिपोर्ट अवैध मक डंपिंग पेड़ों के कटान तथा रिअलाइनमेंट प्लान की रिपोर्ट देने के आदेश दिए भी थे.

वहीं, काम बंद ना करने पर वन अधिनियम 1980 की अवहेलना माना जाएगा के आदेश भी पारित किए बावजूद इसके एनएचएआई ने काम को जारी रखा. जिसे अभी हाल में मुख्य अरण्यपाल सर्कल बिलासपुर व मुख्य अरण्यपाल सर्कल मंडी के निजी हस्तक्षेप से बंद हुआ है. उन्होंने कहा जब कोई आम आदमी इस तरह के अवैध काम करता है तो पुलिस बिना जांच पड़ताल किए तुरंत 353 या अन्य धाराओं में मुकदमा दर्ज कर उसे गिरफ्तार करने का काम करती है.

फिर अब यही पुलिस एनएचएआई के काम में लागो कंपनी के खिलाफ क्यों कार्रवाई नहीं कर रही है. क्यों उनकी काम करने वाली मशीनों को कब्जे में नहीं लिया गया. उन्होंने सवाल किया है की ऐसे कौन प्रभावशाली लोग हैं, जिसके इशारे पर ये सब हो कार्य किया जा रहा है.

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Last Updated : Oct 4, 2020, 11:03 PM IST

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